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May 22, 2013

बडविग प्रोटोकोल

कैंसर रोधी आहार-विहारः अलसी तेल का जादुई असर
-डॉ. ओ. पी. वर्मा
डॉ. योहाना बडविग (जन्म 30 सितम्बर, 1908 -मृत्यु 19 मई 2003) विश्व विख्यात जर्मन जीव रसायन विशेषज्ञ और चिकित्सक थी। उन्होंने भौतिक, जीवरसायन तथा भेषज विज्ञान में मास्टर की डिग्री हासिल की थी और प्राकृतिक-चिकित्सा विज्ञान में पी.एच.डी. भी की थी। वे जर्मन सरकार के खाद्य और भेषज विभाग में सर्वोच्च पद पर कार्यरत  थीं। उन्होंने वसा, तेल तथा कैंसर के उपचार के लिए बहुत शोध किये थे। वे आजीवन शाकाहारी रहीं। जीवन के अंतिम दिनों में भी वे सुंदर, स्वस्थ और युवा दिखती थीं।
1923 में डॉ. ओटो वारबर्ग ने कैंसर के मुख्य कारण की खोज कर ली थी, जिसके लिये उन्हें 1931 में नोबल पुरस्कार दिया गया था। उन्होंने पता लगाया था कि कैंसर का मुख्य कारण कोशिकाओं में होने वाली श्वसन क्रिया का बाधित होना है और कैंसर कोशिकाऐं ऑक्सीजन के अभाव और अम्लीय माध्यम में ही फलती-फूलती है। कैंसर कोशिकायें ऑक्सीजन द्वारा श्वसन क्रिया नहीं करती हैं और वे ग्लूकोज को फर्मेंट करके ऊर्जा प्राप्त करती है, जिसमें लेक्टिक एसिड बनता है और शरीर में अम्लता बढ़ती है। यदि कोशिकाओं को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती रहे तो कैंसर का अस्तित्व संभव ही नहीं है। वारबर्ग ने कैंसर कोशिकाओं में ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाने के लिए कुछ परीक्षण किये थे परन्तु वे असफल रहे।
डॉ. योहाना ने वारबर्ग के शोध को जारी रखा। वर्षों तक शोध करके पता लगाया कि इलेक्ट्रोन युक्त, अत्यन्त असंतृप्त ओमेगा-3 वसा से भरपूर अलसी, जिसे अंग्रेजी में Linseed या Flaxseed कहते हैं, का तेल कोशिकाओं में नई ऊर्जा भरता है, उनकी स्वस्थ भित्तियों का निर्माण करता है और कोशिकाओं में ऑक्सीजन को आकर्षित करता है। परंतु इनके सामने मुख्य समस्या यह थी की अलसी के तेल, जो रक्त में नहीं घुलता है, को कोशिकाओं तक कैसे पहुँचाया जाये? वर्षो तक कई परीक्षण करने के बाद डॉ. योहाना ने पाया कि अलसी के तेल को सल्फर युक्त प्रोटीन जैसे पनीर के साथ मिलाने पर अलसी का तेल पानी में घुलनशील बन जाता है और तेल को सीधा कोशिकाओं तक पहुँचाता है। इसलिए उन्होंने सीधे बीमार लोगों के रक्त के परीक्षण किये और उनको अलसी का तेल तथा पनीर मिला कर देना शुरू कर दिया। तीन महीने बाद फिर उनके रक्त के नमूने लिये गये। नतीजे चौंका देने वाले थे। उन्होंने अलसी के तेल और पनीर के जादुई और आश्चर्यजनक प्रभाव दुनिया के सामने सिद्ध कर दिये थे। 
इस तरह 1952 में डॉ. योहाना ने अलसी के तेल और पनीर के मिश्रण तथा कैंसर रोधी फलों व सब्जियों के साथ कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया था,जो बडविग प्रोटोकोल के नाम से विख्यात हुआ। वे 1952 से 2002 तक कैंसर के हजारों रोगियों का उपचार करती रहीं। उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी थी जिनमें 'फैट सिंड्रोम’, 'डैथ आफ ए ट्यूमर’, 'फ्लेक्स आयल- ए ट्रू एड अगेन्स्ट आर्थाइटिस, हार्ट इन्फार्कशन, कैंसर एण्ड अदर डिजीज़ेज’, 'आयल प्रोटीन कुक बुक’, 'कैंसर- द प्रोबलम एण्ड सोल्यूशनआदि मुख्य हैं। उन्होंने अपनी आखिरी पुस्तक 2002 में लिखी थी।
