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Apr 8, 2015

बढ़ती आबादी के खतरे

बढ़ती आबादी के खतरे
- डॉ. वाई. पी. गुप्ता
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बढ़ते वाहन, ताप बिजली घर और औद्योगिक इकाइयां दिल्ली में मुख्य प्रदूषक हैं। यहां के 51 लाख से अधिक वाहन 65 प्रतिशत वायु प्रदूषण के लिए उत्तरदायी हैं।
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भारत के पानी की गुणवत्ता खराब है और नागरिकों को मिलने वाले पानी की गुणवत्ता के संदर्भ में इसका स्थान 122 राष्ट्रों में 120वां है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में पानी की आपूर्ति विकासशील देशों के बड़े शहरों में सबसे खराब है।
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आज विकासमान विश्व की आधे से अधिक आबादी शहरों में रह रही है और स्वास्थ्य के लिए एक संकट बनती जा रही है।
भारत की आबादी जुलाई 2007 में 112.9 करोड़ से अधिक हो चुकी है। यह पर्यावरण को प्रदूषित करने के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए विपरीत स्थिति पैदा कर रही है। क्योंकि बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं (जैसे प्रभावी मल-जल निकास व्यवस्था, पीने के साफ पानी की आपूर्ति, साफ-सफाई की प्राथमिक व्यवस्था) आबादी के एक बड़े भाग को उपलब्ध नहीं है। बढ़ती आबादी,बढ़ता औद्योगिक कूड़ा, अनाधिकृत कॉलोनियों की बाढ़, जन सेवा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, कूड़े के निपटान तथा वाहनों की बढ़ती संख्या ने स्थिति को और भी खराब कर दिया है। जीवित रहना भी एक गंभीर चुनौती बन गया है।
तेज़ी से हो रहा शहरीकरण भी स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा जोखिम बना हुआ है और कई बीमारियों का कारण है। अधिक भीड़-भाड़, कचरे के निपटान की अपर्याप्त व्यवस्था, जोखिम भरी कार्य परिस्थितियां, वायु और पानी प्रदूषण आदि ने शहरी जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर रखा है। शहरीकरण के बढऩे से शहरी आबादी की ज़रूरतों के लिए उद्योग को बढ़ावा मिला जिससे काफी हानि हो रही है।
उद्योगों और विश्व के 63 करोड़ से अधिक वाहनों में पेट्रोलियम के उपयोग ने वातावरण को विषाक्त बना दिया है, जिससे फेफड़ों का कैंसर, दमा, श्वसन सम्बंधी बीमारियां हो रही हैं। दिल्ली की आबादी 1.5 करोड़ से अधिक हो चुकी है। यहां वायु प्रदूषण विश्व के शहरों में चौथे स्थान पर है।
मुम्बई, कोलकता, कानपुर और अहमदाबाद भी बुरी तरह से प्रभावित हैं। बढ़ते वाहन, ताप बिजली घर और औद्योगिक इकाइयां दिल्ली में मुख्य प्रदूषक हैं। यहां के 51 लाख से अधिक वाहन 65 प्रतिशत वायु प्रदूषण के लिए उत्तरदायी हैं।
दिल्ली की शहरी आबादी का दम घुट रहा है। यहां हवा में निलंबित कणदार पदार्थों की मात्रा बढक़र विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित सीमा 60 माइक्रोग्राम से सात गुना अधिक है। इसके कारण दिल्ली की 30 प्रतिशत आबादी सांस की बीमारियों से पीडि़त है। दमा की बीमारी एक मुख्य समस्या है। वायु प्रदूषण के कारण स्कूल जाने वाला प्रत्येक दसवां बच्चा दमा का शिकार है।
वायु प्रदूषण से दिल्ली में प्रति वर्ष 10,000 लोगों की मौत होती है। पानी प्रदूषण और मल-जल के निकास की समस्या ने देश के स्वास्थ्य को खराब कर रखा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 70 प्रतिशत पानी की सप्लाई मल-जल से दूषित है।
संयुक्त राष्ट्र ने रिपोर्ट किया है कि भारत के पानी की गुणवत्ता खराब है और नागरिकों को मिलने वाले पानी की गुणवत्ता के संदर्भ में इसका स्थान 122 राष्ट्रों में 120वां है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में पानी की आपूर्ति विकासशील देशों के बड़े शहरों में सबसे खराब है। दिल्ली नगरवासियों के फोरम ने भी कहा है कि दिल्ली का पानी बहुत दूषित है।
प्लास्टिक और विषैला घरेलू मल- जल यमुना नदी को प्रदूषित कर रहे हैं। 1,800 करोड़ लीटर से ज़्यादा अनुपचारित घरेलू और औद्योगिक अवशिष्ट प्रतिदिन यमुना नदी में बहाया जाता है, जिससे पीने के पानी की आपूर्ति खराब हो रही है और उसमें बैक्टीरिया बड़ी मात्रा में पनप रहे हैं। बैक्टीरिया की मात्रा बढऩे से पानी से होने वाली बीमारियों के मामले बढ़ जाते हैं।
हरियाणा में औद्योगिक पदार्थों और महानगरों के अवशिष्ट ने पश्चिमी यमुना नहर के पानी को प्रदूषित करके पीने के पानी की आपूर्ति को तबाह कर दिया है। पानी प्रदूषण के कारण प्रति वर्ष देश के किसी न किसी भाग में कई बीमारियां भयानक रूप से फैलती रहती हैं। दिल्ली की आबादी का एक बड़ा भाग प्रति वर्ष पानीजन्य बीमारियों (हैज़ा, दस्त, गैस्ट्रोएंट्राइटिस) का शिकार होता है। गरीबों के बच्चे पानी से होने वाले संक्रमण की चपेट में जल्दी आ जाते हैं, क्योंकि वे कुपोषण के शिकार होते हैं और उनकी प्रतिरोध क्षमता पूरी तरह विकसित नहीं हो पाती है।
इस देश में प्रति वर्ष लगभग दस लाख बच्चे हैज़ा और आंत्र-शोथ से मरते हैं। इससे पता चलता है कि बढ़ती आबादी और शहरीकरण ने हमारे महानगरों के स्वास्थ्य परिदृश्य को कठिन बना दिया है। इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने शहरों में स्वस्थ जीवन के लिए स्वस्थ शहरों के निर्माण की पहल की है। शहरी जीवन में सुधार के लिए शहरीकरण और आबादी की वृद्धि में कमी लाने के लिए योजना बनानी होगी।
यदि प्राथमिकता के आधार पर पानी की गुणवत्ता के सुधार हेतु कदम नहीं उठाए गए तो दिल्ली के नागरिक बदहाल जीवन जीने को अभिशप्त होंगे। (स्रोत)

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