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Aug 15, 2008

देश के नक्शे पर छत्तीसगढ़ कहाँ है?

देश के नक्शे पर छत्तीसगढ़ कहाँ है?
- विनोद साव


पर्यटन का जो भी मानचित्र देश में प्रकाशित हो रहा है, उसमें यह स्पष्ट है कि छत्तीसगढ़ का देश के महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों के बीच कोई स्थान नहीं बन पा रहा है। देश के हिन्दी और अंग्रेजी में प्रकाशित किसी भी पर्यटन साहित्य या गाइड पुस्तिका को देखें या पर्यटन स्थलों को दर्शाने वाले शे को देखें तो उसमें छत्तीसगढ़ क्षेत्र के किसी भी स्थान को प्रमुखता से नहीं दर्शाया जा रहा है। कभी किसी शे में भिलाई को एक औद्योगिक स्थल के रुप में दिखा दिया जाता है, या किसी पर्यटन पुस्तिका में बस्तर के माड़िया- मूड़िया आदिवासियों के बारे में संक्षेप में कुछ बता दिया जाता है। इन दोनों ही उदाहरणों से समूचे छत्तीसगढ़ प्रांत का देश के पर्यटन जगत में वह स्थान नहीं बनता जिसके लिए कोई पर्यटन स्थल जाना जाता हैं। हर साल देश भर सें देशाटन या तीर्थाटन के लिए निकलने वाले लाखों सैलानी और तीर्थयात्री अपनी यात्रा के लिए छत्तीसगढ़ की ओर उन्मुख नहीं हो पा रहे हैं।
देश का हृदय स्थल
..पर केवल पिकनिक स्पॉट :
देश का यह हृदय स्थल रहने बसने के लिए तो देश का स्वर्ग माना जाता है। इस मायने में कि यहां का वातावरण बड़ा शान्त और सहिष्णु है। अपनी आजीविका की खोज में देश के किसी भी हिस्से से यहां आने और फिर यहां बस जाने वालों के लिए तो यह सचमुच स्वर्ग है। पर पर्यटन की दृष्टि से घुमन्तू जीवन जीने वालों की प्राथमिकता में यह सबसे नीचे आने वाला प्रदेश है। राज्य के नवनिर्माण के आठ वर्षों में स्थिति आज भी वैसी ही है जबकि दो सिरमौर सत्तादल अपनी- अपनी ताकत दिखा गए हैं। अभी तक हालत यह है इस राज्य के दर्शनीय स्थल पर्यटन के विराट रुप को प्राप्त नहीं कर पाए हैं और मात्र पिकनिक स्पॉट बनकर ही रह गए हैं जहां सबेरे सबेरे टाटा सूमो में बैठकर घुम कड़ लोगों का एक समूह उतरता है और शाम-रात तक अपने घर वापस लौट जाता है।
घुमक्‍कड़ छत्तीसगढ़िया :
यह सही है कि छत्तीसगढ़ के लोग तीर्थ या़त्राएं बहुत करते हैं। और यहां गांवों से भी हर साल हजारों तीर्थयात्री देश के अनेक तीर्थस्थानों के लिए निकल पड़ते हैं। इनमें इलाहाबाद, बनारस, तिरुपति, रामेश्वरम, पुरी, गंगासागर, शिरडी और आजकल अमरनाथ जाने वालों की संख्या अधिक है। पर ऐसी ही तीर्थयात्रा या किसी भी प्रकार के पर्यटन के उद्देश्य से छत्तीसगढ़ आने वालों का कोई आंकड़ा खोजा जाए तो हमारा पर्यटन एवं संस्कृति विभाग बगलें झांकने लगेगा। शायद यही कारण है कि पर्यटन की आस और प्यास लिये छत्तीसगढ़ का जन मानस यात्रा के लिए बाहर जाने को हरदम एक पैर पर खड़ा रहता है। यात्रा के नाम पर खर्च करने में आगे यह नवप्रदेश वैसा ही है जैसा बंगाल और महाराष्ट्र। देश के किसी भी तीर्थस्थान पर गांव से आए छत्तीसगढ़िया लोगों के समूह को देखा जा सकता है। यहां हर घर के भगवान खोली (कमरे) में तिरुपति बालाजी और सांई बाबा के चित्र भी देखे जा सकते हैं।
विरासत में मिली विकास की धीमी गति :