कैंसर रोधी योहाना बडविग आहार विहार
डॉ. बडविग आहार में प्रयुक्त खाद्य पदार्थ ताजा, इलेक्ट्रोन युक्त और जैविक होने चाहिए। इस आहार में अधिकांश खाद्य पदार्थ सलाद और रसों के रूप में लिये जाते है, जिन्हें ताजा तैयार किया जाना चाहिए ताकि रोगी को भरपूर इलेक्ट्रोन्स मिले। डॉ. बडविग ने इलेक्ट्रोन्स पर बहुत जोर दिया है।
अंतरिम या ट्रांजीशन आहार
कई रोगी विशेष तौर पर जिन्हें यकृत और अग्न्याशय का कैंसर होता हैशुरू में सम्पूर्ण बडविग आहार पचा नहीं पाते हैं। ऐसी स्थिति में डॉ. बडविग कुछ दिनों तक रोगियों को अंतरिम या ट्रांजीशन आहार लेने की सलाह देती थी। अंतरिम आहार में रोज 250 ग्राम अलसी दी जाती है। कुछ दिनों तक रोगी को ओटमील के सूप में ताजा पिसी हुई अलसी मिला कर दिन में कई बार दी जाती है। इस सूप को बनाने के लिए एक पतीली में 250 एम एल पानी लें और तीन बड़ी चम्मच ओटमीन डाल कर पकायें। ओट पक जाने पर उसमें बड़ी तीन चम्मच ताजा पिसी अलसी मिलायें और एक उबाल आने दें। फिर गैस बंद कर दे और दस मिनट तक ढक कर रख दें।  अलसी मिले इस सूप को खूब चबा-चबा कर लार में अच्छी तरह मिला कर खाना चाहिये क्योंकि पाचन क्रिया मुँह में ही शुरू हो जाती है। इस सूप में दूध या संतरा, चेरी, अंगूर, ब्लूबेरी आदि फलों के रस भी मिलाये जा सकते हैं, जो पाचन- शक्ति बढ़ाते हैं। इसके डेढ़- दो घंटे बाद पपीते का रस, दिन में तीन बार हरी या हर्बल चाय और अन्य फलों के रस दिये जाते हैं। अंतरिम आहार में पपीता खूब खिलाना चाहिये। जैसे ही रोगी की पाचन शक्ति ठीक होने लगती है उसे अलसी के तेल और पनीर से बने ओम-खण्ड की कम मात्रा देना शुरू करते हैं। और धीरे-धीरे सम्पूर्ण बडविग आहार शुरू कर दिया जाता है।  
 प्रात:
इस उपचार में सुबह सबसे पहले एक ग्लास सॉवरक्रॉट (खमीर की हुई पत्ता गोभी) का रस लेना चाहिये। इसमें भरपूर एंजाइम्स और विटामिन-सी होते हैं। सॉवरक्रॉट हमारे देश में उपलब्ध नहीं है परन्तु इसे घर पर पत्ता गोभी को ख़मीर करके बनाया जा सकता है। हाँ इसे घर पर बनाना थोड़ा मुश्किल अवश्य है। इसलिए डॉ. बडविग ने भी लिखा है कि सॉवरक्रॉट उपलब्ध न हो तो रोगी एक ग्लास छाछ पी सकता है। छाछ भी घर पर मलाई-रहित दूध से बननी चाहिये। यह अवश्य ध्यान में रखें कि छाछ सॉवरक्रॉट जितनी गुणकारी नहीं है। इसके थोड़ी देर बाद कुछ रोगी गेहूँ के ज्वारे का रस भी पीते हैं। 
नाश्ता:
नाश्ते से आधा घंटा पहले बिना चीनी की गर्म हर्बल या हरी चाय लें। मीठा करने के लिए एक चम्मच शहद या स्टेविया (जो डॉ. स्वीट के नाम से बाजार में उपलब्ध है) का प्रयोग कर सकते हैं। यह नाश्ते में दिये जाने वाले अलसी मिले ओम-खण्ड के फूलने हेतु गर्म और तरल माध्यम प्रदान करती है।
ओम-खण्ड
इस आहार का सबसे मुख्य व्जंजन सूर्य की अपार ऊर्जा और इलेक्ट्रोन्स से भरपूर ओम-खंड है जो अलसी के तेल और घर पर बने वसा रहित पनीर या दही से बने पनीर को मिला कर बनाया जाता है । पनीर बनाने के लिए गाय या बकरी का दूध सर्वोत्तम रहता है। इसे एकदम ताज़ा बनायें और ध्यान रखें कि बनने के 15 मिनट के भीतर रोगी खूब चबा-चबा कर आनंद लेते हुए इसका सेवन करें। ओम-खण्ड बनाने की विधि इस प्रकार है।
