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Aug 12, 2015

नवयुवकों के लिए

सुखी जीवन

प्रबन्धन के 

18 महामंत्र

- गोवर्धन यादव

क्या आप हर कदम पर दुनिया को जीतना चाहते हैं ? क्या आप हमेशा सुखी  और प्रसन्न रहना चाहते हैं ? क्या आप चाहते हैं कि लोग आपका सम्मान करे ? यदि यह बात किसी युवक से पूछा जाए तो नि:संदेह वह हाँ ही कहेगा। लेकिन इसके लिए आपको कुछ त्याग-तपस्या करना होगा। कुछ गुण-सूत्र साधने होगे। आप देखेगे कि वे सारी शक्तियाँ आपमें  समाहित होती जाएँगी और आप न सिर्फ़ स्वयं सुखी-प्रसन्न रहेंगे,बल्कि अपने पास-पड़ो के लोगों के लिए भी एक आदर्श  के पात्र साबित होगे और उन्हें भी प्रसन्न एवं सुखी रख सकेगें।
बच्चों जीवन कभी भी एक सरल रेखा की तरह नहीं होता। कभी वह समतल-सपाट तो कभी उबड-खाबड़ भी होता है। यदि आप आज सुखी हैं तो कल आप दु;खी भी हो सकते हैं। तरह-तरह तरीके की परिस्थितियाँ निर्मित होती रहती है। बस यह आप पर निर्भर है कि आप उन्हें किस ढंग से लेते हैं और किस तरीके उन पर विजय प्राप्त करते हैं।      
सुखी जीवन जीने के लिए आपके अपनी सोच में परिवर्तन लाना होगा, अपना नजरिया बदलना होगा, एक सलीका, एक तरीका तथा एक तरकीब लाने की आवश्यकता होगी मतलब स्वयं को मैनेज करने की यहाँ आवश्यकता होगी। तो आइये सुखी और सम्पन्न जीवन जीने के कुछ सुत्र, जो यहाँ दिए जा रहे हैं उन्हें अपने जीवन मे उतारें। आप देखेगे कि आप मे वह र्जा,  वह शक्ति समाहित होती चली जा रही है। सुखी व सम्पन्न जीवन जीने के अठारह सूत्रीय महामंत्र।         
1-सोचना: सोच दो तरह की होती है। एक सोच नकारात्मक र्जा, वाली है जो हर समय आपमें निराशा का भाव भरती रहती है। निराशा का भाव मन में आते ही आप अपने आप को शक्तिहीन समझने लगते हैं। किसी काम को करने में उत्साह नहीं बना रहता।कभी कभी निराशा इस तरह घेरती है कि आपको संसार ही असार सा नजर आने लगता है और ऐसे समय में  आप कोई गलत कदम भी उठा सकते है। अत: अपने ऊपर निराशा को हावी न होने दें। फौरन अपनी सोच को बदलने के लिए प्रयास करें और उससे  छुटकारा पाने का उपाय खोजें, इसके लिए आप किसी अच्छी किताब को हाथ मे लीजिए और उसमें खो जाइये, अथवा कोई ऐसा उपाय खोजिए ,जिससे आपका मूड  उस विचार से आपको दूर ले जा दूसरी प्रमुख र्जा, जिसे हम सकारात्मक र्जा,  कह सकते है,को अपने जीवन में उतारें। यह उर्जा आपको प्रसन्न तो रखेगी ही साथ ही नई-नई सोच से भी भर देगी। आप जिस भी काम को हाथ मे लेगे, उसमें आपको सफलताएँ प्राप्त होती जाएंगी।          
2- पूछना: आपको यदि किसी कार्य की जानकारी नहीं है तो नि:संकोच आप उसकी जानकारियाँ प्राप्त करे, ताकि आप अपने काम को सम्पूर्णता के साथ कर सके।     
3- करना: निष्काम भावना से किया गया काम आपको सफलता ही नहीं दिलाता ; बल्कि सुख के भाव से भी लबरेज कर जाता है।
4- सुधारना: हर व्यक्ति अपाने आपमें सम्पूर्णरूसे सही नहीं होता। अत: अपनी कमियों को पहचाने। उसे सुधारे। यह कृत्य आपको आत्म-संतुष्टि की राह पर ले जाता है।        
5- श्रेष्ठता: श्रेष्ठता के भाव को लेकर चलाने का लक्ष्य बनाएँ आप शीघ्र ही वह मंजिल पा जायेंगे जिसकी आपको तलाश थी।
6- सुख और तलाश: केवल अपने लिए ही सुख की लालसा आपको अनेकों तनावों को जन्म दे देती है। वही कार्य करें जिसमें आप समाज का -देश का भला कर सकते हैं। दूसरों को सुखी देखकर आप स्वयं भी अपने को सुखी महसूस करेगें।
7- प्राथमिकता तय करें: जब तक आप अपना लक्ष्य नहीं बनाते, तब तक सफलता अर्जित नहीं हो सकती ।यहाँ यह कहावत चरितार्थ होती है,-एक साधे सब सधे,सब साधे सब जाये-।हमेशा लक्ष्य अथवा प्रथमिकताओं को लेकर चले।    
8- बदलाव लायें: अक्सर गड़बड़ी यहीं से शुरू होती है कि हम दुनिया को बदलने के सपने पालने लगते हैं। बेहतर तो यह होगा कि हम अपने आपमें परिवर्तन लाएँ, बदलाव लाएँ। आप देखेगें कि आपके अपने बदलते ही, लोगों में यथाशीघ्र बदलाव आना शुरु हो जाता है।
