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Aug 20, 2009

हम जीती हुई बाजी क्यों हार गए

- डा. परदेशीराम वर्मा
देशभर से कुष्ठ की बिदाई हो रही है मगर हमारा छत्तीसगढ़  देशभर में सर्वाधिक कुष्ठ प्रभावित राज्य के रूप में चिन्हित है। 2005 में देश ने कुष्ठ उन्मूलन का लक्ष्य तकनीकी तौर पर पा लिया। दस हजार की जनसंख्या में एक से कम कुष्ठ रोगी होने की स्थिति बनी इसीलिए राष्ट्र को कुष्ठ मुक्त होने का दर्जा मिला। यह कुष्ठ विरोधी गतिविधियों पर नजर रखने वाले वैश्विक संस्थाओं से प्राप्त सर्टिफिकेट है। उत्र्तीण देश का यह उदास हमारा प्रांत छत्तीसगढ़ इस मामले में अनुत्र्तीण है। छत्तीसगढ़  के अतिरिक्त उड़ीसा, बिहार, उत्तरप्रदेश, बंगाल एवं दिल्ली भी कुष्ठ प्रभावित राज्यों में आते हैं मगर छत्तीसगढ़  का नंबर अव्वल है। शराब पीने में अव्वल प्रान्त छत्तीसगढ़  कुष्ठ से संत्रस्त लोगों की दृष्टि से भी अव्वल है।
राज्य में महासमुंद, रायगढ़, कोरबा, रायपुर, बिलासपुर, कवर्धा, जांजगीर और धमतरी सर्वाधिक कुष्ठ प्रभावित जिले हैं। छत्तीसगढ़  में वर्तमान में 2.34 प्रतिशत लोग प्रति दस हजार की जनसंख्या में उपचाररत हैं। कांकेर, कोरिया, जशपुर, दंतेवाड़ा, सरगुजा जिलों में कुष्ठ रोग से मुक्ति का लक्ष्य प्राप्त कर लिया है। दुर्ग और राजनांदगांव जिले में 'डेनलप' के सहयोग से अभूतपूर्व प्रेरक कार्यक्रम हुए। दुर्ग एवं राजनांदगांव में हुए कुष्ठ विरोधी काम की सराहना देशभर में हुई। 150 लोगों की प्रेरणा के लिए साइकिल यात्रा भी यहां निकली। रमेश साहू ने इसका नेतृत्व किया था। अण्डा, अरजुन्दा, डौंडी लोहारा, बालोद, राजहरा, गुरूर, पाटन, कुम्हारी, बेमेतरा, धमधा होते हुए यह प्रेरणा रैली दुर्ग पहुंची थी। लांयस क्लब, मिडटाउन महिला मंडल, जिला साक्षरता समिति से लेकर तमाम  सेवाभावी लोगों ने इस अभियान के लिए काम किया।
इस अभियान में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के पंथी नर्तक स्व.देवदास बंजारे ने अपने दल के साथ खूब काम किया था। वे गुरु वंदना का चर्चित गीत आरुगफूल को इसी अभियान के दौरान गाते हुए गांव-गांव पहुंचे। पद्मभूषण तीजनबाई, संगीत नाटक अकादमी से अभी-अभी बिसमिल्ला खां सम्मान प्राप्त रितु वर्मा, स्व. झाडूराम देवांगन, दीपक चंद्राकर, विभाष उपाध्याय, निशा वर्मा एवं प्रख्यात निर्देशक रामहृदय तिवारी ने इस अभियान में खूब काम किया। एक महत्वपूर्ण पुस्तक की निकली 'संवेदना के धरातल'  जिसका विमोचन तत्कालीन महामहिम राज्यपाल ने दुर्ग में किया। अपने सम्मान के अवसर पर तत्कालीन कलेक्टर बसंत प्रताप सिंह ने राष्ट्रपति दिनकर की सटीक काव्य पंक्तियों को प्रस्तुत कर तटस्थ लोगों को आगाह किया ...
'समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल ब्याध,
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।'
