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Oct 24, 2009

हाय तौबा क्यों?

- संजीव खुदशाह
पंच हो, सरपंच हो, पार्षद हो, विधायक हो, या सांसद हो सभी की गाड़ी के नेम प्लेट पर ऐसा चिन्ह जरूर होगा। जो सुरक्षा जांच टीम पर भारी पड़ेगा और वह व्यक्ति जांच से बच जायेगा। जांच से बचा यानी इज्जत बच गई। सिर्फ इज्जत बची ही नहीं बल्कि इज्जत बढ़ भी जाती है ऐसे जांच से बचने से। देखिये कितनी काम की है ये जांच।
अमेरिकी हवाई अड्डा में  'माई नेम इज, शाहरूख खान' शाहरूख खान के ये स्टाईलिश बोल सुरक्षा हेतु लगे कम्प्यूटर को नागवार गुजरे और कम्प्युटर ने सुरक्षा अधिकरियों को गहन जांच के आदेश दे दिये लगभग दो घंटे तक शाहरूख खान को जांच हेतु रोके रखा बाद में पूरी संतुष्टि पश्चात छोड़ दिया। इस पर भारतीय मीडिया ने खूब हाय तौबा मचाई शाहरूख खान न हुए भारत के बादशाह हो गये। न्यूज चैनलों ने टी आर पी बढ़ाने का कोई भी मौका हाथ से जाने न दिया। शाहरूख की सुरक्षा जांच को भारत की बेइज्जत्ती के रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया। क्या भारत की इज्जत इतनी सस्ती है कि अभिनेता की सुरक्षा जांच से बेइज्जत हो जाये। जबकि गौरतलब है कि इससे पहले अमेरिका में जसवंत सिंह की जांच के दौरान कपड़े भी उतारे गये तथा कुछ दिन पूर्व पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे.अब्दुल कलाम को भारत में ही अमेरिकी हवाई कम्पनी के सुरक्षा अधिकारियों ने आम आदमी की भांति रेगुलर जांच की। तब  शायद मीडिया की नींद नहीं खुली रही होगी। लेकिन बाद में कई बुद्धिजीवियों ने इन समस्त जांच पर खूब कड़ी आलोचना की तथा अमेरिका को जी भरकर कोसा भी। उनका मानना है कि वीआईपी की जांच उसकी इज्जत से खिलवाड़ है ये जांच नहीं होनी चाहिए। अमेरिका बार-बार ऐसा करके हमारी इज्जत से खिलवाड़ कर रहा है भारत को चाहिए की उसका विरोध करे।
दरअसल ऐसा सोचने वाले तथा हाय तौबा मचाने वाले लोग उसी पुरानी मानसिकता वाले लोग हैं जो वीआईपी को इन्सान, बाकी को जानवर समझते हैं। वीआईपी यानी पैसे वाला या हर वो आदमी जो आम आदमी नहीं है। भारत में हर व्यक्ति सुरक्षा या अन्य किसी भी प्रकार की जांच से बचना चाहते हैं। एक अदना से पुलिस के सिपाही को ही देख लीजिए उसकी छोटी सी मोटर सायकल में लिखा होता है बड़ा सा 'पुलिस' उद्देश्य एक मात्र सुरक्षा जांच (टे्रफिक जांच भी) से बचना। चाहे पंच हो, सरपंच हो, पार्षद हो, विधायक हो, या सांसद हो सभी की गाड़ी के नेम प्लेट पर ऐसा चिन्ह जरूर होगा। जो सुरक्षा जांच टीम पर भारी पड़ेगा और वह व्यक्ति जांच से बच जायेगा। जांच से बचा यानी इज्जत बच गई। सिर्फ इज्जत बची ही नहीं बल्कि इज्जत बढ़ भी जाती है ऐसे जांच से बच निकलने से। देखिये कितनी काम की है ये जांच। तभी तो सारे वीआईपी जेड सुरक्षा 1-4 के गार्ड की सुरक्षा लेने हेतु जुगत लगाते रहते हैं चाहे इसके लिए फर्जी फोन का सहारा ही क्यों न लेना पड़ जाये। आजकल इस फेहरिस्त में क्रिकेट खिलाड़ी, अभिनेता भी शामिल हो गये हैं। नेताओं का तो इसमें जन्मजात अधिकार था ही। फिर प्रश्न खड़ा होता है वह नेता, नेता ही कैसा जो आम आदमी से असुरक्षित है, वह खिलाड़ी सिर्फ खिलाड़ी तो नहीं है जिसे सुरक्षा चाहिए अभिनेता में क्या खोट है जो अपने चाहने वालों से असुरक्षित है।
