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Apr 16, 2019

खुद्दार

खुद्दार
-डॉ. आशा पाण्डेय
हरे-पीले, पके-अधपके आमों से लदे पेड़ों का बगीचा। बीच से निकली है सड़क । बगीचे को पार करती हुई मेरी कार एक घने आम के पेड़ के नीचे रुक जाती है। हम सभी कार से उतरते हैं।
    नीचे,पेड़ की जड़ के पास, पके हुए सात आठ आम पड़े हैं। मैं कुछ बोल पाऊँ उसके पहले ही मेरे बच्चे आम उठाकर खाना शुरू कर देते हैं। पेड़ की एक डाल आमों से लदी हुई काफी नीचे झुकी है। पति ने डाल को पकड़कर हिला दिया। तीन-चार आम टपक पड़े ।मैं मना करती हूँ। मुझे डर है कि अभी पेड़ का मालिक आकर लड़ने न लगे। इन लोगों का क्या भरोसा । लड़ने लगेंगे तो ऐसा चिल्ला-चिल्लाकर लड़ेगे कि अपनी तो बोलती ही बन्द हो जाएगी। इनका तो कुछ मान-अपमान होता नहीं, अपनी इज्जत का जरूर फालूदा बन जाएगा, किन्तु मेरी बातों का बच्चों पर असर नहींपड़ता। बच्चे आम उठाकर गाड़ी में रख लेते हैं। शहरी सभ्यताओं को ढो-ढोकर थके मेरे बच्चे यहाँ आकर स्वतंत्र हो गए हैं। मैं चुप हो जाती हूँ। मन में सोचती हूँ, बच्चों को खुश हो लेने दो। ये बाग-बगीचे, ये गाँव इन्हें कहाँ देखने को मिलते हैं। अगर पेड़ का मालिक आएगा ही तो मैं इन आमों की कीमत चुका दूँगी। यह सोचते हुए मेरे मन में दर्प भाव उमड़ उठता है।
बगीचे से कुछ फर्लांग की दूरी पर छह-सात घरों का एक छोटा-सा गाँव है। वहाँ भी इक्के-दुक्के आम, महुआ, नीम के पेड़ दिखाई दे रहे हैं।  उनमें से दो-तीन घरों का दरवाजा बाग की तरफ खुलता है। एक घर के सामने नीम की छाँव में खटिया बिछाए तीन-चार व्यक्ति ताश खेल रहे हैं। समीप ही दूसरी खटिया पर एक अधेड़ किस्म का व्यक्ति लेटा है। जब हमारी कार बगीचे में रुकी तब उन सभी की निगाह हमारी तरफ हो गई। थोड़ी देर तक हमारी तरफ देखने के बाद उस अधेड़व्यक्ति ने किसी को आवाज लगाई। घर के अन्दर से दो लड़कियाँ निकलकर पेड़ की तरफ आने लगीं। एक दस-बारह साल की है, दूसरी उससे कुछ छोटी, लगभग आठ-नौ साल की। दोनों नेफ्राक पहनी हैं, किन्तु बटन दोनों के ही फ्राक से गायब है। पीठ को उघाड़ता हुआ उनका फ्राक कन्धे से नीचे लटका जा रहा है। लड़कियाँ उसे कन्धे के ऊपर चढ़ा लेती हैं। फ्राक बार-बार लटक रहा है,लड़कियाँ बार-बार उसे कन्धे पर चढ़ा रही हैं।फ्राक को पकड़े –पकड़े  ही छोटी लड़की पेड़ के इर्द-गिर्द नजरे गड़ाए कुछ खोजने लगी।दोनों परेशान हैं,वे आपस में कुछ फुसफुसा भी रही हैं। दरअसल लड़कियों ने पेड़ के नीचे जिन आमों को इकट्ठा किया था, वे  उन्हें तलाश रही हैं। मेरी बेटी आगे बढ़कर उनसे पूछती है, ‘यहाँ जो आम गिरे थे, उन्हें खोज रही हो  क्या?’
 ‘गिरे नहीं थे, हमने उन्हें वहाँ रखा था।जवाब में अकड़ है।
 ‘हाँ, जो भी हो, वो बड़े मीठे थे। उनमें से कुछ हमने खा लिये, कुछ गाड़ी में रख लिये हैं ।’ मेरी बेटी की आवाज में लापरवाही है ।
बड़ीलड़की के चेहरे पर कई भाव आए और गए। ऐसा तो नहीं हुआ होगा कि हमारी जबरदस्ती उसे खराब न लगी हो, किन्तु न जाने क्योंवे चुप रह गईं। मैं उसके चुप रह जाने का कारण खोजती हूँ- हमारी अकड़? हमारा शहरीपन? हमारी चमक-दमक या उसकी उदारता?...पता नहीं।मैं लड़कियों के पास आती हूँ।
            ‘ये बगीचा तुम्हारा है?’
