- बालकवि बैरागी
किरणों की कञ्चन बरसाता
हमको तुमको बड़े प्यार से
जीवन की मतलब समझाता-
'अपनी ही आहुतियां देकर
स्वयं प्रकाशित रहना सीखो
यश अपयश जो भी मिल जाये
उसको हंसकर सहना सीखो
थकना, रुकना, चुकना, झुकना
यह जीवन का काम नहीं है
सच पूछो तो गति के आगे
लगता पूर्णविराम नहीं है।
1 comment:
अत्यंत प्रेरणादायक कविता!!मधुरतम वाक्य विन्यास
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