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Sep 23, 2010

बांस के फूल जो जीवन में सिर्फ एक बार खिलते हैं!


- कृष्ण कुमार मिश्र
गरीबों का टिम्बर कहा जाने वाला बांस जिसका हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान है। जो बढ़ती मानव आबादी व लगातार दोहन के कारण प्राकृतिक रूप से नष्ट होता जा रहा है। एक वक्त था कि प्रत्येक गांव में कई तरह के बांसों की झाडिय़ां होती थी। बांस के लगभग 1500 उपयोग लिखित रूप से दर्ज हैं। अब इनके सीमित व बुनियादी जरूरतों वाले कुछ मुख्य उपयोग बचे हुए हैं, जैसे ग्रामीण अपना घर बनाने में, कृषि यन्त्र बनाने के अलावा रोजमर्रा की जिन्दगी में न जाने कितने प्रकार से बांस को उपयोग में लाते रहे हैं। बांस के बने हैंडीक्राफ्ट की चीजों का व्यापार कुटीर उद्योग की शक्ल ले चुका था, पर अब धरती के लिये जहर जैसा प्रभाव डालने वाली प्लास्टिक के आ जाने से ये छोटे व पर्यावरण के लिये उत्तम उद्योग चौपट हो चुके हैं।
उत्तर प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में झंकरा बांस की लाठियां तो इतनी लोकप्रिय रही कि आज भी गांव-जेवार में लगने वाले मेलों में आप तेल पिलाई हुई प्राकृतिक रंगों द्वारा विभिन्न तरह के रेखाचित्रों से सुसज्जित लाठियां बिकती हुई देख सकते हैं।
भारत में बांस की स्थिति
बांस के मामले में भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य के जंगल पूरी दुनिया में जाने जाते हैं। भारत में बांस के वन 10 मिलियन हेक्टेयर भूमि को आच्छादित किये हुए हैं, जो हमारे देश के कुल वन क्षेत्रफल का 13 प्रतिशत है, इनमें से 28 प्रतिशत बांस के वन उत्तर-पूर्वी राज्यों में मौजूद हैं। बांस पूरे भारतवर्ष में हर जगह प्राकृतिक रूप से पाया जाता है, इसकी मुख्य वजह है, कि कम पानी व कम उपजाऊ भूमि में यह आसानी से उग आता है। बांस की पृथ्वी पर पाई जाने वाली कुल 1250 प्रजातियों में से भारत में 145 प्रजातियां पाई जाती हैं। लेकिन अब भारत में उत्तर-पूर्वी राज्यों को छोड़कर अन्य जगहों पर बांस की प्रजातियों का विलुप्तीकरण शुरू हो गया है, उत्तर प्रदेश में यह दर सबसे अधिक है! जबकि बांस कृषि क्षेत्र की बड़ी समस्याओं से निपटने में सक्षम हैं, जैसे जानवरों द्वारा अन्य फसलों को नष्ट किया जाना, अत्यधिक रोगों का लगना जो उत्पादन को कम कर देता है, पानी की कमी आदि समस्याओं से बांस की खेती करके छुटकारा पाया जा सकता है। सूखी व परती भूमि पर बांस की खेती की जा सकती है, और बांस की विस्तारित जड़े मृदा अपरदन को भी रोकती हैं, इस प्रकार बांस भूमि सरंक्षण में भी सहायक है। बांस की शूट का उपयोग भोजन के रूप में, व तनें में इकठ्ठा पानी का अचार के रूप में भी उपयोग किया जाता है।
किसानों, पर्यावरण भूमि सरंक्षण में मुफीद
बांस की बिना कांटेदार, उन्नत प्रजातियां शोध संस्थानों में मौजूद हैं, जहां से किसान इन्हें प्राप्त कर सकते हैं। बांस दुनिया की सबसे लम्बी घास हैं, इसकी लम्बाई एक दिन में एक फीट तक बढ़ सकती है और बांस का एक तना 30 दिनों में अपनी पूरी लम्बाई प्राप्त कर लेता है। लेकिन बांस के पूर्ण परिपक्वन में 4 से 5 वर्ष लग जाते हैं। यह ग्रेमिनी कुल से है और इसी कुल में दूब घास व गन्ना, गेहूं जैसी प्रजातियां शामिल हैं, संयुक्त जोड़दार तना इसकी मुख्य पहचान है। किसानों के अतरिक्त सरकार भी ग्राम सभा व अन्य परती भूमियों पर विदेशी व हमारे पर्यावरण के लिये नुकसानदायक प्रजातियों यूकेलिप्टस, पोपलर आदि के बजाए बांस का उत्पादन करा सकती है, जिससे रेवन्यू में बढ़ोत्तरी के अतिरिक्त हमारे पर्यावरण को बहुत फायदा पहुंचेगा।
जीवन में एक बार ही खिलता हैं बांस
