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Aug 11, 2010

समय रहते मां को मना लेना चाहिए

समय रहते मां को मना लेना चाहिए
अनकही में धरती माता क्रोधित है के जरिए आपने सही कहा है कि पर्यावरण के प्रति हम अभी सचेत नहीं हो रहे हैं। यह धरती मां का ही तो क्रोध है कहीं बाढ़ तो कही सूखा पड़ा है। मां कभी अपने बच्चों का बुरा नहीं करती समय रहते हमें अपनी मां को मना लेना चाहिए।
तनाव भरी जिंदगी में हंसी के दो पल कितना सुकून दे जाते हैं ...रामेश्वर जी के सावधान! मैं आत्मकथा लिख रहा हूं गुदगुदाने वाले व्यंग्य के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद और बधाई।
- सुमीता
दुखांत कहानी
परितोष चक्रवर्ती की कहानी चॉकलेट पढ़कर ऐसा लगा जैसे उन्होंने अपनी किसी लम्बी कहानी या उपन्यास के लिए जो नोट्स लिए हैं वही प्रस्तुत कर दिए। हालांकि विषय अछूता है। अगर हम इसे कहानी मान भी लें तो उसका अंत उन्होंने जिस तरह से किया है, वह सारे कथानक और उपजी संवदेना को एक झटके में नष्ट कर देता है। मेरे ख्याल से कहानी की सफलता इसी बात में थी कि वह पाठक के दिमाग में इन बच्चों के जीवन के बारे में सोचने का सबब बने। वे जब भी स्टेशन पर इन बच्चों को देखें उनके बारे में सोचें। लेकिन जो दुखांत है वह कहानी को याद रखने लायक ही नहीं छोड़ती। कायदे से कहानी को ...वे प्लेटफार्म की ओर दौड़ पड़े । शायद राजधानी में कुछ खाने का सामान हाथ लग जाए... पर ही खत्म कर देना चाहिए था।
- राजेश उत्साही, बैंगलोर, utsahi@gmail.com
अच्छी कविताएं
उदंती के जून अंक में पर्यावरण और प्रकृति से सम्बंधित सभी लेख अच्छे हैं। दोनों कविताएं भी बहुत अच्छी लगीं।
-देवमणि पाण्डेय, devmanipandey@gmail.com

सटीक विचार
अनकही में आपने पर्यावरण को विषय के रूप में चुन कर सार्थक और सटीक विचार व्यक्त किया है। आप बधाई की पात्र हैं। मां का गुस्सा तो तभी फूटता है जब उसकी संतानें बड़ी गलती करते हैं।
सुरेश यादव, नई दिल्ली - sureshyadav55@gmail.com
स्मारकों की भव्यता
राजीव धौम्या की सुंदर शैली से ही राजस्थान के स्मारकों की भव्यता का उचित वर्णन किया जा सकता है। राजस्थान की ऐसी खूबसूरत यात्रा पर ले जाने के लिए राजीव को धन्यवाद।
-दीपक, आभा मेनन, नई दिल्ली, deepak.demoninlove@gmail.com

मीडिया का कच्चा- चिट्ठा
जहां खबरें बिकती हैं में संजय द्विवेदी ने मीडिया के वर्तमान स्वरुप का कच्चा- चिट्ठा खोल कर रख दिया है। सब कुछ सामने है फिर भी ऐसा लगता तो नहीं कि मीडिया अपनी नीतियों को बदलेगा। यह सब वास्तव में बहुत ही दुखद है।
-स्नेहा सिंह, इंदौर
विज्ञान कल्पना से ही शुरु होती है
पर्यावरण सुधार पर प्रो. वॉग की यह ललित कल्पना कि ध्रुव प्रदेशों में सीढ़ी बनाकर उधर से पृथ्वी की उत्सर्जित कार्बन डाई आक्साइड अंतरिक्ष में फेंक दी जाए, अभी कल्पना है। विज्ञान की हर नई खोज रचनात्मक, कल्पना से शुरू होती आई है पर अभी व्यावहारिक दृष्टि से देखें तो इसमें एक बड़ी कठिनाई है। वह है सुर्य से निरंतर निकलने वाली प्रचंड वायु जिसे सोलर विंड कहा जाता है। इससे शौर्य वायु के धु्रवों पर टकराने से ध्रुवीय प्रकाश दिखता है। इसका वेग और इसके अवेशित धूल कण चार्ज पार्टिकल्स कार्बन डाई आक्साइड पर क्या प्रतिक्रिया और अभिक्रिया करेंगे। यह प्रयोग से स्थापित करना होगा। बहरहाल इस ललित वैज्ञानिक कल्पना को उदंती ने प्रकाशित किया इसके लिए बधाई। सोलर विंड और पृथ्वी की चुंबकीय क्षेत्र के बीच प्रतिक्रिया का चित्र संलग्न है। जो पाठकों का निश्चय ही ज्ञानवर्धन करेगा।
- बृजेन्द्र श्रीवास्तव, ग्वालियर, brijshrivastava@rediffmail.com

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