            ‘नहीं ,पूरा बगीचा मेरा नहीं है। इसमें सिर्फ तीन पेड़ मेरे हैं।... उधर जो दो पेड़ दिख रहे हैं ,वो और ये जिसके नीचे आप लोग खड़े हैं।बड़ी लड़की ने गर्व से जवाब दिया।
            ‘आम तो बहुत निकलते होंगे, यहाँ गाँव में बिक जाते हैं?’
            ‘गाँव में तो सभी के पास पेड़ है, यहाँ कौन खरीदेगा। हाँ, पकने पर बाबा बाजार में ले जाते हैं।... कच्चे आम की खटाई और पके आम का अमावट भी बिक जाता है।
            ‘हम लोग खाते भी हैं। दोपहर में हमारे घर रोटी नहीं बनती, आम ही खाकर रह लेते हैं।अब तक चुप खड़ी छोटी लड़की ने मुँह खोला।
            ‘शाम को रोटी बनती है?’मेरी जिज्ञासा बढ़ गई।
            ‘हाँ, शाम को पना (आम रस) के साथ हम लोग रोटी खाते हैं। आज शाम को हमारे घर में दाल भी बनेगी और अगर सुनीता के घर से चावल मिल जाएगा तो भात भी   बनेगा ।’छोटी  लड़कीने चहकते हुए कहा बड़ी बहन ने छोटी को घूर कर देखा। छोटी सहम कर चुप हो गई।
            ‘तुम्हारे  पास खेत भी है ?
            ‘हाँ, है न। एक छोटा-सा खेत भी है।बड़ी लड़की ने जवाब दिया।
            ‘बस एक ही?’
            ‘हाँ, ...... वही जो उस कुएँ के पास दिख रहा है।लड़की ने हाथ से इशारा किया। मेरी नजरें उसके हाथ का पीछा करती हुई कुएँ के पास जाकर ठहर गईं । लगभग दो हजार स्क्वायर फिट का जमीन का एक छोटा टुकड़ा ।
            ‘इसमें क्या बोते हैं तुम्हारे बाबा?’
            ‘सब कुछ, कभी गेहूँ, कभी मूँग, कभी उड़द। सब्जियाँ भी लगाते हैं। देखिये अभी सब्जी ही लगी है ।
            ‘बाबा कह रहे थे इस बार सब्जियाँ बेचने से जो पैसे मिलेंगे उससे हम लोगों के लिए कपड़े  और चप्पल भी लाएंगे।छोटी लड़की फिर बोल पड़ी । बड़ी ने छोटी के हाथ में चिकोटी काट ली ।छोटी थोड़ा उचक कर दर्द को भीतर ही भीतर सह गई। मैं उन दोनों लड़कियों को देखकर मुस्कुरा दी ।
      लड़कियाँ अब खेलने में लग गई हैं । आम की एक डाल काफी नीचे तक लटक रही है,छोटी लड़की उस डाल को पकड़ कर झूलने लगी । मेरे बच्चे भी उन दोनों के साथ खेल रहे हैं । लड़कियों का संकोच अब कुछ कम हो गया है,वे दोनों मेरे बच्चों के साथ घुलने का प्रयास कर रही हैं । बाग के दूसरे किनारे पर एक पेड़ के नीचे दो औरतें बैठी आपस में बतिया रही हैं , कुछ-कुछ देर पर दोनों हमारी ओर देखे जा रही हैं, लगता है उनकी बातों के केंद्र में हम लोग ही हैं ।
जिस पेड़ के नीचे हम लोग खड़े हैं, उसकी एकबड़ीजड़ जमीन के ऊपर निकल कर गोल आकार बनाती हुई फिर से जमीन के नीचे धँसी हुई है। पति उस जड़ पर बैठ गए हैं ।मैं वहीं समीप खड़ी हूँ।
 ‘ कितना सुन्दर बाग है। यहाँ का हर पेड़ कुछ न कुछ आकार बना रहा है। डालियाँ कितने नीचे तक झुकी हैं । मन कर रहा है कि पकड़ कर झूलने लगूँ । हमारे गाँव में एक ऐसा ही पेड़  था। हम सब बच्चे पूरी दोपहर उसी के इर्द-गिर्द जमा रहते थे। यहाँ आकर  मुझे अपना  गाँव याद आ गया ।पति की आवाज कुछ गहरी और भीगी-भीगी लग रही है। ये जगह मुझे भी अच्छी लग रही है ।मैं पति से कहती हूँ -
बाग तो सचमुच अच्छा है। मैं तो कुछ और ही सोच रही हूँ।
क्या सोच रही हो ?’
यही कि अगर यहाँ थोड़ी-सी जमीन मिल जाए, यहाँ .... बाग से लगकर ,तब हम एक छोटा सा बंगला यहाँ बनवालें और छुट्टियों में कभी-कभी यहाँ रहने आया करें। शहर से अधिक दूर भी तो नहीं है यह जगह।
जमीन मिल जाए’का क्या मतलब ?अरे अगर हम चाहेंगे तो क्यों नहीं मिल जाएगी? पति की आवाज में दम्- भरा आत्मविश्वास है। पैसा हो तो क्या नहीं मिल सकता ?’