3 बड़ी चम्मच यानी 45 एम.एल. अलसी का तेल और 6 बड़ी चम्मच यानी लगभग 100 ग्राम पनीर को बिजली से चलने वाले हेन्ड ब्लेंडर द्वारा एक मिनट तक अच्छी तरह मिक्स करें। तेल और पनीर का मिश्रण क्रीम की तरह हो जाना चाहिये और तेल दिखाई देना नहीं चाहिये। तेल और पनीर को ब्लेंड करते समय यदि मिश्रण गाढ़ा लगे तो पतला करने के लिए 1 या 2 चम्मच दूध मिला लें। पानी या किसी फल का रस नहीं मिलायें। अब मिश्रण में 2 बड़ी चम्मच अलसी ताज़ा मोटी-मोटी पीस कर मिलायें।
इसके बाद मिश्रण में आधा या एक कप कटे हुए स्ट्रॉबेरी, रसबेरी, ब्लूबेरी, चेरी, जामुन आदि फल मिलायें। बेरों में शक्तिशाली कैंसर रोधी में एलेजिक एसिड होता है। ये फल हमारे देश में हमेशा उपलब्ध नहीं होते हैं। इस स्थिति में आप अपने शहर में मिलने वाले अन्य फलों का प्रयोग कर सकते हैं। 
इस ओम-खण्ड को आप कटे हुए मेवे जैसे खुबानी, बादाम, अखरोट, काजू, किशमिश, मुनक्के आदि सूखे मेवों से सजायें। ध्यान रहे मूंगफली वर्जित है। मेवों में सल्फर युक्त प्रोटीन, आवश्यक वसा और विटामिन होते हैं। रोगी को खुबानी के 6-8 बीज रोज खाना ही चाहिये। इसमें महान विटामिन बी-17 और बी-15 होते हैं जो कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करते हैं। स्वाद के लिए काली मिर्च, सैंधा नमक, ताजा वनीला, दाल चीनी, ताजा काकाओ, कसा नारियल, सेब का सिरका या नींबू का रस मिला सकते हैं। मसालों और फलों को बदल-बदल कर आप स्वाद में विविधता और नवीनता ला सकते हैं।
डॉ. बडविग ने चाय और ओम-खण्ड को मीठा करने के लिए प्राकृतिक और मिलावट रहित शहद को प्रयोग करने की सलाह दी है। लेकिन ध्यान रहे कि प्रोसेस्ड यानी डिब्बा बन्द शहद प्रयोग कभी नहीं करें और यह भी सुनिश्चित करलें कि बेचने वाले ने शहद में चाशनी की मिलावट तो नहीं की है। दिन भर में 5 चम्मच शहद लिया जा सकता है। ओम खण्ड को बनाने के दस मिनट के भीतर रोगी को ग्रहण कर लेना चाहिए।
सामान्यत: ओम-खण्ड लेने के बाद रोगी को कुछ और लेने की जरूरत नहीं पड़ती है। लेकिन यदि रोगी चाहे तो फल, सलाद, सूप, एक या दो मिश्रित आटे की रोटी, ओट मील या का दलिया ले सकता है।  
10 बजे
नाश्ते के एक घंटे बाद रोगी को गाजर, मूली, लौकी, मेथी, पालक, करेला, टमाटर, करेला, शलगम, चुकंदर आदि सब्जियों का रस ताजा निकाल कर पिलायें। सब्जियों को पहले साफ करें, अच्छी तरह धोयें, छीलें फिर घर पर ही अच्छे ज्यूसर से रस निकालें। गाजर और चुकंदर यकृत को ताकत देते हैं और अत्यंत कैंसर रोधी होते हैं। चुकंदर का रस हमेशा किसी दूसरे रस में मिला कर देना चाहिये। ज्यूसर खरीदते समय ध्यान रखें कि ज्यूसर चर्वण (masticating) विधि द्वारा रस निकाले न कि अपकेंद्री (Centrifugal) विधि द्वारा। 
दोपहर का खाना