पर्यटन विकास की धीमी गति इस राज्य को विरासत में मिली है। यही हाल अविभाजित राज्य मध्यप्रदेश का था। जंगल, पहाड़ और कई प्राकृतिक स्थलों से समृद्घ रहने के बावजूद पर्यटन विकास में मध्यप्रदेश हमेशा ही एक पिछड़ा हुआ राज्य माना गया। पर्यटन के नाम पर यहां राज्य की नीति में कोई उत्साह उमंग कभी दिखा नहीं। पचमढ़ी, भे़डाघाट, खजुराहो, मांडवगढ़ और उज्जैन जैसे सुन्दर दर्शनीय स्थलों के होने के बाद भी कोई पर्यटन नीति होने के कारण भी एक गरीब राज्य की छवि मध्यप्रदेश की बनी रही। कसम से आपने मध्यप्रदेश देखा ही नहीं जैसे दिलकश जुमले फेंकने के बाद भी देश का सबसे बड़ा यह राज्य पर्यटन विकास के मामले में सबसे पीछे ही रहा। जबकि इसके पास सतपु़डा और विंध्याचल जैसी खूबसूरत पहाड़ियॉ हैं। दो ज्योतिर्लिंग - महाकालेश्वर और ओंकारेश्वर हैं। इन्दौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर जैसे अपने समय के प्रसिद्घ और समृद्घ नगर रहे। उसके बाद भी पर्यटन सुविधाओं की दृष्टि से मध्यप्रदेश का बुरा हाल है तो छत्तीसगढ़ का या होगा जिसके पास मध्यप्रदेश के बराबर नैसर्गिक, पौराणिक और ऐतिहासिक सम्पदा नहीं है।
फिर भी छत्तीसगढ़ :
अलग हो जाने के बाद छत्तीसगढ़ को लगभग एक चौथाई भूखण्ड मिला है। जो छोटा राज्य हो जाने के बाद भी यह देश के क्फ् राज्यों से बड़ा राज्य माना जाता है। अब इस राज्य के जंगल से मिलने वाला राजस्व इतना तो है कि वह पर्यटन के लिए जितना संभव हो पाए, कर सके। अब यह राज्य अपना हिस्सा अलग पाकर इसके पर्यटन को किस तरह बढ़ावा दे सकता है यह इसके लिए एक बड़ी चुनौती होगी। प्राकृतिक संसाधनों की तो यहां कोई कमी नहीं है। राज्य की वन सम्पदा से प्राप्त भारी भरकम राजस्व शुल्क से अपनी विकास नीतियों के जरिये यहां के पर्यटन की संभावनाओं को तलाशना होगा। वर्तमान उद्योग नीति में पर्यटन को किस तरह से आय का जरिया बनाया जा सकता है, राज्य की इस व्यावसायिक दृष्टि को भी देखना होगा। योंकि दिनोंदिन पर्यटन उद्योग सारी दुनियां में पूंजी निवेश और आय का केवल एक प्रमुख श्रोत बल्कि एक भारी भरकम व्यवसाय बनता जा रहा है।
क्‍या है छत्तीसगढ़ के पास :
वर्तमान स्थिति इस राज्य की यह है कि अपनी विरासत में मिली कमी के कारण इसके पास पहले से ही कोई बड़ा तीर्थस्थान या पर्यटन स्थल नहीं है। कोई मुख्य धाम है यहॉं। बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक भी ज्योतिर्लिंग इसके क्षेत्र में नही है। ही समुद्र तट के यह किनारे बसा राज्य है। इसकी पर्वत श्रृंखलाओं में उतनी उंचाइयाँ और बर्फीली चोटियाँ नहीं हैं जिससे कोई हिल-स्टेशन प्रसिद्घ होता है। नदियां तो इस राज्य की बारहों माह बह नहीं पाती हैं उनकी धार टूटती रहती है। कई नदियां तो लगभग लुप्तप्राय स्थिति में हैं। यही वे प्राकृतिक संसाधन हैं जो किसी राज्य को पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाते है। यहां कोई मेट्रोसिटी या महानगर भी नहीं है जिसकी चकाचौंध लोगों को खींचती हो। रायपुर में अभी अभी खुले पहले मल्टीप्ले शॉपिंग माल ने कुछ हलचल की है। रायपुर की व्यावसायिक महत्ता और परिवहन केन्द्र शुरु से ही उड़ीसा और आन्ध्रप्रदेश को अपनी ओर खिंचते रहे हैं।
या यह पर्यटन विहीन राज्यों में शामिल हो जावेगा :
