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May 2, 2025

दो लघुकथाः

- डॉ. सुषमा गुप्ता

1. संवेदनाओं का डिजिटल संस्करण

2 मार्च 2021

पिताजी बहुत बीमार हैं। आप सभी की दुआओं की बहुत ज़रूरत है।

(अस्पताल में लेटे बीमार पिता जी की फोटो के साथ उसने फेसबुक पर स्टेटस अपडेट किया।)

3 मार्च 2021

पिताजी की हालत लगातार बिगड़ रही है। तन, मन,धन से जितना कर सकता हूँ, सब कर रहा हूँ।”

(इस बार उसने अपने थके निराश चेहरे की फोटो के साथ स्टेटस अपडेट किया।)

5 मार्च 2021

पिताजी नहीं रहे। मैं अपनी सब कोशिशें करके भी हार गया। मेरा संसार लुट गया।

(श्मशान से पिता की चिता के आगे अपने आँसुओं से भरे चेहरे के साथ उसने स्टेटस एक बार फिर अपडेट किया)

16 मार्च 2021

पिताजी की आत्मा की शांति के लिए बहुत बड़ी पूजा रखी और 51 पंडितों को भोज कराया।

(हार चढ़ी पिताजी की फोटो के सामने कुछ पंडित खाना खा रहे हैं और उन्हें खुद खाना परोसते हुए की फोटो के साथ इस बार का स्टेटस अपडेट हुआ।)

शाम ढले वह अपनी प्रोफाइल पर आए ढेरों कमेंट पढ़ रहा था, जिनमें उसे एक बेहद संवेदनशील आज्ञाकारी बेटे के खिताबों से नवाज़ा गया था।

साथ वाले कमरे में माँ खाँस-खाँस के दोहरी होती हुई अब भी इंतज़ार कर रही है कि बेटा खत्म हुई दवाइयाँ फिर से कब लाकर देगा। पति के खाली बिस्तर की तरफ देखते हुए उसकी आँखें भीग गई हैं।

काँपती आवाज़ में माँ ने बेटे को आवाज़ दी, दवाइयों की गुहार की। बेटे ने मुँह बनाया और झिड़कते हुए कहा-“बहुत व्यस्त हूँ मैं। पापा के मरने के बाद जो इतना तामझाम फैला है अभी वह तो समेट लूँ। समय मिलता है तो लाकर दूँगा।”

कहकर एक बार फिर से वह फोन में व्यस्त हो गया। पाँच मिनट में नया स्टेटस अपडेट हुआ।

“पिताजी के बाद अब माँ की हालत बिगड़ने लगी है। हे ईश्वर! मुझ पर रहम करो। मुझ में अब, और खोने की शक्ति नहीं बची है।”

2. ज़िंदा 

    का 

   बोझ

वह शराब के नशे में धुत जब भी घर आता ज़ोर से चिल्लाता, “अरी कहाँ मर गई?”

भागती-सी गुलाबो जाती और कमरे का दरवाज़ा बंद हो जाता।

बहुत बड़ा नाम था पीर साहब का पूरे इलाके में । लोगों ने अल्लाह का दर्ज़ा तक दे डाला था और गुलाबो को पीर रानी का। पीर साहब वैसे तो डेरे पर ही रहते थे पर महीने में दो-चार बार घर भी आ जाते। जिस रात वह घर आते, बच्चियों को रात भर, रह-रह के कमरे से माँ की दर्दनाक चीखें सुनाई देती। अगले दिन माँ के शरीर पर ज़ख्म दिखते तो बच्चियाँ अपनी उम्र के हिसाब से सवाल पूछती और गुलाबो उनकी उम्र के हिसाब से ही जवाब देकर उन्हें समझा भी देती।

आज गुलाबो को सुबह से ही तेज़ बुखार था। रात गए फिर पीर साहब की गरज सुनाई दी, “गुलाबो......”

तेरह साल की जूही भागकर गई, “जी बाबा”

पीर साहब ने उसे पर ऊपर से नीचे तक भरपूर नज़र डाली फिर बेहद प्यार से बोले,

“अरे तू इतनी बड़ी कब हो गई? आ ...अंदर आ.. बैठ मेरे पास।”

दरवाजा फिर बंद होने ही वाला था कि गुलाबो दौड़ती हाँफती पहुँची। पल भर में सब समझ गई। खींचकर जूही को कमरे से बाहर कर दिया और ख़ुद अंदर होकर दरवाज़ा बंद कर लिया। पीर साहब का चिल्लाना और माँ की दर्दनाक चीखें बाहर तक सुनाई देने लगी। अचानक चीखों का स्वर बदल गया।

सुबह दालान में ज़माने भर का मजमा लगा था। पीर साहब नहीं रहे। पीर रानी की सबसे विश्वस्त नौकरानी ने सबको खबर पहुँचाई , कोई लूट के इरादे से घर में घुसा और हाथापाई में पीर साहब का गला रेत गया।

लोगों ने ख़ूब कोसा उस अनजान लुटेरे को। दोज़ख रसीद करने की बद्दुआएँ दे डालीं। औरतों के झुंड के झुंड आ रहे थे। खूब प्रलाप हो रहा था ।

छाती-पीटती अम्मा बोली, “हाय गुलाबो! कैसे उठाएगी तू बेवा होने का बोझ!”

गुलाबो मन ही मन बुदबुदाई....“इसके तो ज़िंदा का बोझ ज़्यादा था अम्मा। इसकी लाश में बोझ कहाँ ... ”   ■

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