9- रचनात्मकता और नयापन: कुछ ऐसा रचनात्मक कार्य करें जो सबसे हटकर हो और अनूठा हो। सरल तरीकों से और अलग ढंग से कार्य करते रहने से आपका व्यक्तित्व प्रभावकारी तथा असरदायक होने  लगेगा।
10- अनुशासन:  सबसे पहले तो आप अपने आप पर अनुशासन करना सीखें। पता लगाएँ कि खुद मे क्या-क्या कमियाँ हैं। कौन-कौन सी आदतें खराब श्रेणी में आती हैं। उन्हें सुधारने का प्रयास करें। धीरे-धीरे अभ्यास करने से बहुत सारी बुराइयाँ स्वयं दूर होने लगती है। आपका व्यक्तित्व निखरने लगता है। आपकी वाणी में असाधारण ओज आने लगता है, और आप देखेगें कि जिस भी व्यक्ति को आप उपदेश देना चाहते हैं, उस पर आपका प्रभाव पड़ता है और वह आपका अनुसरण करने लगता है।
11- सुनना और संवाद:  हम जरुरत से ज्यादा ही बोलते हैं,जिसका नकारात्मक प्रभाव सुनने वाले पर पडता है। अपनी न सुनाते हुए पहले सामने वाले की पूरी बात सुनें। जब वह अपनी पूरी बात सुना चुके, तब जाकर अपना मंतव्य दें। ऐसा करने से आपके बीच संवाद कायम होगा, जो असरदार होने के साथ-साथ उपयोगी भी होगा।
12- सीखना:  सीखने के कई तरीके है,जिसमें से मुख्य है सुनना, आत्ममंथन करना, अच्छा साहित्य पढऩा और अच्छे लोगों को देख-सुनकर कुछ सीखना। याद खें- सुनने से ज्ञान कभी व्यर्थ नहीं जाता। यह कतई जरुरी नहीं है कि आपने जो कुछ भी सुना, वह सब सत्य हो अथवा सत्य से नजदीक हो। उस सुनते हुए को गुणना अर्थात् आत्ममंथन करते रहने से विकार उत्पन्न नहीं होते तथा आप अच्छे और बुरे काममें विभेद कर सकते है।
 किताबें पढऩे से ज्ञान में श्रीवृद्धि होती है। विद्या अर्जन से विनय, धन तथा धर्म कि प्राप्ति होती है, जो सुख का कारण बनता है। ऐसे व्यक्ति  जिसने अपने जीवन मे सद् -विचारों को उतारा है, जिन्होंने त्-साहित्य का गहन अध्ययन- मनन किया है, उनसे भी कुछ सीखें और अपने जीवन में उतारें।
 13- क्षमा करना: भूल किससे नहीं होती। प्राय: सभी लोग भूल करते ही रहते हैं। अत: आपका अपना फ़र्ज बनता है कि उसे क्षमा कर दें। आपने से भी कोई भूल हुई है तो क्षमा याचना सहित अपनी भूल-गलती स्वीकारें। आप देखेगें कि आपसे ज्यादा सुखी और कोई हो ही नहीं सकता।
14- प्रोत्साहन देना: खुद अपने आपको तथा अपने लोगों को प्रोत्साहन देना न भूलें। प्रोत्साहित रहने से एवं प्रोत्साहित करते रहने से लक्ष्य जल्दी हासिल किया जा सकता है।         
15- देना: अपनों को मदद देने से कभी पीछे नहीं हटें। जिन्दगी में लेन-देन चलता ही रहता है। दो और लो और फि दो- यह आपको ज्यादा सुख देगा।          
16- सफलता और संतुष्टि: सफलता आकस्मि है। छोटी-छोटी चीजें शानदार ढंग से करते रहें। संतुष्टि अपने आप आएगी।
17- ग्राहकीकरण: जीवन खुद एक व्यापार की तरह है। यहाँ लेना-देना, खोना-पाना सतत चलते ही रहता है। लेकिन आपका अपना लक्ष्य स्पष्ट होना चाहि ऐसे जीवन में सुख कम और दु: ज्यादा है। जो कम है लोग उसे ही लेना चाहते हैं। याद रखें-सुख बाँटने से सुख कम नहीं होता, बल्कि बढता ही रहता है। यदि आप ऐसा कर सके तो आपसे बढ़कर सुखी और कोई हो ही नहीं सकत
18- लोग: जब आप किसी अच्छे कार्य कि शुरुआत करते हैं तो, आलोचनाएँ भी रू होगी। इसकी परवाह न करें। याद रखें-जब भी आप किसी काम को करते हैं, तब अकेले होते हैं। धीरे-धीरे लोगों की भीड़ भी आपके पीछे हो लेती है। महात्मा गाँधी का उदाहरण हमारे सामने है। जब वे भारत की आजादी का सपना लेकर चले थे तो सर्वथा अकेले थे। फ़िर पूरा देश ही उनके साथ हो लिया था।
अंत में- महान  विचारक तथा साहित्यकार जर्मी टेलर ने कहा था- कर्म का बीज बोओ और स्वभाव की फसल काटो। स्वभाव की बीज बोओ और चरित्र की फसल काटो। चरित्र का बीज बोओ और भाग्य की फसल काटो।
हमारे वेद-पुराण भी यही कहते हैं-
सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया
 सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुखमाप्नुयात।
                           इति।

सम्पर्क: 103, कावेरीनगर छिन्दवाडा( म.प्र.) 480001

( 07162-246651, 09424356400)

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