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Oct 20, 2014

दो ग़ज़लें


दियों की बात
- डॉ.राकेश जोशी
1. 
आज फिर से भूख की और रोटियों की बात हो
खेत से रूठे हुए सब मोतियों की बात हो

जिनसे तय था ये अँधेरे दूर होंगे गाँव के
अब अधेरों से कहो उन सब दियों की बात हो

इक नए युग में हमें तो लेके जाना था तुम्हें
इस समुन्दर में कहीं तो कश्तियों की बात हो

जो तुम्हारी याद लेकर आ गई थीं एक दिन
धूप में जलती हुई उन सर्दियों की बात हो

जिनको तुमने था उजाड़ा कल तरक्की के लिए
आज फिर उजड़ी हुई उन बस्तियों की बात हो

जिक्र जब भी जंगलों का, आँसूओं का, आए तो
पेड़ से टूटी हुई सब पत्तियों की बात हो

बदलना सीख रहे हैं
2 .
जैसे-जैसे बच्चे पढऩा सीख रहे हैं
हम सब मिलकर आगे बढऩा सीख रहे हैं

आज हवाओं में हलचल है, बेचैनी है
बन्दर फिर पेड़ों पर चढ़ना सीख रहे हैं

भूख मिटाने को खेतों में जो उगते थे
गोदामों में जाकर सड़ना सीख रहे हैं

कहाँ मुहब्बत में मिलना मुमकिन होता है
इसीलिए हम रोज़ बिछड़ना सीख रहे हैं

नदी किनारे  बसना सदियों तक सीखा था
गाँवों में अब लोग उजड़ना सीख रहे हैं

धूप निकल कर फिर आएगी इस धरती पर
दुनिया को हम लोग बदलना सीख रहे हैं


लेखक के बारे में: अंग्रेजी साहित्य में एम. ए., एम. फिल., डी. फिल. राजकीय महाविद्यालय, डोईवाला देहरादून, उत्तराखंड, में अंग्रेजी साहित्य के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।  इससे पूर्व वे कर्मचारी भविष्य निधि संगठन, श्रम मंत्रालय, भारत सरकार में हिंदी अनुवादक के तौर पर मुंबई में पदस्थापित रहे। मुंबई में ही उन्होंने थोड़े समय के लिए आकाशवाणी विविध भारती  में आकस्मिक उद्घोषक के तौर पर भी कार्य किया। उनकी कविताएँ अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने के साथ-साथ आकाशवाणी से भी प्रसारित हुई हैं। छात्र जीवन के दौरान ही उन्होंने साहित्यिक पत्रिका 'लौका संपादन भी किया। उनकी एक काव्य-पुस्तिका 'कुछ बातें कविताओं मेंसन 1997 में प्रकाशित हुई थी। उनका एक ग़ज़ल संकलन शीघ्र प्रकाश्य है. सम्पर्क: असिस्टेंट प्रोफेसर (अंग्रेजी) राजकीय महाविद्यालय, डोईवाला देहरादून, उत्तराखंड, Email-joshirpg@gmail.com

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