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May 2, 2025

कहानीः ग़ैर-ज़रूरी सामान

  - नमिता सिंह 'आराधना'

पत्नी के निधन के पश्चात हरीश बाबू बेटे के पास मुंबई रहने आ गए थे। उन्होंने सोचा था कि बेटे-बहू के पास रहने से समय अच्छा कट जाएगा और अकेलापन भी नहीं सताएगा ; लेकिन अब यहाँ आकर उन्हें महसूस होने लगा कि उनसे निर्णय लेने में भूल हो गई है। उन्हें लगा था कि बेटा-बहू दोनों वर्क फ्रॉम होम करते हैं सो दिन भर दोनों घर पर ही रहेंगे तो उनका साथ रहेगा और बातचीत होती रहेगी ; लेकिन घर पर होते हुए भी दोनों दिन भर अलग-अलग कमरों में बंद रहते। 

कुक भोजन बनाकर रख जाता। घर के अन्य कामों के लिए भी घरेलू सहायक आकर अपना काम कर जाते। हरीश बाबू अकेले ही भोजन करते। दोपहर के भोजन के बाद जब वह कमरे में आराम कर रहे होते तो इस बीच बेटा और बहू अपने-अपने समय से कमरे से निकल कर भोजन ग्रहण कर लेते। शाम की चाय भी हरीश बाबू को अकेले ही पीनी पड़ती। 

शाम को अपार्टमेंट के गार्डन में जाते। पहले-पहल उन्हें लगा था कि यहाँ कुछ अच्छे दोस्त बन जाएँगे और उनका अकेलापन कुछ कम हो जाएगा ; लेकिन ऐसा हुआ नहीं। यहाँ भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी। किसी से बात करने की कोशिश करते तो वह हाँ... हूँ... करके आगे बढ़ जाता। इसका कारण वह कभी समझ नहीं पाए।

बेटे ने एक कुत्ता पाल रखा था। कभी वह बिना वज़ह भौंकना शुरू कर देता तो बेटा फौरन कमरे से निकल कर उसे प्यार से पुचकारता, "क्या हुआ बोन्जो? (कुत्ते का नाम), भूख लगी है मेरे बच्चे को? अकेले मन नहीं लग रहा? अच्छा बता, कौन सा बिस्कुट खाएगा?" मानो कुत्ता अभी बोल पड़ेगा। उधर हरीश बाबू यह देखकर बेटे के बचपन में चले जाते। वह भी तो बेटे के रोने या उदास होने पर उसे ऐसे ही पुचकारा करते थे। उनका मन करता कि बेटा उनसे भी ऐसे ही प्यार से बात करे जैसे कुत्ते से करता है; लेकिन वह कुत्ता तो बन नहीं सकते थे और बतौर पिता बेटे के लिए अनुपयोगी हो चुके थे। सो मन मसोसकर रह जाते।

"ठीक है, शाम को तुम्हें घुमाने ले जाऊँगा। डिनर में तुझे चिकन भी खिलाऊँगा।" इत्यादि आश्वासन देते हुए बेटा कुत्ते को दुलारता, सहलाता, चूमता। फिर उसके चुप होने पर वापस कमरे में चला जाता ; लेकिन हरीश बाबू कभी कोई गाना बजा देते या फोन पर जरा ऊँची आवाज में किसी से बात करते तो बेटा कमरे से बाहर आकर उनके ऊपर गुर्राता, "पापा, आपको ब्लूटूथ दिया है न, आप उसे कान में लगाकर गाना सुनिए।" या फिर, "जरा धीमी आवाज में बात कीजिए।" वह कुछ कहना चाहते, इससे पहले ही बेटे के कमरे का दरवाजा बंद हो जाता। कहाँ वह अपना अकेलापन दूर करने के ख्याल से यहाँ आए थे ; लेकिन अकेलापन दूर होना तो दूर की बात थी, उनके दैनिक क्रियाकलाप पर भी बंदिशें लग रही थीं। उन्हें महसूस होने लगा कि वह कुत्ता उनसे बेहतर स्थिति में है। उसके भौंकने पर उसे पुचकार मिलती थी ; लेकिन उनके बोलने पर दुत्कार नहीं तो गुर्राहट अवश्य मिलती थी। कुत्ते से उसकी फरमाइशें पूछी जातीं ; लेकिन उनसे बेटे ने कभी उनकी ज़रूरतें भी नहीं पूछीं।

