- निर्देश निधि
वो जिंदगी भर अपनी भाषा में
दूसरों के शब्द बोलता रहा
हर शब्द को उचित अर्थ की
डिजिटल तराजुओं में
तोलता रहा
अपने शब्दकोशों की तरलताओं को
दूसरों की विचार गंगाओं में
घोलता रहा
अपने कुछ शब्द बोलने को
जीवन भर तरसता रहा
अपने मन के ज्वार-भाटों से
सिर्फ खुद को ही सचेत किया
एक भी शब्द कभी
अपनी मर्जी से
इधर-उधर न किया
अपनी पहचान का
शब्द मात्र भी
अपने वजूद की चादर में
कभी न सिया
वो तो रहा आजीवन
सिर्फ और सिर्फ
सच्चा दुभाषिया।
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