नाश्ते की तरह दोपहर के खाने के आधा घंटा पहले भी एक गर्म हर्बल चाय लें। दिन भर में रोगी पांच हर्बल चाय पी सकता है। कच्ची या भाप में पकी सब्जियाँ जैसे चुकंदर, शलगम, खीरा, ककड़ी, मूली, पालक, भिंडी, बैंगन, गाजर, बंद गोभी, गोभी, मटर, शिमला मिर्च, ब्रोकोली, हाथीचाक, प्याज, टमाटर, शतावर आदि के सलाद को घर पर बनी सलाद ड्रेसिंगऑलियोलक्स या सिर्फ अलसी के तेल के साथ लें। हरा धनिया, करी पत्ता, जीरा, हरी मिर्च, दालचीनी, कलौंजी, अजवायन, तेजपत्ता, सैंधा नमक और अन्य मसाले डाले जा सकते हैं। ड्रेसिंग बनाने के लिए 2 चम्मच अलसी के तेल व 2 चम्मच पनीर के मिश्रण में एक चम्मच सेब का सिरका या नीबू के रस और मसाले डाल कर अच्छी तरह ब्लैंडर से मिलायें।  विविधता बनाये रखने के लिए आप कई तरह से ड्रेसिंग बना सकते हैं। हर बार पनीर मिलाना भी जरूरी नहीं है। दही या ठंडी विधि से निकला सूर्यमुखी का तेल भी काम में लिया जा सकता है। अलसी के तेल में अंगूर, संतरे या सेब का रस या शहद मिला कर मीठी सलाद ड्रेसिंग बनाई जा सकती है।
साथ में चटनी (हरा धनिया, पुदीना या नारियल की), भूरे चावल, दलिया, खिचड़ी, इडली, सांभर, कढ़ी, उपमा या मिश्रित आटे की रोटी ली जा सकती है। रोटी चुपडऩे के लिए ऑलियोलक्स प्रयोग करें। मसाले, सब्जियाँ और फल बदल-बदल कर प्रयोग करें। रोज एक चम्मच कलौंजी का तेल भी लें। भोजन तनाव रहित होकर खूब चबा-चबा कर करें।
ओम-खंड की दूसरी खुराक
रोगी को नाश्ते की तरह ही ओम-खण्ड की एक खुराक दिन के भोजन के साथ देना अत्यंत आवश्यक है। यदि रोगी को शुरू में अलसी के तेल की इतनी ज्यादा मात्रा पचाने में दिक्कत हो तो कम मात्रा से शुरू करें और धीरे-धीरे बढ़ा कर पूरी मात्रा देने लगें। 
दोपहर बाद
दोपहर बाद अन्नानस, संतरा, मौसम्मी, अनार, चीकू, नाशपाती, चेरी या अंगूर के ताजा निकले रस में एक या दो चम्मच अलसी को ताजा पीस कर मिलायें और रोगी को पिलायें। यदि रस ज्यादा बन जाये और रोगी उसे पीना चाहे तो पिला दें। रोगी चाहें तो आधा घंटे बाद एक गिलास रस और पी सकता है।
तीसरे पहर
पपीते के एक ग्लास रस में एक या दो चम्मच अलसी को ताजा पीस कर डालें और रोगी को पिलायें। पपीता और अन्नानास के ताजा रस में भरपूर एंज़ाइम होते हैं जो पाचन शक्ति को बढ़ाते हैं।
सायंकालीन भोजन
शाम के भोजन के आधा घन्टा पहले भी रोगी को एक कप हरी या हर्बल चाय पिलायें। सब्जियों का शोरबा या सूप, दालें, मसूर, राजमा, चावल, कूटू, मिश्रित और साबुत आटे की रोटी सायंकालीन भोजन का मुख्य आकर्षण है। सब्जियों का शोरबा, सूप, दालें, राजमा या पुलाव बिना तेल डाले बनायें। मसाले, प्याज, लहसुन, हरा धनिया, करी पत्ता आदि का प्रयोग कर सकते हैं। पकने के बाद ईस्ट फ्लेक्स और ऑलियोलक्स डाल सकते हैं। ईस्ट फ्लेक्स में विटामिन-बी होते हैं जो शरीर को ताकत देते हैं। टमाटर, गाजर, चुकंदर, प्याज, शतावर, शिमला मिर्च, पालक, पत्ता गोभी, गोभी, आलू, अरबी, ब्रोकोली आदि सभी सब्जियों का सेवन कर सकते हैं। दालें और चावल बिना पॉलिश वाले काम में लें। डॉ. बडविग ने सबसे अच्छा अन्न कूटू (buckwheat)  का माना है। इसके बाद बाजरा, रागी, भूरे चावल, गैहूँ आते हैं। मक्का खाने के लिए उन्होंने मना किया है। 
 
संपर्क: वैभव हॉस्पिटल, 7- B-43,माहावीर नगर III, कोटा, राज, इंडिया, Email-dropvermaji@gmail.com

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