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May 22, 2013

परंपरा

 छत्तीसगढ़ में गहनों की परंपरा
वैसे तो छत्तीसगढ़ के अधिकांश इलाकों में महिलाएँ गोदना को एक पारंपरिक गहने के रूप में धारण करती हैं और पवित्रता की भावना से अपने सौंदर्य को निखारने के लिए फूल पत्ती, जानवर अपने प्रिय का नाम या अपनी पसंद के दूसरे डिजाइन गुदवाती हैं। गोदना के बारे में आदिवासी अंचल में यह धारणा प्रचलित हैं कि ऊपर से पहने गए गहने तो इस धरती पर ही रह जाएंगे परंतु शरीर में गुदवाया गया गहना हमारी मृत्यु के बाद भी हमारे साथ ही जाएगा
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दुनिया का कोई भी भाग हो हर जगह आभूषणों का अपना अलग ही महत्व रहा है। न जाने कितने वर्षों से महिलाओं द्वारा आभूषणों का प्रयोग अपने को सजाने के लिए किया जाता रहा है। हर प्रांत की अपनी आभूषण संबंधी अलग पहचान होती है जिस प्रकार से अलग-अलग प्रदेशों में अपनी परंपरा के अनुसार विशिष्ट गहनों का प्रचलन है और हम वहां की महिलाओं की वेशभूषा को देखते ही समझ जाते हैं कि वे किस प्रदेश की महिलाएं हैं। उसी प्रकार छत्तीसगढ़ में भी महिलाएं अपने खास आभूषणों के जरिए अपनी अलग पहचान बनाती हैं।
हर प्रदेश में अपनी संस्कृति को सुरक्षित रखने में गहनों का विशेष स्थान है। छत्तीसगढ़ के संस्कृति विभाग ने छत्तीसगढ़ के पारंपरिक गहनों पर एक ब्रोशर प्रकाशित किया गया है। जो प्रदेश के पारंपरिक गहनों के  संरक्षण- संवर्धन की दिशा में एक अच्छा प्रयास है। आभूषणों के संदर्भ में क्षेत्रीय मान्यता के अनुसार अनेक जानकारी दी गई  है। आभूषणों की परंपरा व इतिहास तथा इन्हें बनाने वाले कारीगरों के विषय में और अधिक जानकारी की जरूरत है। 
छत्तीसगढ़ की संस्कृति में आभूषणों की पृथक पहचान है, यहाँ की महिलाएँ जब अपने पारंपरिक आभूषण पहनकर निकलती हैं तो उनका रूप सौंदर्य और अधिक निखर उठता है।
छत्तीसगढ़ में गाए जाने वाले सुआ और ददरिया गीतों में यहां के आभूषणों का खूबसूरती से वर्णन हुआ है- एक गीत है जिसमें एक लड़की अपनी मां से सुआ नाचने जाने के लिए अपनी माँ से आभूषण मांगती है- दे दे दाई तोर गोड़ के पैरी, सुआ नाचे बर जाबोन... गीत में आगे वह अपनी मां से हाथ का बहुंटा, घेंच का सूता, माथे की टिकुली, कान की खूंटी और हाथ की ककनी आदि की मांग करती है।
छत्तीसगढ़ में बनने वाले आभूषणों के लिए सोना, चांदी, काँसा, पीतल, एल्युमिनियम, लोहा, मिश्र धातु, काष्ठ, बाँस, लाख आदि का प्रयोग किया जाता है।
वैसे तो छत्तीसगढ़ के अधिकांश इलाकों में महिलाएँ गोदना को एक पारंपरिक गहने के रूप में धारण करती हैं और पवित्रता की भावना से अपने सौंदर्य को निखारने के लिए फूल पत्ती, जानवर अपने प्रिय का नाम या अपनी पसंद के दूसरे डिजाइन गुदवाती हैं। गोदना के बारे में मान्यता है कि टोने- टोटके, भूत-प्रेत आदि से बचाव के लिए गोदना को आदिवासी अंचल में रक्षा कवच की तरह अनिवार्य माना जाता है। यह धारणा भी प्रचलित हैं कि ऊपर से पहने गए गहने तो इस धरती पर ही रह जाएंगे परंतु शरीर में गुदवाया गया गहना हमारी मृत्यु के बाद भी हमारे साथ ही जाएगा। इसीलिए पुराने जमाने में छत्तीसगढ़ की सभी स्त्रियों के लिए छोटा सा ही सही एक गोदना गुदवाना जरूरी समझा जाता था। 
गोदना के साथ-साथ यहाँ की महिलाएं आभूषणों से अपने आपको सजाने में गर्व का अनुभव करती हैं। यहां की महिलाओं द्वारा आभूषण धारण करने के बारे में खास बात यह है कि एक समय ऐसा था कि वे अपने अधिकांश पारंपरिक गहनों का इस्तेमाल कुछ खास अवसरों पर ही नहीं बल्कि हमेशा धारण करती थीं। यहां तक की खेत-खलिहान में काम करते समय भी वे कमर में करघनी, पैरों में पैरी, तोड़ा तथा हाथों में कड़ा, पहुंनी तथा गले में पुतरी, सुता आदि धारण किए रहती थीं। यह बात और है कि अब आर्थिक परिस्थिति के चलते उनके ये गहने कम होते चले जा रहे हैं। 
