1. बताना ज़रा
बरसों सेयूँ ही हरे के हरे हैं
ऐ वक़्त !
बताना तो सही
तू वाकई भर देता है
ज़ख़्म ..!?!
2. मासूम
बड़ी
मासूम सी थी
मेरी नज़्म
ज़िंदगी की खरोचें
उसे
समझदार किए जाती हैं ..
3.तेरा नाम
अब तलक भी
मिलता है
इक सुकून सा
तेरे नाम से
कैसे कह दूँ दिल से
भुला दे तुझको ...!?!
4. छलती रही
जीने के लिए
लिख -लिख कर
मुहब्बत भरे लफ़्ज़
ख़ुद को ही छलती रही
वगरना
मुहब्बत तो
कब की दफ़ना दी थी
नज़्म ने ...
5. तोहमत
ऐ नज़्म !
ज़रा संभल संभल कर
रखना
कागज़ पर लफ़्ज़ों के क़दम
यहाँ लोग मासूमों पर
बहुत जल्द
उछाल देते हैं
तोहमतों के लफ़्ज़ ...
6. तारीफ़
इतनी भी
तारीफ़ मत कर
मेरी नज़्म के अल्फ़ाज़ की
न जाने
क्या क्या छिन गया है
यहाँ तक
पहुंचते पहुंचते ....
7.जहाँ कभी
जहाँ कभी
आख़िरी बार मिले थे
बरसों बाद
फिर वहीं मिले
वही पत्थर,चाँदनी रात,सर्द हवा
दोनों ख़ामोश थे
बस दरमियाँ
मुहब्बत सिसकती रही ....
8. बद्दुआ
चलो माना
सारे इल्ज़ामात
बेबुनियाद थे मेरे
नहीं देते बद्दुआ मेरे अश्क
ख़ुदा करे
जो तुमने मेरे साथ किया
ख़ुदा वही
तुम्हारे साथ करे ...!
सम्पर्कः 18 ईस्ट लेन, सुंदरपुर
गुवाहाटी 781005 (असम)
प्रकाशित करने के लिए दिली आभार आदरणीय 🙏
ReplyDelete