अपने नैसर्गिक और भौतिक संसाधन होने के बाद भी देश के कई बड़े राज्य पर्यटन के मामले में बहुत पीछे चल रहे हैं। योंकि उनकी कोई सुनीति नहीं बन पाई है। कुछ तो पर्यटन विहीन हो गए हैं। इनमें उत्तर में हरियाणा, दक्षिण में आन्ध्रप्रदेश, पूर्व में गुजरात और पश्चिम में बिहार - ऐसे ही बड़े और पुराने राज्य हैं जिनकी पर्यटन उद्योग में कोई छवि नहीं बन पाई है। बिहार और झारखण्ड तो लगभग पर्यटनविहीन हो चले हैं। छत्तीसगढ़ की तरह इन राज्यों में भी पर्यटन विकास एक भारी चुनौती है। यहां भी देश भर से सैलानियों का आगमन नहीं होता। जब बिहार के विश्व प्रसिद्घ नालन्दा और बोधगया को देखने के लिए पर्याप्त सैलानी पहंुच नहीं पा रहे हैं तो छत्तीसगढ़ के सिरपुर और राजिम को देखने कौन आवेगा?
मिल जाता अगर अमरकंटक :
अमरकंटक एक ऐसा स्थान है जो मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के सिवान पर आता है। यह शहडोल जिले और बिलासपुर जिले की सीमा पर बसा है। कई बार इसे भ्रमवश छत्तीसगढ़ के शे पर दर्शा दिया जाता है। वैसे भी अमरकंटक में ज्यादा दर्शनार्थी छत्तीसगढ़ से ही पहुंचते हैं। छत्तीसगढ़ राज्य जब अलग बना तो मध्यप्रदेश के बालाघाट, मंडला और शहडोल जिले में अपने को छत्तीसगढ़ राज्य में ही शामिल कर लिए जाने की सुगबुगाहट थी। यह सुगबुगहाट अमरकंटक में और भी जोरों से थी योंकि अमरकंटकवासी शुरु से ही मध्यप्रदेश में अपने को उपेक्षित मानते रहे हैं। अमरकंटक का प्राकृतिक सौन्दर्य पचमढ़ी के जैसा होते हुए भी यहां सदैव सुविधाओं का अभाव रहा है। इसलिए भी मध्यप्रदेश के अन्य पर्यटन स्थलों की तुलना में अमरकंटक सबसे कमजोर बैठता था। जबकि छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थलों की तुलना अगर अमरकंटक से की जाए तो अमरकंटक ही सबसे महत्वपूर्ण हो जाएगा। आज भी अमरकंटक यदि छत्तीसगढ़ को दे दिया जाए तो इसका मान मनुहार सबसे ज्यादा होगा और यह छत्तीसगढ़ का सबसे अच्छा पर्यटन स्थल बन जाएगा। इसमें अमरकंटक और छत्तीसगढ़ दोनों का भला होगा।
कुछ बातें हैं छत्तीसगढ़ में :
बावजूद इन कमियों के छत्तीसगढ़ के पास जो प्राकृतिक संसाधन मौजूद हैं उनमें बस्तर, सरगुजा, बारनवापारा, उदन्ती और अचनाकमर ( जिसे अचानकमार भी कह दिया जाता है) जैसे वन प्रांतर हैं। चीतरकोट और तीरथगढ़ जैसे जलप्रपात हैं। केशकाल और कांगेर जैसी घाटियाँ हैं गंगरेल, हसदो-बांगो, खूंटा और तांदुला बांध जैसे विशाल जलाशय हैं। डोंगरगढ़, रतनपुर और राजिम जैसे मानता वाले तीर्थस्थल हैं। सिरपुर, मल्हार, और जांजगीर जैसे दुर्लभ पुरातत्व हैं। इनके संरक्षण संवद्र्घन और विकास का हल्ला तो होता ही रहता है। इन्हें आगे बढ़ाए जाने की मांग कभी जनमानस में होती है तो कभी जनप्रतिनिधियों में। सरकारी स्तर पर भी यदा कदा प्रयास किए जाते हैं। पर कुल मिलाकर कोई ऐसी तस्वीर नहीं बन पाती कि जिससे छत्तीसगढ़ देश भर से आने वाले सैलानियों के लिए आकर्षण का एक बड़ा केन्द्र बन जाय।
हो जाए कुछ टूर पैकेज :
