आज मूल्य और संस्कृति की बात करते हैं- इन दिनों फि़ल्मी दुनिया की नई पीढ़ी भारतीय मूल्यों और भारतीय संस्कृति की धज्जियाँ उड़ाता नजऱ आ रहा है। पर्दे पर समाज का अच्छा और बुरा पक्ष दिखाकर आम जनता में सन्देश प्रसारित करने का काम करने वाली हमारी फिल्मी दुनिया अपने बच्चों में संस्कार का बीज़ क्यों नहीं बो पाई? ये बड़े सितारे अपने बच्चों को किस प्रकार की शिक्षा दिलाने अक्सर भारत के बाहर भेजते है? लेकिन मायावी दुनिया में पलने और पढऩे वाले बच्चों की राह कब किस दिशा में मुड़ जाती है, शायद उनके माता-पिता भी नहीं जान पाते, और कोई भी माता पिता चाहे वह कितना भी सम्पन्न और हाई प्रोफाइल वाला हो, कभी भी नहीं चाहेगा कि उनका बच्चा गलत राह पर चलने लगे।
लेकिन चाहने भर से से क्या होगा। जाहिर है कहीं न कहीं उनसे भी चूक हुई है- पालन- पोषण करने में, शिक्षा में, रिश्ते निभाने में, तभी तो कुछ बच्चे ड्रग्स जैसी अँधेरी दुनिया में घुस जाते हैं और उन्हें पता भी नहीं चल पाया। छोटे शहरों से बड़े सपने लेकर इस मायावी दुनिया की चकाचौंध में कदम रखने वाले सुशांत जैसे युवा कब कैसे इसकी गिरफ़्त में आ जाते हैं शायद इसका उन्हें भान भी नहीं हो पाता। अपने माता- पिता से दूर परिवार से अलग, अकेले रहते हुए वे चक्रव्यूह में घुस तो जाते हैं पर वहाँ से निकलने का रास्ता नहीं ढूँढ पाते।
कहाँ तो महीनों से सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या बनाम हत्या की गुत्थी सुलझाने की जी -तोड़ कोशिश की जा रही थी और कहाँ उसके तार ड्रग माफिय़ा से जुड़ते हुए कई बड़े नामी-गिरामी सितारों और सितारों के बच्चों के साथ जुड़ते चले जा रहे हैं। यद्यपि फिल्मी दुनिया के बहुत लोग यह कहते हुए सामने आ रहे हैं कि कुछ लोगों की गलती का खामियाजा पूरी फिल्म इंडस्ट्री को क्यों भुगते या पूरी इंडस्ट्री क्यों बदनामी झेले, लेकिन कहते हैं न कि काजल की कोठरी से कोई बेदाग नहीं निकल सकता। यही हाल इस मायानगरी का है। छींटे तो आस-पास खड़े लोगों पर पड़ेंगे ही।
अभी माया नगरी में किसी फि़ल्मी किस्से की तरह इस गंभीर मामले को सुलझाने की कोशिश जारी ही है, कि उत्तर प्रदेश के हाथरस में 19 साल की युवती का कथित गैंग रेप और फिर उसकी हत्या का बेहद घिनौना मामला सामने आ गया है। उसे किसने मारा यह गुत्थी उलझती ही जा रही है। अब शक की सुई लड़की के परिवार वालों की तरफ़ मुड़ गई है। मामला प्रेम प्रसंग का बताया जा रहा है, जो उसके परिवार वालों को पसंद नहीं था। लड़की की हत्या चाहे जिस भी कारण से हुई हो, जिसने भी की हो, 19 साल की एक लड़की की चीख़ दबा तो दी ही गई। दु:खद स्थिति यह है कि मरने वाली युवती को लेकर अब राजनीति की रोटियाँ सेंकने का सिलसिला शुरू हो गया है।
अफसोस की बात है कि हम कितना ही ढोल पीट लें कि बेटियाँ घर की लक्ष्मी, दुर्गा, और सरस्वती होती हैं पर आज भी भारत में बेटियों के साथ भेद-भाव किया ही जाता हैं। बेटा भले ही अपने माता- पिता को बुढ़ापे में मरने के लिए वृद्धाश्रम में भेज दे पर फिर भी बेटा ही वंश को आगे बढ़ाने वाला होता है। बेटियाँ किसी भी क्षेत्र में आज बेटों से कम नहीं है पर जब तक माता-पिता उसके हाथ पीले नहीं कर देते तब तक वे उनके लिए बोझ ही होती हैं। 'बेटी पढ़ेगी आगे बढ़ेगी’ का नारा देने वाली हमारी सरकारें भी बेटियों की सुरक्षा के लिए कुछ विशेष कदम नहीं उठा पाई हैं। यदि समय रहते कानून और व्यवस्था सख्त की गई होती तो महिला और बच्चियों के साथ दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे अनगिनत अत्याचार और बलात्कार में बढ़ोत्तरी नहीं हुई होती।
