रचनाकाल- सन 1930
कहता यही रहूँगा।
ऐ जन्मभूमि जननी, सेवा तेरी करूँगा,
तेरे लिए जिऊँगा, तेरे लिए मरूँगा।
हर जगह, हर समय में, तेरा ही ध्यान होगा,
निज देश-भेष-भाषा का भक्त मैं रहूँगा।
संसार की विपत्ति हँस-हँस के सब सहूँगा,
तन-मन सभी समर्पित, तेरे लिए, ओ जननी!
पर देश-द्रोही बनकर यह पेट नहीं भरूँगा,
धन-माल और सर्वस्व, यह प्राण वार दूँगा।
होगी हराम मुझको, दुनिया की ऐशो-इशरत,
जब तक स्वतंत्र तुझको, माता मैं कर न लूँगा।
कह-कह के माता! तेरे दुख-दर्द की कहानी,
भारत की लता-पेड़ों तक को जगा मैं दूँगा।
हम हिन्द के हैं बच्चे, हिन्दोस्तां हमारा,
मैं मात! मरते दम तक कहता यही रहूँगा।
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