इन सब दृष्टियों से देखा जाए तो छत्तीसगढ़ के कुछ स्थान तो बहुत ही आकर्षक हैं जहां पर्यटन विकास की अच्छी संभावनाएं हैं। इनमें चीतरकोट और तीरथगढ़ दो ऐसे जल प्रपात हैं जिनकी जो का जलप्रपात देश में अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता। चीतरकोट (जिसका चलताउ नाम चित्रकूट या चित्रकोट है - पर बस्तर की हल्बी बोली में चीतरकोट है ) यह जलप्रपात देश के सबसे चौडे प्रपात के रुप में माना जाता है। पूरी की पूरी इन्द्रावती नदी यहां अपने जिस वैभव और गरिमामय रुप में नीचे गिरती है उसका सानी कहीं और देखने को नहीं मिलता। इसे रात्रि के फ्लड लाइट में देखना और भी रोमांचकारी लगता है। दूसरा जलप्रपात तीरथगढ़ है जो देश के सबसे उंचे झरनों मे से एक है। यह झरना झरझराते हुए बहुत उंचाई से लहराते हुए नीचे गिरता है। यह असंख्य जलबिन्दुओं की फुहार पैदा करता हुआ अपने आसपास कोहरे सदृश्य मनोरम दिखलाई देता है। नीचे गिरने के बाद यह कई चरणों में प्रपात बनाता हुआ चलता है। यह पचमढ़ी के प्रपातों की तरह फाल टू फाल ट्रैकिंग के लिए भी उपयु झरना है। यह पर्यटकों के स्नान के लिए बहुत आनंददायक और सुविधाजनक है। यहीं कांगेर घाटी के आसपास कुटुम्बसर कैलाश गुफाओं का अपना अद्भुत नजारा है। जगदलपुर को बेस सेन्टर बनाकर इसे एक अच्छे पैकेज का रुप दिया जा सकता है। एक बार हजार डालर वाला पैकेज बनाकर अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को लुभाने की महत्वाकांक्षी कोशिश की गई थी जो असफल हुई। इसे फिर से व्यावहारिक बनाना होगा। उसी तरह छत्तीसगढ़ के दो वन प्रांतर अपने घने जंगलों और आरामदेह वातावरण के लिए प्रसिद्घ हैं - ये हैं बारनवापारा और उदन्ती के सुन्दर और सुरम्य वन। ये वन्यप्राणियों के लिए एक ऐशगाह है। जहां उन्हें उन्मु जीवन जीते हुए देखा जा सकता है। विशेषकर बारनवापारा के पहाड़विहीन पठारी जंगल तो अद्भुत नजारा पेश करते हैं। इन दोनों ही जंगलों के बीच की सड़कें भी खूब बनी हैं। जिनसे यहां पहुंचना और घूमना फिरना आसान है। यहां भ्रमण करने आनंद उठाने के लिए एक आकर्षक पैकेज तैयार किया गया था जो बेहतर तालमेल के अभाव में बन्द हो गया। इसे आरंभ कर प्रचारित किए जाने की जरुरत है। उसी तरह सिरपुर अपने बौद्घकालीन पुरातात्विक वैभव के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसे शायद वर्ड हैरिटेज में लिया भी गया है। महानदी के किनारे सिरपुर का फैला पसरा पुरातत्व अपने सम्पूर्ण वैभव के साथ उपस्थित है। यहां चाहें तो इनके इतिहास और पुरातत्व को व्याख्यायित करते हुए लाइट एंड साउण्ड शो का कार्यक्रम सप्ताह में दो दिन शनिवार, रविवार तथा अन्य छुटि्टयों के दिन चलाए जा सकते हैं।
रेल चली सरगुजा की ओर :
रेल चलाने का ज्यादा हल्ला हुआ था जगदलपुर के लिए। जिसमें रावघाट परियोजना से जोडते हुए दल्ली राजहरा रेल लाइन का विस्तार कर उसे जगदलपुर से जोडा जाए पर रेल चलवा लेने में बाजी मार ली अम्बिकापुर ने। जिसका परिणाम सामने आया दुर्ग-अम्बिकापुर सप्रेस। रात में दुर्ग से छूटने वाली इस ट्रेन में अम्बिकापुर के लिए आरक्षण आसानी से सुलभ है। सूर्योदय से पहले ही में सरगुजा की पहाड़ियों और जंगलों का दर्शन सम्मोहक दृश्य पैदा करता है। उस पर अम्बिकापुर का नया रेलवे स्टेशन किसी महल की तरह खूबसूरत बन पड़ा है। ऐसी कोई विशेष ट्रेन चलाकर सरगुजा का एक आकर्षक टूर पैकेज भी तैयार किया जा सकता है।


