जब मैंने एक टीचिंग आर्टिस्ट के रूप में अपनी यात्रा शुरू की, दिल में उत्साह था: लेकिन दिमाग में ढेर सारी शंकाएँ। पहली जिम्मेदारी मिली- पहली कक्षा के नन्हे बच्चों के साथ, वह भी मदर्स डे से ठीक पहले। मैंने सरल सा काम दिया: “अपनी मम्मी की तस्वीर बनाओ।”
सोचा था, बच्चे फूल, साड़ियाँ, मुस्कानें बनाएँगे।
लेकिन एक छोटी सी लड़की- चश्मा लगाए, दो प्यारी चोटी बाँधे- अपनी ड्राइंग के साथ आई। उसमें एक गौरैया अपने बच्चों को दाना खिला रही थी।
मैंने हैरानी से पूछा, “तुमने अपनी मम्मी की जगह एक चिड़िया क्यों बनाई?”
वह मुस्कराकर बोली, “जानवरों और चिड़ियों की भी तो मम्मी होती हैं। क्या वे मदर्स डे नहीं मना सकतीं?”
उस एक सवाल ने मुझे भीतर तक झकझोर दिया। उस मासूम- सी बच्ची ने जो कहा, उसमें जीवन की गहराई थी- माँ का रिश्ता सिर्फ इंसानों तक सीमित नहीं, वह तो हर दिल की भाषा है।
उस दिन मैंने सिखाया नहीं, केवल सीखा।
बच्चों की आँखों से दुनिया देखने की कोशिश की।
और जाना कि शिक्षण सिर्फ पढ़ाने का नाम नहीं; बल्कि साथ मिलकर बढ़ने का नाम है।
jasminemaggo@gmail.com
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