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May 15, 2020

इबादत

इबादत

सतीशराज पुष्करणा

रमजान का पवित्र माह चल रहा था । उसी दौरान मुजफ्फरपुर से पटना आने वाली बस में एक सज्जन इत्मीनान से बैठ गए। उनकी बगल में लगभग पाँच-छह वर्ष का एक बच्चा अपनी मस्ती में मस्त था । एक अधपकी दाढ़ी वाले प्रौढ़, हाथ में बधना (मुसलमानी लोटा) लिए बराबर वाली सीट की ओर आए, जहाँ उनका झोला पहले से ही रखा हुआ था । अपनी सीट पर उस बालक को बैठे देखकर आग-बबूला हो गए और उन्होंने आव देखा न ताव, उसे एक तरफ धकेल दिया । उस मासूम को कोई ख़ास चोट तो नहीं आयी, फिर भी कुछ-न-कुछ तो लग ही गयी । वह बहुत ही बेचारगी से रोने लगा । उसकी माँ ने , जो फटी साड़ी से झाँकते बदन को बार-बार ढँकने का असफाल प्रयास कर रही थी, और सीट के अभाव में खड़ी थी, अपने लाल को ममता के आँचल में ढक लिया। उसकी सहमी नज़रे स्वतः चारो  ओर घूम गयीं। उस औरत से उसके मासूम बच्चे को अपनी गोद में लेते हुए वहाँ बैठे सज्जन, प्रौढ़ की ओर मुखातिब होते हुए बोले, “मोहतरम ! मैं भी मुसलमान हूँ।”
क...क...क्या मतलब ?” कुछ हकलाते हुए प्रौढ़ बोले।
मतलब क्या होगा । शक्ल से तो आप शरीफ, नेक और बादस्तूर रोजेदार मालूम होते हैं और मैं रोजेदार न होते हुए भी उस अल्लाह-ताला, की नज़र में आपसे ज्यादा रोजेदार हूँ।”
क्या कुफ्र बकते हैं, आप  !” वे लगभग चिल्लाए।
चिल्लाने की जरूरत नहीं है जनाब! उसके बनाए बन्दों, खासकर बच्चों से मुहब्बत करना ही उस परवरदिगार की सच्ची इबादत है, सच्चा अकीदा है।” उस सज्जन ने प्रौढ़ महाशय को बहुत शालीनता से समझाया।
उस महाशय की बात सुनते ही प्रौढ़ व्यक्ति की गर्दन झुक गयी । तब तक वह बच्चा इन सारी बातों से बेखबर उनकी गोद से उतरकर प्रौढ़ की गोद में बैठा उनके “बधने” में हाथ डाल-डालकर पानी सुड़क रहा था।

8 comments:

Kalpana Bhatt said...

बहुत सुंदर और सार्थक लघुकथा है। बाबा आपकी लेखनी को नमन।
धन्यवाद आदरणीय रामेश्वर सर आपने यह लघुकथा पढ़वाई।
नमन आपको। बाबा से आपके और सुकेश साहनी सर की बातें सुनी हैं। आप की दोस्ती को नमन करती हूँ।
सादर।

Surendra Arora ( सुरेंद्र कुमार अरोड़ा साहिबाबाद। ) said...

लाजवाब

शिवजी श्रीवास्तव said...

धर्म का सच्चा मर्म समझाती,संवेदना को झंकृत करती सार्थक लघुकथा।पुष्करणा जी की लघुकथा देकर आपने उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी है।स्मृतिशेष पुष्करणा जी अपनी कृतियों से हम लोगो के बीच सदा विद्यमान रहेंगे।भावपूर्ण नमन।

Anita Manda said...

बहुत अच्छी लघुकथा। आभार।

Sushila Sheel Rana said...

हर मज़हब इंसान से ही नहीं हर जीव से ख़ासकर बच्चों से मुहब्बत करना सिखाता है।

आदरणीय पुष्करणा जी की शानदार लघुकथा बहुत अच्छे सन्देश के साथ।

Sudershan Ratnakar said...

धर्म के सच्चे मर्म को दर्शाती सुंदर संदेश देती उम्दा लघुकथा। पुष्करणा जी अपनी बेहतरीन लघुकथाओं के माध्यम से सदा हमारे बीच में रहेंगे।

प्रियंका गुप्ता said...

उनकी ढेरों लघुकथाओं को पढ़ा है और सभी बेहतरीन लगी । उनका ऐसे चला जाना साहित्य जगत की अपूरणीय क्षति है । उनकी यादों को सादर नमन ।

Seema Singh said...

बहुत अच्छी कथा है। आपकी रचनाएं आपके आलेख और आपकी कही हुई बातें हृदय में अंकित हैं सर!आप सदैव हम सबके लिए पथप्रदर्शक रहेंगे।आपकी कमी हमें सदा खलेगी। आपकी स्मृतियों को सादर नमन🙏🙏