प्रेरणा का व्यापक कार्यक्रम मध्यप्रदेश सरकार की शासकीय मशीनरी ने किया। पता नहीं क्यों छत्तीसगढ़  सरकार इस मामले में उदासीन है। अब डेनमार्क का सहयोग भी नहीं रहा। लेकिन छत्तीसगढ़  में साधन की कमी नहीं है। संकल्प शक्ति की कमी के कारण ही जीती सी बाजी हार में बदल रही है।
आइये, प्रेरणा, प्रचार-प्रसार और जागृति के आशाप्रद दिनों की कुछ यादें इस संदर्भ में ताजी कर लें। जिससे ज्ञात हो कि किस तरह कार्यकर्ताओं ने संवेदना के धरातल को स्पर्श किया। उन्होंने गीत, संगीत, नाटक, लोककथा, पंडवानी, भरथरी, चनैनी, ढोला मारू और नाचा आदि विधाओं को कुष्ठ उन्मूलन से जोड़ा। सर्वाधिक प्रभावी विधा नाटक और नुक्कड़ नाटकों का गांव-गांव, गली-गली उपयोग हुआ।
लगभग पचास नए नाटक दुर्ग जिले में ही लिखे गये। जनहित के किसी अभियान के लिए नाटक लिखने का किसी एक जिले के रचनाकारों के नाम यह रिकार्ड आज भी बरकरार है। नाटक लिखने के पहले लेखकों कुष्ठ रोग के विशेषज्ञ डाक्टरों ने पूरी तरह जानकारी और सूचना से समृद्ध किया। लगातार वर्कशाप हुए तब लेखक भी भ्रांति से मुक्त हुआ और भ्रांतियों के खिलाफ रचनात्मक जेहाद में शामिल हो सका।
भ्रांत धारणाओं के कारण आज से पचीस तीस वर्ष पूर्व कुष्ठ को भगवान दण्ड या ईश्वरीय प्रकोप माना जाता था। पाप से कुष्ठ को जोड़ा जाता था। नाटकों के माध्यम से बताया गया कि कुष्ठ एक कीड़े से या कीट से होता है। जिसका इलाज सम्भव है। इस संदर्भ में रिसाली थियेटर के नाटक कुष्ठ कीट वध का उल्लेख किया जाता है। डीपी देशमुख के निर्देशन में सर्वाधिक प्रदर्शन इस नाटक के हुए। नाटकों में पात्रों के संवादों के माध्यम से कुष्ठ के लक्षणों को बखूबी चर्चा होती। जैसे यही कि नसों में कड़ापन, चपड़ी पर सुन्नता, लाल चकत्ता, चेहरे पर चिकनाहट कुष्ठ के लक्षण हैं। यह बताया जाता। हाथों की ऊंगलियों में पकड़ का कमजोर होना। उंगलियों को मुडऩे-मोडऩे में असुविधा आदि की चर्चा चर्चित नाटक 'मितान' में हुई। इस नाटक को टेलीफिल्म के रूप में इलेक्ट्रानिक माध्यम में भी खूब स्वीकृति मिली। नाटक में महेश वर्मा, आर.डी.राव और शैलजा चंद्राकर ने पात्रों को सजीव किया। हाथ से साबुन के फिसल पडऩे को साबुन की चिकनाहट से जोड़कर बहाना बनाने वाले नायक को नायिका ने बताया कि यह सामान्य रोग है। कुष्ठ में ऐसा होता है। हिम्मत से जांच के बाद खुलकर दवा लेने से रोग पूर्णत: ठीक हो जाता है।
नाटकों के बेहद प्रभावी प्रदर्शनों के कारण ही मेरे गांव लिमतरा का समेलाल भीतर से इतना बलवान हुआ कि तत्कालीन कलेक्टर श्री बसंत प्रताप सिंह के आतिथ्य में आयोजित जनसभा में उसने कहा कि हां मुझे कुष्ठ है और मैं दवा खाता हूं, जिससे मुझे इस रोग से लगभग पूर्णतया मुक्ति मिल गई है। गांव के लोग इस साहसिक वक्तव्य से ठगे से रह गये। कहां तो रोग को लोग छुपाते- दबाते घुट- घुट कर जी रहे थे और कहां समेलाल ने सार्वजनिक मंच से यह बता दिया कि कुष्ठ भी साधारण अन्य रोग की तरह एक बीमारी है। इसका औषधि से पूर्ण इलाज होता है।
