
राजिमःछत्तीसगढ़ का प्रयाग
रायपुर से लगभग 45 किमी दूर त्रिवेणी संगम (महानदी- सोंढूर-पैरी) के किनारे बसा राजिम
छत्तीसगढ़ का प्रमुख तीर्थ स्थल है। इस संगम की खास बात यह है कि यहाँ तीनों नदियाँ साक्षात् दिखाई देती हैं, जबकि इलाहाबाद के त्रिवेणी संगम में सरस्वती लुप्तावस्था में है।
राजिम के देवालय ऐतिहासिक तथा पुरातात्त्विक
दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। यहाँ प्राप्त
मन्दिरों को कालक्रम के अनुसार चार भागों में बांटा गया है।
(1) कुलेश्वर (9वीं सदी),
पंचेश्वर (9वीं
सदी) तथा भूतेश्वर महादेव (14वीं सदी), (2) राजीवलोचन (8वी सदी),
वामन, वाराह, नृसिंह,
बद्रीनाथ, जगन्नाथ, राजेश्वर,
दानेश्वर एवं राजिम
तेलिन मन्दिर । (3) रामचन्द्र (14वीं सदी) (4) सोमेश्वर महादेव नलवंशी नरेश
विलासतुंग के राजीव लोचन मन्दिर अभिलेख के
आधार पर अधिकांश विद्वानों ने इस मन्दिर को 8वीं शताब्दी की निर्मिति माना है।
इस मन्दिर के विशाल प्राकार के चारों
अंतिम कोनों पर बने वामन, वाराह, नृसिंह तथा बद्रीनाथ के मन्दिर स्वतंत्र वास्तु रूप के उदाहरण माने जा सकते ।
राजिम के मन्दिर तथा यहाँ स्थापित प्रतिमाएँ लोगों की धार्मिक आस्था पर प्रकाश तो डालती ही
हैं, साथ ही भारतीय स्थापत्यकला एवं मूर्त्तिकला के इतिहास को
रेखांकित भी करती हैं । इन मन्दिरों के कालक्रम को देखने से यह पता चलता है कि
छत्तीसगढ़ अंचल कला और स्थाप्त्य की दृष्टि से कितना समृद्धशाली था।
एशियाटिक रिसर्च सोसायटी के रिचर्ड जैकिंस
इसे राजा राम के समकालीन राजीव नयन नामक राजा से जोड़ते हैं लेकिन मन्दिर के पुजारी ठाकुर ब्रजराज सिंह जो कथा बतातें है ,
वह कुछ इस तरह है:

एक और जनश्रुति के अनुसार राजा जगतपाल इस
क्षेत्र पर राज कर रहे थे तभी कांकेर के कंडरा राजा ने इस मन्दिर के दर्शन किए और उसके मन में लोभ जागा कि यह मूर्त्ति
तो उसके राज्य में स्थापित होनी चाहिए । इसके लिए उन्होंने पुजारियों को धन का लोभ
दिया ; पर वे नहीं माने तब राजा ने बलपूर्वक सेना की मदद से इस मूर्त्ति को उठा
लिया और एक नाव में रखकर महानदी के जलमार्ग से कांकेर रवाना हुआ ;पर धमतरी के पास
रूद्री नामक गाँव के समीप मूर्त्ति सहित
नाव डूब गई और मूर्त्ति शिला में बदल गई। कंडरा राजा खिन्न मन से कांकेर लौट गया।
लेकिन राजिम में महानदी के बीच में स्थित कुलेश्वर महादेव मन्दिर की सीढ़ी से आ लगी। इस 'शिला’को
देख 'राजिम’नाम की तेलिन उसे अपने घर ले गई और उसने शिला को कोल्हू
में रख दिया। उसके बाद से उस तेलिन का घर धन-धान्य से भर गया। उधर सूने मन्दिर को देखकर दुखी होते राजा जगतपाल को भगवान ने
स्वप्न दिया कि वे तेलिन के घर से मुझे वापस लाकर मन्दिर में प्रतिष्ठित करें।
पहले तो तेलिन राजी ही नहीं हुई ; पर अंतत: पुन:प्रतिष्ठा हुई और तभी से यह
क्षेत्र राजिम तेलिन के नाम से राजिम कहलाने लगा। आज भी राजीवलोचन मन्दिर के आसपास अन्य मन्दिरों के साथ राजिम तेलिन का मन्दिर
भी विराजमान है।

(उदंती फीचर्स)
राजिम कुम्भ तक पहुँचने के लिए
हवाई मार्ग- रायपुर (45 किमी) निकटतम हवाई अड्डा है तथा दिल्ली, मुंबई, नागपुर,
भुवनेश्वर, कोलकाता, रांची, विशाखापट्नम और चेन्नई से जुड़ा
हुआ है।
रेल मार्ग- रायपुर निकटतम रेलवे स्टेशन है
जो कि मुम्बई-हावड़ा रेल मार्ग पर स्थित है।
सडक़ मार्ग- राजिम नियमित बस तथा टैक्सी
सेवा से रायपुर व महासमुंद से जुड़ा हुआ है। तीर्थ यात्रियों के ठहरने के लिए कुंभ के
अवसर पर संस्कृति विभाग विशेष रुप से व्यवस्था करता है। सामान्य पर्यटकों के लिए
रायपुर में अनेक होटल उपलब्ध हैं।
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