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Dec 1, 2021

दो ग़ज़लें

-विज्ञान व्रत 
  
  1.तसव्वुर 

आप  कब  किसके   नहीं  हैं

हम   पता   रखते    नहीं   हैं

 

जो   पता   तुम   जानते   हो

हम   वहाँ    रहते    नहीं   हैं

 

जानते     हैं   आपको    हम

हाँ   मगर   कहते    नहीं   हैं

 

जो    तसव्वुर    था    हमारा

आप   तो     वैसे    नहीं    हैं

 

बात    करते     हैं      हमारी

जो   हमें    समझे    नहीं   हैं


     2. ख़ामोशियाँ    

आपसे     नज़दीकियाँ      हैं

इसलिए      तन्हाइयाँ       हैं

 

आसमाँ    पर    ये     सितारे

आपकी      रानाइयाँ        हैं

 

आशियाँ  है  ख़ास   तो  क्या

बिजलियाँ  तो  बिजलियाँ  हैं

 

कल   जहाँ    ऊँचाइयाँ    थीं

अब     वहाँ     गहराइयाँ   हैं

 

आप  हैं   किस    रौशनी   में

गुमशुदा      परछाइयाँ       हैं

 

कर  रही   हैं   शोर    कितना 

ये   अजब    ख़ामोशियाँ    हैं

 

सुन   रहे   हैं   लोग   जिनको

आपकी    सरगोशियाँ       हैं

 

सम्पर्कः एन - 138 , सैक्टर - 25 , नोएडा – 201301, मो. 09810224571

5 comments:

Sudershan Ratnakar said...

उम्दा ग़ज़लें।

सहज साहित्य said...

छोटी बहर की उत्तम ग़ज़ल

शिवजी श्रीवास्तव said...

आपसे नज़दीकियाँ हैं
इसलिए तन्हाइयाँ हैं...वाह,क्या अंदाज़ है,बहुत खूबसूरत ग़ज़लें।बधाई विज्ञान व्रत जी।

Anima Das said...

बेहतरीन ग़ज़लें... वाहह 💐

Sushila Sheel Rana said...

छोटी बह्र की शानदार ग़ज़लें