अरकू से आशा :
आन्ध्रप्रदेश की अरकू घाटी का नाम पिछले कुछ अरसों से पर्यटन स्थल के नाम पर चमका है। सैलानी उस तरफ आकर्षित हो रहे हंै। इससे यह साबित होता है कि दर्शनीय स्थान तो हर राज्य के पास हर तरह के होते हैं पर उनके भी उभरने के दिन आते हैं बशर्ते उस दिशा में कोशिश की जा रही हो। अरकू घाटी उसी रेल लाइन पर स्थित है जो विशाखापटनम से जगदलपुर किरन्दुल जाती है। उस लाइन के कई सुरम्य स्थल छत्तीसगढ़ क्षेत्र में आते हैं। यह भी माना जाता है कि दुनियाँ में ब्रॉडगेज रेल लाइन का सबसे उंचा स्थान भी इसी लाइन पर स्थित है। जिस तरह पर्यटन के क्षेत्र में अरकू आगे बढ़ रहा है और उसे देखने के लिए देश के सैलानी आगे बढ़ रहे हैं उसी तरह छत्तीसगढ़ के भी दर्शनीय स्थलों को सामने लाया जा सकता है। इस तरह की कोशिशों के लिए छत्तीसगढ़ शासन के संस्कृति विभाग एवं छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल को जी-तोड मेहनत करनी होगी। इन सबके विकास और प्रचार के लिए विशेषज्ञों को लेकर रणनीति बनानी होगी, खूब खूब काम करना होगा। तब जाकर हम देश के दीगर इलाकों से सैलानी अपने राज्य में ला पाएंगे।

2 comments:

कंदील, पतंग और तितलियां said...

छत्तीसगढ़ के पास आखिर काहे की कमी है। समंदर नहीं है लेकिन समंदर जैसी विशालकाय नदियां हैं, हिमालय नहीं हैं लेकिन उतने ही खूबसूरत और ऊंचे पाट हैं। शिमला नहीं है लेकिन शिमला से ज़्यादा ठंडी हो जाने वाली चिल्पी घाटी है, बदरी केदार नहीं हैं लेकिन मंदिरों की भला कहां कमी हैं। नदियां हैं, पहाड़ हैं, पठार हैं, सैकड़ों साल पुराने मंदिर हैं, जंगल हैं जानवर हैं, छलकपट से दूर आदिवासी हैं और सबसे बड़ी बात यहां की हवा में ऑक्सीजन है। बस नहीं है तो सरकार के पास छत्तीसगढ़ को दुनिया के सामने तरीके से पेश करने की इच्छाशक्ति।
अजय शर्मा,नई दिल्ली

BHANWAR said...

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