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Nov 3, 2020

लघुकथा- दिवाली की सफाई

-महेश राजा

दीपावली का  त्योहार नजदीक था। बेटा देश से आया हुआ था। घर में सब खुश थे।

   घर के मुखिया साहित्य से जुड़े थे। घर में एक कमरा उनकी पुरानी किताबों, पत्र पत्रिकाओं से लदा पड़ा था।

     बेटा सफाई पसंद था। माँ से बोला, यह सब क्या भर कर रखा है। चलो साफ- सफाई करते है। पुरानी पुस्तकों को रद्दी में दे देते है।

     माँ ने कहा, तुम्हारे पापा मना करते है।

     वे बाजू के कमरे से यह सब सुन थे। पिछले बत्तीस वर्ष के साहित्य सफर की यादें जुड़ी थीं, इन किताबों से। कई छपी अनछपी रचनाएँ, पत्र, डायरी और ढेर सारी यादें। हालांकि बहुत सारी किताबों के पन्ने समय के साथ पीले पड़ चुके थे। पर, इन सबके साथ उनकी भावनाएँ जुड़ी थीं।

   बेटा इस बार जिद में था। वे थके स्वर में पत्नी से बोले- ठीक है, बड़े दिनों बाद आया है बेटा जैसा कहता है करो। मैं मन्दिर जा रहा हूँ। देर से आऊँगा। तब तक तुम लोग सफाई निपटा दो।

   वे जानते थे इतने दिनों से सम्भाली हुई उनकी धरोहर आज घर से चली जागी। कितने दिनों का साथ था। पुरानी यादें लिपटी हुई थी। वे मन ही मन रो रहे थे। थके कदमों से मंदिर की तरफ चल पड़े। अब शायद सब कुछ नये सिरे से शुरू करना होगा। क्या कर पायेंगे वे ऐसा....?

सम्पर्कः वसंत 51,कालेज रोड, महासमुंद, छत्तीसगढ़

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