मासिक वेब पत्रिका उदंती.com में आप नियमित पढ़ते हैं - शिक्षा • समाज • कला- संस्कृति • पर्यावरण आदि से जुड़े ज्वलंत मुद्दों पर आलेख, और साथ में अनकही • यात्रा वृतांत • संस्मरण • कहानी • कविता • व्यंग्य • लघुकथा • किताबें ... आपकी मौलिक रचनाओं का हमेशा स्वागत है।

Jan 1, 2024

कविताः एक और चिट्ठी

  - अनीता सैनी ‘दीप्ति’

सुरमई साँझ होले-होले

उतरने लगे जब धरती पर 

घरौंदे में लौटने लगे पंछी 

तब फ़ुर्सत में कान लगाकर 

तुम! हवा की सुगबुगाहट सुनना

 बैठना पहाड़ों के पास 

 बेचैनी इनकी पढ़ना

संदेशवाहक ने

नहीं पहुँचाए  संदेश इनके 

श्योक* से नहीं इस बार तुम 

सिंधु से मिलना 

जीवन के कई रंग लिये बहती है

तुम्हारे पीछे  पर्वत के उस पार 

जहाँ उतरी  थी संध्या 

तुम कुछ मत कहना

एक गीत गुनगुना लेना 

छू लेना रंग प्रीत का

हाथों का स्पर्श बहा देना 

छिड़क देना चुटकी भर थकान

आसमान भर परवाह

प्रेम की नमी तुम पैर सिंधु में धो लेना।

श्योक*= लद्दाख की एक नदी


1 comment:

  1. हार्दिक आभार आपका
    सादर

    ReplyDelete