आँकड़े बताते हैं कि छोटी बच्चियों के साथ दरिंदगी की यह क्रूरता थमने का नाम ही नहीं ले रही। पिछले कुछ ही दिनों में हाथरस के बाद खरगौन मध्यप्रदेश में 16 वर्षीय लड़की के साथ गैंगरेप, लुधियाना पंजाब में 8 साल की बच्ची को पैसे और चॉकलेट का लालच देकर बलात्कार, बलरामपुर ( उत्तर प्रदेश) में 22 वर्षीय युवती का गैंगरेप, आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) में नहलाने का बहाना करके 8 वर्षीय बच्ची का बलात्कार, उत्तर प्रदेश के भदोही में 14 वर्षीय दलित लड़की की ईंट पत्थरों से मारकर हत्या- बलात्कार... बुलंदशहर, बागपत ....और फिर न जाने कितने शहर... सिलसिला रुकने का नाम ही नहीं ले रहा।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ( एनसीआरबी) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 2019 में भारत में प्रतिदिन औसतन 87 रेप केस तथा महिलाओं के खिलाफ़ अपराध के कुल 4 लाख से अधिक मामले दजऱ् हुए हैं। उत्तर प्रदेश 59,853 मामलों के साथ शीर्ष पर है। इतना ही नहीं महिलाओं के खिलाफ इस तरह के मामले कम होने के बजाय प्रति वर्ष बढ़ते ही जा रहे हैं। 2018 के मुकाबले 2019 में महिलाओं के खिलाफ अपराध में 7.3त्न की वृद्धि हुई है। जो इस बात की ओर संकेत करते हैं कि व्यवस्था में गंभीर खामियाँ हैं, कानून में इतने पेंच हैं कि अपराधी खुले आम घूमते हैं।
कानून व्यवस्था में सुधार की बात तो अपनी जगह बेहद गंभीर है ही, पर एक और महत्त्वपूर्ण बात जिसपर विचार करने की जरूरत है वह है, गिरते चले जा रहे सामाजिक, संस्कृतिक और नैतिक मूल्यों की है। आज के दौर में अपने को शिक्षित कहने का मापदंड बदल गया है। उच्छृंखलता, अश्लीलता, क्रूरता और नशे की लत ने युवाओं को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। अति महात्त्वाकांक्षी होना, कम मेहनत में बहुत कुछ पा जाने की चाह और ऐशो-आराम की जिंदगी ने व्यक्ति के भीतर की मानवीयता को कहीं खो सा दिया है। परवरिश, शिक्षा, रहन- सहन के बदलते तौर तरीके, काम का बोझ, पारिवारिक दूरी से उपजा एकाकीपन... इन सबने मिलकर समाज की दिशा और सोच ही बदल दी है। तो चिता के राख होने तक हल्ला करने से बात नहीं बनेगी। इन सभी विषयों पर चिंतन मनन करके कोई कारगार समाधान निकालने से ही बात बनेगी। कानून में बदलाव से पहले दूषित मन का परिस्कार करना पड़ेगा, मानसिक विकृतियों का समाधान खोजना पड़ेगा। भुजबल और धनबल के कुत्सित गठबन्धन को तोडऩा पड़ेगा।
11 comments:
अनकही में बहुत सुंदर और तथ्यपरख विश्लेषण। निश्चित रूप से गैंगरेप और माया नगरी में ड्रग की दुनिया से जुड़े तार चिंताजनक है, इस पर गंभरतापूर्वक विचार किया जाना चाहिए। वास्तव में ये कृत्य हमारे समाज का घिनौना चेहरा है। इसके लिए एकजुट होकर प्रयास जरूरी है। सुंदर विश्लेषण के साथ पठनीय अंक के लिए संपादक मंडल को बधाई।
प्रो अश्विनी केसरवानी
इस लेख में एक दर्द, पीड़ा और बिखराव के नासूर से समाज बिलखता प्रतीत होता है ।समाज को बदलने के लिए प्रयास कलम से शुरू होता है ।एक जोश और होश से सजग रचना।
कोरोना तो समय के साथ बीत ही जाएगा, पर क्या होगा उस मानसिकता का जो किसी भी प्राकृतिक आपदा से अधिक भयानक है. गंभीर विषय पर बहुत सार्थक आलेख. हार्दिक बधाई
आपकी चिंता वाज़िब है अश्विनी जी। ये तार आज देश के प्रत्येक कोने में पहुँच गया है। जिस पर यदि समय रहते काबू नहीं पाया गया तो युवा पीढ़ी की राह बदल जाएगी... आप udanti.com से जुड़े इसके लिए आपका हार्दिक धन्यावाद।
आप जैसे सुधीजन अपनी कलम की ताकत दिखाएंगे तो एक दिन अवश्य इस नासूर से समाज मुक्त हो पाएगा। udanti.com में आपका स्वागत है साधना जी।
इसी भयानक आपदा से तो मुक्ति पानी है जोशी जी...
आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद... आभार
डाक्टर रत्ना वर्मा जी आपने वेब पत्रिका में मुझे (साधना मदान)को हिस्सा बनाया,यह मेरा सौभाग्य है। उदंती पत्रिका में लेख, कविता, कहानी और व्यंग्य सभी कुछ एक साथ पढ़ने को मिला। आपको व उदंती की संपूर्ण टीम को मेरी ओर से बधाई और धन्यवाद।
गंभीर विषय है। समस्या के कारण व निवारण हेतु हरेक को चिंतन करने की आवश्कता है।
शुक्रिया साधना जी 😊
प्रिय रत्ना जी,
एक ज़रूरी आलेख है यह आपका | सचमुच आज का यह कुत्सित वातावरण चिंता का विषय है | केवल दुखी होने से काम नहीं चलेगा | आह्वान और चेतना जगाने का समय है | चलिए, मिल कर इस विषय पर खूब लिखें लेकिन अफ़सोस की जिन पर प्रभाव पड़ना चाहिए वे साहित्य पढ़ते ही नहीं | फिर भी सामाजिक जागरण की आवश्यकता है |
सस्नेह,
शशि पाधा
आपकी बात बिल्कुल सत्य है शशि जी पर सोशल मीडिया ने हमें एक बहुत बड़ा मंच दिया है अतः हमें प्रयास तो करना ही होगा। इस विषय पर आपकी सार्थक टिप्पणी के लिए आभार... धन्यवाद...
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