भ्रांति और जड़ता अगर किसी रोग के आड़े आता था तो वह था कुष्ठ रोग। अन्य रोगों का रोगी शरीर पर पीड़ा झेलता है। कुष्ठ रोग का रोगी मन पर चोट, तन और मन पर एक प्रहार झेलता है। ऐसे मायावी रोग की जड़ता से नाटकों ने लडऩे का जज्बा पैदा किया। लोग जागे। उन्हें पता चला कि कुष्ठ भी एक सामान्य रोग है। लेकिन धीरे-धीरे परिवर्तन  हुआ और गांव-गांव में निर्धारित तिथि को लोग कुष्ठ की दवा लेने एकत्र होने लगे। दुर्ग जिले की समाज सेविका गनेसिया बाई देशमुख ने अपने ही गांव में कुष्ठ रोगियों के उपचार के लिए कार्यशाला संयोजित किया। लोग खुलकर कार्यशाला में आये। गलित अंगों वाले जीर्ण रोगियों के घावों को अपने हाथों से साफ कर गनेसिया बाई ने बताया कि यह रोग स्पर्श से नहीं फैलता है।
दुर्ग जिला साक्षरता समिति के तत्कालीन सचिव डी.एन.शर्मा द्वारा निर्मित साक्षरता सेना के समर्पित कार्यकर्ता और प्रेरक सेवाभावी व्यक्ति की कुष्ठ उन्मूलन के कार्यक्रम में सहभागी बने। प्रेरणा प्रचार प्रमुख भगवानलाल शर्मा एवं जिला कुष्ठ अधिकारी डा. एस.एल गुप्ता ने समन्वय का काम भी सम्हाला। दुर्ग जिले के एक और अधिकारी श्री बी.एल.तिवारी आज छत्तीसगढ़ में मार्कफेड के संचालक हैं। कवियों, साहित्यकारों और चिंतकों को उन्होंने अपने करिश्माई व्यक्तित्व एवं वक्तव्य से इस अभियान का हिस्सा बनाया।
श्री प्रहलाद सिंह तोमर, श्री पुखराज मारू, बाद में कलेक्टर एवं कुष्ठ साक्षरता समिति के अध्यक्ष बने। एक ठोस बुनियाद श्री विवेक ढांढ के कार्यकाल में ऐसी बनी कि उस पर ही साक्षरता एवं कुष्ठ उन्मूलन का मजबूत ढांचा खड़ा होता चला गया। दुर्ग के तत्कालीन कलेक्टर श्री विवेक ढांढ का वह जुझारू तेवर जिन्होंने देखा है वे जागरण के उन सुनहरे दिनों को याद कर आज आह भरते हैं।
लेकिन इन सबके बाद भी कुष्ठ उन्मूलन का लगभग जीता हुआ युद्ध शीत युद्ध में तब्दील हो गया है। सुरसा के मुंह की तरह ब्याधि का संसार सिमट ही नहीं रहा। जबकि इस रोग की बिदाई भी बड़ी माता आदि की तरह हो जानी थी। कुष्ठ उन्मूलन में लगी फौज के सिपाही अभी भी उसी जोश और जज्बे से लबरेज हैं मगर शासकीय संकल्पों का अभाव और सुविधा की कमी के कारण वे मोर्चा फतह नहीं कर पा रहे।
लोकमंचीय प्रस्तुतियां तथा नाटक जनजागरण तो करते हैं। मगर शासन को जगाने में ये सक्षम नहीं हो पाते। हालांकि वेणु गोपाल ने यह लिखा है ...
 'हिलाने से
बच्चा सोता है,
राजा जागता है।'
स्वयंसेवी संस्थाओं की आकांक्षाओं के अनुरूप कलाकारों के हरावल दस्तों को पुन: मैदान में उतरना होगा। नए सिरे से शुरुआत करनी होगी। जड़ता से लड़ता लोकमंच
आज भी पूर्णत: कारगर हो सकता है। सिर्फ संकल्पित होने की आवश्यकता है।
  संपर्क : एल.आई.जी 18, आमदी नगर, भिलाई (छ. ग.)

1 comment:

Rashmi Swaroop said...

chhatisgarh me kushth ki stithi ke baare me pata chala,
gyaanwardhak aur jagrukta failane wale lekh ke liye dhanyawaad.