आइए इस दीपावली खुशियाँ बाँटें...
-डॉ. रत्ना वर्मा
भारतीय
संस्कृति में आने वाले हमारे पर्व- त्योहार आनंद- उल्लास के साथ उत्सव मनाने का अवसर तो होते ही हैं, साथ- साथ दैनिक जीवन की भाग- दौड़ और व्यस्तता
के बीच शांति और राहत प्रदान करने वाले भी होते हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण बात इन
अवसरों पर परिवार और समाज के बीच आपसी सौहार्द्र का वातावरण निर्मित होना है और
यही हमारी भारतीय संस्कृति की विशेषता है।
तभी तो हम अपने पर्व त्योहार चाहे वह गणेश चतुर्थी हो या नवरात्रि, दीवाली हो
या होली, सब आपस में मिल-जुलकर ही मनाते हैं। देखा जाए तो ये सभी
पर्व त्योहार पारिवारिक सामाजिक एकता को प्रदर्शित करते हैं। जो देश की एकता और
अखंडता का प्रतीक है। इन अवसरों के बहाने हमें पीढ़ी दर पीढ़ी एक सीख मिलती है कि
कैसे हम अपनी संस्कृति अपने समाज और अपने देश की अस्मिता, उसके पर्यावरण और
प्रकृति तथा उसकी महान परंपराओं को बचा कर रखें।
हम कितनी ही तरक्की कर लें, कितने ही आधुनिक बन जाएँ;पर अपनी जड़ों का साथ नहीं छोड़ते। लेकिन यह
भी सत्य है कि प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक परिवार काम सिर्फ अपने लिए और अपने
परिवार के लिए करता है। उसकी जिम्मेदारी भी वहीं तक सीमित होती है, इसके इतर कुछ
करने के लिए न तो उस पर दबाव होता और न कोई जोर- जबरदस्ती। इन सबके बाद भी मनुष्य
होने के नाते इंसानियत का ज़ज़्बा भी सबमें कूट-कूटकर भरा होता
है। यही इंसानियत हमें सिखाती है कि अपनी खुशियों में दूसरों को भी शामिल करें
ताकि हमारी खुशियाँ दोगुनी हों।
दीपावली के त्योहार के साथ दीप दान की परंपरा भी जुड़ी हुई है । दान की
परम्परा हमारी संस्कृति का एक अभिन्न अंग रहा है। दान को पुण्य से जोड़कर भले ही
एक कर्मकाण्ड में तब्दील कर दिया गया हो ;
लेकिन इसके पीछे का उद्देश्य बहुत ही सकारात्मक है। किसी जरूरतमंद
की सहायता करना हमेशा ही पुण्य का काम माना गया है। आज भी जब कोई हाथ किसी की
सहायता के लिए उठते हैं तो उसे सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। तभी तो जब कोई
आपदा आती है, तो पूरा देश पैसे, अनाज, कपड़े, दवाई आदि के
रूप में सहायता देने को तत्पर रहता है। मानवीय सेवा भी ऐसे समय सबसे बड़ी सहायता
होती है; क्योंकि बाढ़, भूकंप जैसी आपदाओं में मानवीय सहायता
पहली आवश्यकता होती है।
अब आप कहेंगे कि दीपावली जैसे उत्सव के माहौल में ये आपदा की बातें क्यों?
दरअसल किसी अवसर पर जरूरतमंदों की सहायता करने के बाद जो खुशी मिलती है, वह किसी दीपावली से कम नहीं होती। आजकल तो
शहर क्या गाँव में भी लोग अपने घरों को बिजली झालरों से रोशन करते हैं। पर्यावरण
इतना बिगड़ रहा है फिर भी इतने पटाखे फोड़ते हैं कि इतनी आतिशबाजी करते हैं कि
शर्म आती है , अपने को पढ़े लिखे और
जागरूक कहने में। आखिर इतना पैसा बहाकर हम कौन सी खुशियाँ पाना चाहते हैं।
कितना अच्छा हो यदि इस दीपावली अपनी खुशियों में किसी ऐसे को भी शामिल कर
लें जो अभावग्रस्त होने के कारण अपने घर
में दीये नहीं जला पाता या अपने बच्चों को नए कपड़े नहीं दिला पाता, या मिठाई नहीं
खिला सकता। ऐसा करके हम खुशियाँ तो बाँटेंगे ही साथ ही अपने पर्यावरण को भी स्वच्छ
स्वस्थ बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे।

कहने का तात्पर्य यही है कि आप अपनी हैसियत के अनुसार किसी भी प्रकार की
सहायता कर सकते हैं। बहुत लोग सिर्फ दीपावली ही नहीं साल भर कुछ ऐसा कर्म करते हैं
जैसे किसी बच्चे की पढ़ाई का जिम्मा, किसी अस्पताल में कोई विशेष सुविधा, भूखे को
भोजन, बीमार को दवाई , सेवा, प्रकृति को
बचाने वृक्षारोपण, अपने मुहल्ले की या किसी तालाब की सफाई आदि...। तो खुशियाँ
बाँटने और पाने के लिए अवसरों की कमी नहीं
है बस आपका दिल बड़ा होना चाहिए। दान ऐसा दीजिए कि उस दान का मान बढ़े। यही
खुशियों की असली दीपावली होगी।
सुधी पाठकों को दीपोत्सव
की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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