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Aug 1, 2021

कविता- दूर ब्याही बेटियाँ

-अंजू खरबंदा  

तरस जाती हैं 

देखने को एक झलक

पिता के चेहरे की मुस्कुराहट को

माँ की आँखों की चमक को

बहन संग हाल-हवाल बाँटने को

भाई को राखी बाँधने को

भाभियोंसंग हँसी ठिठोली करने को

भतीजे भतीजियों की शैतानियाँ देखने को

सखी।-सहेलियों-संग झूला झूलने को

बचपन की यादें ताजा करने को!

मायके की सोंधीसोंधी रोटी खाने को

अपनी मर्ज़ी से 

सोने -उठने खानेपीने की आज़ादी पाने को !

निश्चिंत हो पर्स झुलाती 

बाजार के सौ-सौ चक्कर लगाने को

नए सूट से मैचिंग ज्वैलरी 

और नई जूत्ती पहन इतराने को!

दूर ब्याही बेटियाँ 

अनजाने ही खो देती हैं 

अपने हिस्से का बहुत सारा लाड़प्यार 

बहुत से किस्से कहानियाँ 

रिश्तेदारो की रुनकझुनक

परिवार की शादी की सैकड़ो तैयारियाँ

दूर बैठी बेटियाँ 

सदा कुछ न कुछ सोचती हैं 

कभीकभी किस्मत को भी कोसती हैं 

कभी भर-भर आती आँखें 

कभी मुस्कुराकर खुद को ही पोसती है!

देती है दिलासा स्वयं को

करती हैं बेकरारी से इंतज़ार

मायके की खुशियों का

जब उन्हें भी मिलेगा अवसर

पंख लगा पीहर की ओर उड़ जाने का

भागम-भाग की जिन्दगी से राहत पा

कुछ पल अपने लिये जिए जाने का! 

2 comments:

Sudershan Ratnakar said...

बहुत सुंदर.भावपूर्ण कविता। बधाई

रश्मि लहर said...

bahut sundar srajan