गहनों के विभिन्न प्रकार
जूड़े व चोटी के गहने- यहां की महिलाएं बालों को भी विशेष प्रकार के गहनों से सजाती हैं जैसे जूड़े व चोटी में धारण किए जाने वाले कुछ खास गहने हैं जिसमें जंगली फूली, पंख, कौडिय़ां, सिंगी, ककई- कंघी, मांगमोती, पटिया, बेंदी आदि प्रमुख हैं।
माथे पर पहने जाने वाले गहने- माथे पर लगाई जाने वाली टिकुली भी अनेक डिजाइन की होती हैं। महिलाएं माथे को अपनी पसंद से फूल आदि बनाकर तो सजाती ही हैं पर साथ ही धातु से बने टिकुली का प्रयोग गोंद से चिपका कर माथे पर लगाने का प्रचलन यहां बहुत पुराना है।
कान के अनोखे गहने- कान में पहने जाने वाले आभूषणों के तो यहां अनेक प्रकार हैं जैसे- ढार, तरकी, खिनवां, इयरिंग, बारी, फूल संकरी, लुरकी, लवंग फूल, खूंटी, तितरी आदि। ये आभूषण इतने खूबसूरत होते हैं कि आजकल इनकी नकल आधुनिक डिजाइनों में किया जाने लगा है।
नाक के गहने- नाक में पहने जाने वाले आभूषण भी यहां खास प्रकार के होते हैं यहां तक कि उनके प्रकार के आधार पर पहले महिला कौन सी जाति की है इसका पता लग जाता था। यहां नथ, नथनी, लवँग, फुल्ली आदि धारण करने का प्रचलन है।
गले की शोभा बढ़ाने वाले गहने- वर्तमान में तो गले के कई विशिष्ट प्रकार दिखाई ही नहीं देते। आज जरूरत इन्हें बचाए रखने की हैं। गले में पहने जाने वाले आभूषणों में प्रमुख हैं- सूंता, पुतरी, कलदार, सुर्रा, सँकरी, तिलरी, हमेल तथा हँसुली।
बाजू, कलाई और उंगलियों के गहने- हाथ के बाजू में पहने जाने वाले आभूषण भी विभिन्न डिजाइन व विभिन्न प्रकार के प्रचलित हैं। जिनमें प्रमुख हैं चुरी बहुटा, कड़ा हरैया, बनुरिया, ककनी, नाँगमोरी, पटा, पहुंँची, ऐंठी, मुंदरी आदि।
कमर में पहने जाने वाले गहने- चाबी गुच्छ, भारी और चौड़े कमरबंद और करधन पहन कर जब छत्तीसगढ़ की महिलाएँ निकलती है तो उसके कमर की लचक देखते ही बनती है। कहते हैं कि यहां की महिलाएं कमर में चौड़ी- चौड़ी करघनी इसलिए पहनती हैं क्योंकि इससे पानी से भरी मटकी, गगरी अथवा भारी बोझ उठाने में आसानी होती है। जो भी हो कमर के इन आभूषणों की खूबसूरती की कोई सानी नहीं है।
पैरों के रूनझुन करते गहने- नख से शिख तक के श्रृंगार में पैरों में पहने जाने वाले आभूषणों का अपना अलग ही महत्व है।  पैरों में पैरी, तोड़ा, सांटी, कटहर, चुरवा, चुटकी,    बिछिया आदि पहना जाता है।
बच्चों के गहने- यहां के बच्चों को भी आभूषण पहनाने का प्रचलन है। बहुत से आभूषण तो बच्चों को बुरी नजर से बचाने के लिए पहनाया जाता है। जैसे- बघनखा, ठुमड़ा, गठुला, मुंगुवा, ताबीज तथा हाथों व कमर में काला धागा हाथ में काली मोती और पैरों में चूड़ा आदि।
पुरुषों के गहने- आभूषण पहनने में पुरुष भी पीछे नहीं रहते। यहां उनके लिए भी विभिन्न प्रकार के आभूषण प्रचलित हैं। जैसे चुरुवा, कान की बारी और गले में कंठी पहनने का चलन है।
परंतु अब छत्तीसगढ़ के ये पारम्परिक गहने संग्रहालय की वस्तु बनते जा रहे हैं अत: इन्हें सहेजे जाने की जरूरत हैं। अन्यथा एक दिन ऐसा आएगा कि हम भूल जाएंगे कि छत्तीसगढ़ की स्त्रियों के पारंपरिक गहने कैसे होते थे। आज आधुनिकीकरण के प्रभाव में धीरे-धीरे आदिवासी अँचलों को छोड़ कर अन्य इलाकों में गोदना गुदवाने की प्रथा तो लगभग समाप्त ही हो गई है, पारंपररिक गहने भी विलुप्ति की कगार पर हैं।
हाँ छत्तीसगढ़ में पारंपरिक गहनों से सजी स्त्री अब लोक मंचों में ही दिखाई देती हैं। जैसे पंडवानी गायिका तीजन बाई जब मंच पर पंडवानी गाने उतरती हैं तो वे छत्तीसगढ़ के गहनों का प्रतिनिधित्व करती नजर आती हैं। इसी तरह गाँव के हाट बाजार और मेले मड़ई में गहनों का बाजार सजा नजर आता हैं जहाँ सोने, चांदी जैसे महंगे धातु के नहीं बल्कि सस्ती धातुओं से निर्मित विभिन्न प्रकार के गहने देखने को मिल जाते हैं, इनमें आधुनिक डिजाइनों की झलक भी दिखाई देती है। (उदंती फीसर्च)

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