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Jun 1, 2023

दो कविताएँ

 







- राजेश पाठक

1.  गाँव चाहता है 

 बचा रहे भोलापन व अपनापन भी

बची रहे पुरखों की विरासत

बचे रहें दो जोड़े बैल और

बची रहे कुछ धुर ही सही

पर उपजाऊ जमीन

गांव नहीं चाहता

पूरा का पूरा शहर बनना

कि उसकी उपजाऊ जमीन पर

उगने लगें मकान की फसलें

वह चाहता है बची रहें संवेदनशील नस्लें

गांव को पूरा का पूरा शहर बनाने की कवायद

ठीक वैसे ही है

जैसे कोई मां - बाप थोप जाते हैं

अपने बच्चों के माथे पर

अपनी महत्वाकांक्षाओं के बोझ

बिना उनकी क्षमता, रूचि व प्रकृति के जाने,,,








2. एक पिता

अच्छी -बुरी सभी परिस्थितियों में

लुटा देता है सर्वस्व

वह टूटता रहता है शनै:- शनै:

संतानों की प्रगति वास्ते

जैसे अतिशय शीत व अतिशय उष्णता से 

टूटता रहता है पहाड़

और इस तरह धीरे -धीरे पूरा टूटकर

बना जाता है सुगम व सरल रास्ता 

पिता भी सब कुछ खोकर

बनाता है सुगम रास्ता

अपनी संतानों के लिए

पिता पहाड़ होता है,,,

सम्पर्कः  नया रोड फुसरो, पोस्ट - फुसरो बाजार, जिला- बोकारो- 829144 (झारखंड) 

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