बांस में फूल आना अकाल का सूचक माना जाता रहा है, और बांस में पुष्पन अभी भी रहस्य बना हुआ है! क्योंकि बांस में फूल आने की कोई निश्चित समयावधि नहीं होती, पारम्परिक ज्ञान व वैज्ञानिक शोधों से जो तथ्य सामने आये हैं उनमें बांस की विभिन्न प्रजातियों में विभिन्न समयान्तराल में फूल आते हैं और यह समयावधि 40 से लेकर 90 वर्ष तक की हो सकती है।
बांस के बीज में टाइम मशीन
जब बांस फूल देना आरम्भ करता है, तो उसकी पूरी की पूरी समष्टि में एक साथ पुष्पन होता है, फिर चाहे उस बीज से उगाया गया बांस अमेरिका में हो या बांग्लादेश में। लगता है प्रकृति ने इन बीजों में टाइम मशीन लगा दी हो... एक साथ फूल खिलने की!
बांस का खिलना उसके नष्ट होने की निशानी है, तो दुर्भिक्षता की सूचक भी
बांस खिलने के बाद नष्ट होना शुरू हो जाता है और इन फूलों में बने बीज जो बहुत पौष्टिक होते हैं, चूहों के लिये सर्वोत्तम आहार है, नतीजतन चूहों की संख्या में अचानक वृद्धि होती है, बांस के पौष्टिक बीज उनकी प्रजनन क्षमता को बढ़ा देते हैं। जब ये बांस नष्ट हो जाते हैं तो यह चूहों की फौज गांवों की तरफ रूख करती है, नतीजा यह होता है कि किसान की फसलों से लेकर घरों में इकट्ठा अनाज ये चूहे चट करने लगते हैं। साथ ही इन चूहों द्वारा तमाम तरह की बीमारियां भी मानव घरों तक पहुंचती हैं। ऐसे हालात में इन इलाकों में अकाल व दुर्भक्षिता के दिन आ जाते हैं।
बांस मिजों आन्दोलन का कारण बना
सन् 1959-60 में ऐसे हालात मिजो जनपद में पैदा हुए थे। आज का मिजोरम तब आसाम प्रदेश का एक जनपद हुआ करता था। चूंकि मिजोरम बांस का सबसे अधिक उत्पादन वाला क्षेत्र था, इसके अतीत में बांस फूलने से अकाल पड़ जाने की कई घटनायें हुई, इसलिए सन 1958 में जब बांस फूलना शुरू हुआ तो पूर्वानुमान व दुर्भक्षिता से बचने के लिये मिजो लोगों ने असम सरकार से 15 लाख रूपयों की मांग की, लेकिन असम सरकार ने यह कहकर मना कर दिया कि भविष्यवाणी व अवैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर वे सहायता नहीं दे सकते और संकट में इस उपेक्षा से मिजो जनपद के लोगों ने 'मिजो नेशनल फेमाइन फ्रन्ट' की स्थापना कर जनपद वासियों के लिये सहायता का प्रबन्ध किया, फिर यही राजनैतिक संगठन के तौर पर नये नाम 'मिजो नेशनल फ्रन्ट' के नाम से जाना गया।
यहीं से मिजो में अवमानना व अलगाववाद की भावना भड़क उठी। जिसे बुझने में बीस बरस लग गये। 1 मार्च 1966 को एम.एन.एफ. ने भारत सरकार से सन्धि कर ली और 20 फरवरी 1987 को मिजो जनपद मिजोरम राज्य के रूप में इण्डियन यूनियन का 23वां प्रदेश घोषित हुआ।
2003-04 में खीरी जनपद में खिले बांस में फूल
उत्तर भारत में बांस की इतनी तादाद नहीं है कि बांस खिलने से अकाल की स्थिति आ जाये, किन्तु यहां भी बांस फूलने को अपशगुन माना जाता है। बारिश न होना, सूखा पड़ जानें जैसी भ्रान्तियां प्रचलित हैं। उत्तर प्रदेश के खीरी जनपद में अप्रैल 2003 में पुष्पन हुआ था और यह प्रक्रिया 2004 तक जारी रही। जिससे यहां के सारे बांसों के समूह नष्ट हो गये, जिनमें पुष्पन हुआ था। इसी के साथ बांस की तमाम देशी प्रजातियां नष्ट हो गयी। खीरी में राजा लोने सिंह मार्ग पर बबौना गांव के समीप स्थित 60-70 वर्ष पुराना बांस का झुरूमुट पुष्पित हुआ, वहीं पदमभूषण बिली अर्जन सिंह के फार्म टाइगर हैवेन में लगे नवीन बांस जिसकी लम्बाई चार-पांच सीट तक थी में फूल आ गये थे... ये है बीजों की टाइम मशीन...यह दोनों जगह के बांसों का जेनेटिक रिश्ता है। बांस में फूल आने की इतनी अधिक लम्बी अवधि के कारण, कहा जाता है कि आदमी अपने जीवन काल में एक ही बार बांस का फूलना देख पाता है।
पता: 77, कैनाल रोड, शिव कालोनी, लखीमपुर खीरी- 262701 (उ.प्र.) ईमेल- dudhwalive@live.com

1 comment:

Dudhwa Live said...

हमारी बात कोज न जन तक पहुंचाने के इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए आप को धन्यवाद!
कृष्ण मिश्र
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