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Sep 1, 2025

हाइकुः स्वर्णिम यादें

  - कृष्णा वर्मा

1

हमारे साथ 

हम बनके खड़े 

बहरूपिए । 

2

बचे हैं गिले 

सड़क चौराहों पे 

मुक्त हो मिलें।

3

रहो दिलों में 

नदी प्रवाह में ज्यों 

रहता अर्घ्य।

4

किससे बाँटें 

दिल की पीठ पर 

लदी हैं यादें। 

5

कसमें वादे 

पीले पड़े पत्रों में 

स्वर्णिम यादें।  

6

साथ बैठाके 

जोड़ता था आँगन 

अनबन को। 

7

गाँठ लेते जो

सही वक़्त आत्मा क्यों

चरमराती। 

8

डर जाता है 

निशब्द प्रलापों से 

मेरा एकांत। 

9

सहमे दर्द 

मिले बांहों के घेरे 

छटे अँधेरे। 

10

जमके थका

पाने को नूर कहें 

लोग गुरूर। 

11

वक़्त मिजाज 

भीतरी कबूतर 

बनाओ बाज। 

12

रस्मों - रिवाज 

न पहुना सत्कार 

डूबे संस्कार। 

13

रील्स की धार 

नाचे मर्यादा कहाँ 

सुघड़ नार।

14

तुम्हारी कमीं 

लाख मुसकुराऊँ

आँखों में नमी।

15

स्पर्श कठोर 

बचे न अनुताप 

मरते राग। 

16

स्वजन घात 

कंठ रोआँसे स्वर 

आँखों में आब। 

17

उम्र की सांझ 

ठूँठ को देखकर 

बरसी आँखें। 

18

स्त्री या मिस्त्री 

चुन लिये ग़लत 

घर बर्बाद। 

19

प्रेम के मारे 

पुरजोश भँवरे 

मौत पुकारें। 

20

मृतक ढोए 

काँपे नदी- कलेजा 

उफन रोए। 

21

ध्वनि, न स्फोट 

लिखे निर्जीव शब्द 

मचाएँ शोर। 

22

मोती- सी बूँदें 

धरा के अधरों पे 

सजाएँ तृप्ति।

23

लाख बचाएँ 

जानती हैं हवाएँ 

आग लगाना। 

24

झुकी जो पीठ 

ढोया होगा ताउम्र 

विषम बोझ। 

25

कैसे सिलूँ मैं 

उधड़े सुकून को 

मिले न सिरा।


8 comments:

  1. बहुत सुन्दर 💐

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  2. Anonymous02 September

    हमारे साथ हम बनके खड़े हैं...👌👌

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  3. अनिता मंडा02 September

    दिल की पीठ पर लदी हैं यादें- बहुत सुंदर प्रयोग
    उम्दा सृजन की बधाई।

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  4. Anonymous02 September

    बेहद गुढ़। बहुत अच्छा लगा हाइकु पढ़कर

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  5. डॉ. कनक लता02 September

    अद्भुत!!
    प्रत्येक हाइकु में यथार्थ को पिरोया गया है.. 👏👏

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  6. Anonymous02 September

    एक से बढ़कर एक हाइकु। अति सुन्दर । बहुत-बहुत बधाई कृष्णा जी।सुदर्शन रत्नाकर

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  7. Anonymous03 September

    स्त्री या मिस्त्री... वाह बेहतरीन, सभी सुन्दर, हार्दिक शुभकामनाएँ।
    - भीकम सिंह

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  8. Anonymous03 September

    बहुत सुंदर सारी हाइकु कविताएँ । नम्रता

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