जीवन
का सच
- सत्यनारायण सिंह
स्मृतियों नें
अनुभवों के ताने बाने से
जीवन को बुना
बुनते बुनते
कुछ धागे टूटे,
कुछ छूटे,
कुछ जीवन में समाहित होकर
हमें एहसास दिलातें हैं की,
जीवन का माधुर्य
सुख और दु:ख
इन दो अहम घटकों
पर आधारित है
किसी एक घटक के आभाव में,
जीवन सुखद नहीं लगता,
मानो जीवन से जी ऊब सा गया हो
और तब वह जीवन,
नीरव वन सा डरावना लगता है।
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