डिनर के समय भी शायद ही कभी बेटा या बहू में से कोई साथ होता। शनिवार और रविवार के दिन दोनों अपने दोस्तों के साथ कहीं बाहर घूमने चले जाते। एक बार उन्होंने भी साथ जाने की इच्छा जाहिर की तो बेटे ने कहा, "आप हमारे साथ जाकर क्या करेंगे? बोर हो जाएँगे और दिन भर घूम भी तो नहीं पाएँगे। थक जाएँगे।" हरीश बाबू मन मसोसकर रह गए। उनके घर पर मौजूद होने की वजह से वे दोनों अपने दोस्तों को भी घर पर नहीं बुलाते थे। वह घर में ऐसे पड़े रहते, जैसे घर का कोई ग़ैर-ज़रूरी सामान। 

अपनी स्थिति में उन्हें सुधार की कोई उम्मीद दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही थी। इसीलिए उन्होंने वापस अपने घर लौटने का फैसला कर लिया। एक दिन अपना सामान पैक किया और जा बैठे रेलगाड़ी में। टिकट तो पहले ही बुक कर लिया था। जाने से पहले उन्होंने बेटे को व्हाट्सएप पर एक मैसेज कर दिया कि वह वापस अपने शहर जा रहे हैं, क्योंकि बेटे का स्पष्ट निर्देश था कि काम के समय उसे डिस्टर्ब न किया जाए। दो दिनों से वह उन दोनों को बताने की कोशिश तो कर रहे थे, पर एक घर में रहकर भी आमना-सामना बहुत कम ही होता था। जब सामने होते, उस दौरान भी वे दोनों अपने-अपने मोबाइल पर व्यस्त रहते। इसीलिए कभी बताने का मौका ही नहीं मिला। जब भी वह कुछ बोलने के लिए मुँह खोलने की कोशिश करते, बेटा हाथ के इशारे से उन्हें चुप रहने का इशारा कर देता; क्योंकि वह मोबाइल पर किसी से बातें कर रहा होता था। यहाँ भी वह कुत्ता उनसे बेहतर स्थिति में था क्योंकि भौंकने के लिए उसे किसी से परमिशन लेने की आवश्यकता नहीं थी। अलबत्ता अगर बेटा उसके भौंकने पर उस पर ध्यान न दे तो वह गुर्राने लगता और उसकी गुर्राहट पर बेटे को प्यार आ जाता। इसीलिए अपनी स्थिति को भाँपते हुए उन्होंने अपनी रवानगी की सूचना बेटे को व्हाट्सएप पर संदेश भेजकर ही देना उचित समझा। 

उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें सामान सहित घर से बाहर जाता देख वह कुत्ता अवश्य भौंकेगा और उसकी भौंक सुनकर बेटा कमरे से अवश्य बाहर आएगा। तब वह बेटे का मुखड़ा देख उससे विदाई ले लेंगे।  पर यहाँ भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी। शायद उस कुत्ते की नजर में भी उनकी कोई अहमियत नहीं थी। वह अधखुली आँखों से उन्हें देखते हुए सोने का नाटक करता रहा। मजबूरन वह निकल पड़े। दरवाजे पर स्मार्ट लॉक था सो किसी के आकर दरवाजा बंद करने का झंझट भी नहीं था।

उनका मैसेज भी बेटे ने तब देखा जब ट्रेन उनके अपने शहर में प्रवेश कर रही थी ; लेकिन तब भी बेटे ने फोन करना जरूरी नहीं समझा। उसका मैसेज आया, "पापा, आपने बताया भी नहीं कि आप जा रहे हैं।" हरीश बाबू जानते थे कि उनके उत्तर का इंतजार बेटा नहीं करेगा। इसीलिए उन्होंने मन ही मन अपने-आप को ही उत्तर दे दिया, "तुम्हें मुझसे बात करने की फुर्सत ही कहाँ थी।"  ■

सम्पर्कः बी.401, सानिध्य रॉयल, 100 फीट त्रागड़ रोड, न्यू चाँदखेड़ा, अहमदाबाद, गुजरात -82470, mail- nvs8365@gmail.com

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