भारत में बड़ी जबरदस्त परंपरा है जिसकी सुरक्षा में आदमी लगे हों उसकी सुरक्षा जांच नहीं होती। जब कोई हवाई जहाज से आये तो उसकी जांच नहीं होती। जब कोई ट्रेन के वातानुकूलित डिब्बे से उतरे तो उसकी जांच नहीं होती। अगर जांच की गई तो उस सुरक्षा अधिकारी की जांच चालू हो सकती है। हो सकता है बाद में उसके स्थानांतरण या निलंबन तक ये जांच चलती रहे। इससे अंदाज लग सकता है कि कितना निरंकुश है हमारा वीआईपी समाज इसी मानसिकता का फायदा आंतकवादियों को मिलता है यही कारण है कि अमेरिका में 9/11/2001 के बाद एक भी आतंकवादी हमले नहीं हुए। लेकिन भारत में पूरा कलेण्डर आतंकवादी हमलों से भरा हुआ है। आखिर क्यूं भारतीय वीआईपी सुरक्षा जांच का सामना करने से कतराता है क्या सिर्फ अहं के कारण। कितने ही आतंकवादी भारत में एक वीआईपी की तरह प्रवेश हो जाते हैं।
हाल ही में दिल्ली में हुए हमले के सभी आरोपी ट्रेन के वातानुकूलित डिब्बे में सफर करते हुए विस्फोटक सामग्री लेकर आये थे। जो वीआईपी सदृश्य होने के कारण जांच से बज गये। क्योंकि भारत में सब कुछ हो सकता है वीआईपी की जांच नहीं हो सकती यह बात देश के दुश्मन को अच्छी तरह मालूम है। क्योंकि इससे वीआईपी की इज्जत में बट्टा लग जाता है।
अभी वक्त अमेरिका पर उंगली उठाने का नहीं हैं। बल्कि उससे सीख लेने का है। यह गहन विचार का बिन्दु है कि ट्विन टावर हमले के बाद आज तक अमेरिका में कोई आतंकवादी हमला नहीं हो सका। उनकी सुरक्षा नीति से हमें सीख लेनी चाहिए।
अमेरिका आज विश्व में सर्वश्रेष्ठ है तो हमें भी अपनी आत्म- मुग्धता से बाहर आना चाहिए। उनके सर्वश्रेष्ठता के मापदण्ड को देख कर खुश होना चाहिए। जहां भारत में आम आदमी पर सारे नियम लागू होते हैं वही वीआईपी एवं पूंजीपतियों का बोल-बाला बढ़ रहा है। ऐसे में एक सरकारी ओहदेदार सरकारी खजाने को चट करने में लगा हुआ है। चाहे चारा घोटाला हो या स्टांप घोटाला या हवाला का मामला या फिर सरकारी सम्पतियों के दुरूपयोग का मामला हो। जबकि अमेरिका के राष्ट्रपति को व्हाईट हाउस में रहने एवं अपनी निजी सेवाओं का खर्च स्वयं वहन करना पड़ता है। अमेरिका में सुरक्षा जांच को महत्व देना प्रतिष्ठित नागरिक गुण माना जाता है। अमेरिका की सुरक्षा नीति ऐसी है जिसमें मंत्री, नेता, अफसर, राष्ट्रपति, सेलिब्रेटी यहां तक की जज भी जांच के दायरे से बाहर नहीं है। वहां प्रत्येक व्यक्ति को सुरक्षा जांच की कसौटी पर खरा उतरना पड़ता है। ताकि कोई भी आतंकवादी गतिविधियां न हो सके। ऐसी व्यवस्था से मजाल है कोई चिडिय़ा भी पर मार सके।
अब प्रश्न यह उठता है कि जब भारत में आतंकवाद तथा नक्सलवाद सिर चढ़ कर बोल रहा है, हमारी सुरक्षा व्यवस्था बेमानी हो रही है, जो केवल आम आदमी को परेशान करने का सबब बन गई है। तो क्या भारत अमेरिका का विरोध करने में अपनी शक्ति जाया करेगा या उनकी लाजवाब सुरक्षा नीति से कुछ सीख लेने की चेष्टा भी करेगा।

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