वो तो ठीक है, पर कोई बेचे तब न?’
क्यों नहीं बेचेंगे ? .... दुगुना पैसा दे दूँगा, दौड़कर बेचेंगे। कोई खरीदने वाला तो मिले, गाँव में कौन खरीदता है जमीन ?... फिर इन्हें तो पैसा मिलेगा न ।
ऐसा हो सके तो, वह जो कुएँ के बगल वाली जमीन है, उसे ही खरीद लिया जाएगा । लड़कियाँ कह रहीं थी कि यह  जमीन उनकी है।..... बहुत गरीब हैं बेचारे.... रोज भोजन भी नहीं बनता इनके घर... ये जरूर बेंच देंगे। पैसे की इन्हें बहुत जरूरत होगी ... बेचारे, इनका भी भला हो जाएगा।
वैसे ये बात मज़ाक की नहीं है। तुम्हारी योजना मुझे अच्छी लग गई है। घर चलकर इस पर गंभीरता से विचार करूँगा। यहाँ यदि घर बनेगा तो गाँव वालों को भी घर बनते तक रोज़गार मिल जाएगा। यह एक तरह से इनकी सेवा होगी।पति के जवाब से मैं गदगद हूँ।
मेरे बच्चे अब भी उन लड़कियों के साथ खेल रहे हैं। इन खेतों तथा इस बाग के बीच एक सुंदर सा बंगला अब मेरी आँखों में तैरने लगा है। शहर चलकर इस योजना पर विचार करना है। पति गाड़ी में बैठ चुके हैं । दोनों बच्चे भी अपनी-अपनी जगह ले चुके हैं । गाड़ी में बैठने से पूर्व मैंने बड़ी लड़की को पचास रुपये की नोट देते हुए कहा ..मेरे बच्चों ने तुम्हारे आम ले लिये थे न, इसलिए ये पैसे रख लो।नोट हाथ में पकड़ते हुए लड़की ने जवाब दिया पहले  मैं बाबा से पूछकर आती हूँ, आप यही रुकिएगा।
मैंने कहा रख लो, पूछने की क्या बात है।’किन्तु मेरी बात को अनसुना कर वे दोनों लड़कियाँ अपने घर की तरफ भागीं ।
आम पन्द्रह-बीस रुपये से अधिक के नहीं रहे होंगे। मैं पचास रुपये  दे रही हूँ, गरीब हैं बेचारे, खुश हो जाएँगे। ऐसी अनेक बातें सोचते हुए मैं अपनी उदारता पर मन ही मन इठला रही हूँ। तभी वे दोनों लड़कियाँ दौड़ते हुए मेरे पास पहुँची और पचास का नोट मेरी तरफ बढ़ाते हुए उन्होंने कहा बाबा कह रहे हैं, हम पैसे नहीं लेंगे। अगर हम इन आमों को बेच रहे होते और तब आपने खरीदा होता ,तो हम जरूर पैसे लेते। आपने तो अपनी इच्छा से जबरदस्ती मेरे आमों को उठाया है, इसके पैसे हम नहीं लेंगे।
मेरी दानशीलता को धक्का लगा। अति उत्साह में मैं यह नहीं सोच पाई थी कि चीजों को जबरदस्ती उठा लेना खरीदने की श्रेणी में नहीं लूटने की श्रेणी में आता है, और कोई खुद्दार व्यक्ति लूटी हुई वस्तु की कीमत पाकर खुश नहीं होता।
नोट हाथ में पकड़ कर मैं बुझे मन से गाड़ी में बैठ गई । पति के चेहरे पर मायूसी है। उन्होंने गाड़ी स्टार्ट कर दी। बाग पीछे छूट रहा है और बाग की बगल में हमारे दर्प का बंगला बिना बने ही धराशायी हो गया है।
लेखक परिचय: डॉ. आशा पाण्डेय, शिक्षा: एम् .ए .,पी. एच . डी . (प्राचीन इतिहास)
प्रकाशन: 1 धूप का गुलाब, (कहानी संग्रह), चबूतरे  का सच (कहानी संग्रह), बादल को घिरते देखा है (यात्रा वृत्तांत), तख्त बनने लगा आकाश (कविता संग्रह), खिले हैं शब्द  (हाइकु संग्रह), ये गठरी है प्रेम की (दोहा संग्रह)
विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में कहानियाँ, लेख, यात्रा वृत्तांत एवं कविताएँ प्रकाशित। कई कहानियाँउडिय़ा एवं मलयालम भाषा में अनूदित, प्रकाशित, प्रसारित।
संपर्क : 5, योगिराज शिल्प , स्पेशल आई . जी . बंगला के सामने ,कैम्प, अमरावती –444602 (महाराष्ट्र )
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