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Nov 1, 2022

आधुनिक बोध कथा -11ः लो मैं आ गया

- सूरज प्रकाश

एक बहुत पुरानी कथा है। बाप बेटा शहर में माल बेचकर गाँव लौट रहे थे। अँधेरा हो चला था। उनके साथ का गधा बहुत बूढ़ा हो चला था। पगडंडी संकरी थी;  इसलिए भी तेज चलने में तकलीफ हो रही थी। वे पूरी तरह से अँधेरा घिर जाने से पहले घर पहुँच जाना चाहते थे।

अब किस्मत की मार देखिए वे गाँव के पास पहुँचे ही थे कि गधा एक गड्ढे में जा गिरा।

बाप बेटा परेशान कि अब करें तो क्या करें। गड्ढा काफी गहरा था और ऊपर से अँधेरा। किसी भी तरह से गधे को बाहर नहीं निकाला जा सकता था। सुबह तक इंतज़ार भी नहीं किया जा सकता था। रात भर में गधा रेंक- रेंककर सारे गाँव को सोने न देता और फिर सुबह पूरे गाँव की गालियाँ सुननी पड़तीं। अब करें, तो क्या करें। दोनों सिर पकड़कर बैठे थे कि गधे ने रेंकना शुरू कर दिया।

दोनों ने आपस में सलाह मशविरा किया और यही सोचा कि गधा हो चला है बूढ़ा। अब काम का रहा नहीं है; लेकिन खुराक पूरी है। इसके चक्कर में हर दिन काम का हर्जा होता है। कोई खरीदने से रहा। क्यों न इसे इसी गड्ढे में जिंदा दफन कर दिया जाए। जान छूटेगी।

यह सोचकर बेटा लपक कर घर गया और दो बेलचे और लालटेन लेता आया।

अब जी, बाप बेटे ने फटाफट आसपास की मिट्टी गधे के ऊपर डालनी शुरू कर दी, ताकि गधा मिट्टी तले दब जाए।

जब गधे पर मिट्टी पड़नी शुरू हुई, तो पहले तो उसे समझ ही नहीं आया कि ये हो क्या रहा है। वह जोर से रेंका। तभी उसके दिमाग की बत्ती जली। वह दोनों की अक्लमंदी पर मुस्कुराया और मिट्टी की मार सहता रहा। बाप बेटा देर रात तक गधे पर इतनी मिट्टी डाल चुके थे कि उन्हें लगने लगा कि बस, थोड़ी ही देर में गधा जीते जी दफन हो जाएगा।

उधर गधे जी महाराज मिट्टी के हर वार को पीठ पर झेलते और बदन झटक कर मिट्टी हटा देते। मिट्टी पैरों तले आती और इस तरह से वे हर बार ऊपर उठ रहे थे। सोच रहे थे कि बस थोड़ी -सी मिट्टी और पड़ी नहीं कि वे बाहर हो जाएँगे।

हुआ भी यही। थोड़ी मिट्टी और आई गधे के बदन पर और गदहा महाराज जी ने एक छलांग लगाई और सीधे ही गड्ढे के बाहर - लो मैं आ गया।

 डिस्‍क्‍लेमर: इस बोध कथा का उस देश से कोई लेना देना नहीं है जहाँ आतंकवाद के, अलगाववाद के, सांप्रदायिकता के, अशिक्षा के, अज्ञानता के, नफरत के, अलाँ के और फलाँ के दैत्य रोज दफन किए जाते हैं; लेकिन दफन होने से पहले ही वे और मजबूती से सिर उठाकर और ताकतवर हो कर सामने आ खड़े होते हैं और चुनौती देते लगते हैं कि ये रहे हम।

जो करना है कर लो।

kathaakar@gmail.com, 9930991424

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