अलगाववादियों पर शिकंजा
-प्रमोद भार्गव
यह भारत जैसे उदार व सहिष्णु देशों में ही संभव है कि आप अलगाव और देशद्रोह का खुलेआम राग अलापिए,
मासूम युवाओं को भड़काइए, राज्य व राष्ट्र की संपत्ति को नुकसान पहुँचाइए, बावजूद आपका बाल भी बाँका होने वाला नहीं है? पाकिस्तान के पक्ष में और भारत के विरोध में नारे लगाने वाले ऐसे लोगों को हम देशद्रोही नहीं मानते, अलबत्ता उनकी सुरक्षा और एेशो-आराम पर करोड़ों रुपए खर्च कर रहे हैं। यह एक ऐसी हैरानी में डालने वाली वजह है, जो अलगाववादियों का न केवल भारत में पोषण कर रही है, बल्कि वे भारतीय पासपोर्ट के जरिए दूसरे देशों की सरजमीं पर इतराते हुए भारत के खिलाफ मानवाधिकारों के हनन की वकालत करते हुए विद्रोह की आग भी उगलते हैं। सुरक्षा और सरकारी धन की यह इफरात ही अलगाववादियों को दुनिया में इतराते फिरने का मौका दे रही है। अब बड़ी चोट सहकर भारत पाकपरस्त पाँच अलगाववादियों की सरकारी सुरक्षा हटाने को मजबूर हुई है। जबकि इन सुविधाओं को बंद करने की माँग अर्से से उठ रही थी। 2016 में भाजपा विधायक ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा में भी पृथकतावादियों पर अरबों रुपए खर्च करने का मुद्दा उठाया था।
विडंबना देखिए जो देश-विरोधी गतिविधियों में ढाई दशक से लिप्त हैं,
उन्हें राज्य एवं केंद्र सरकार की तरफ से सुरक्षा-कवच मिला हुआ है। यही नहीं, इन्हें सुरक्षित स्थलों पर ठहराने, देश-विदेश की यात्राएँ कराने और स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराने पर पिछले 5 साल में ही 560 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। मसलन सालाना करीब 112 करोड़ रुपए इन अलगाववादियों का पृथक्तावादी चरित्र बनाए रखने पर खर्च हुए हैं। इनकी सुरक्षा में निजी अंगरक्षकों के रूप में लगभग 500 और इनके आवासों पर सुरक्षा हेतु 1000 जवान तैनात हैं। पूरे जम्मू-कश्मीर राज्य के 22 जिलों में 670 अलगाववादियों को विशेष सुरक्षा दी गई है। जबकि ये पाकिस्तान का पृथक्तावादी अजेंडा आगे बढ़ा रहे हैं। इनके स्वर बद्जुबान तो हैं ही, पाकिस्तान परस्त भी हैं। कश्मीर के सबसे उम्रदराज अलगाववादी नेता सैयद अली गिलानी कहते हैं, ‘यहाँ केवल इस्लाम चलेगा। इस्लाम की वजह से हम पाकिस्तान के हैं और पाक हमारा है।‘ अलगाववादी महिला नेत्री असिया अंद्राबी पाक का कश्मीर में दखल कानूनी हक मानती हैं। कमोबेश यही स्वर यासीन मलिक और मीरवाइज उमर फारुक का है। यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि हम इनकी बद्जुबानी भी सह रहे हैं और इन्हें सुरक्षा व व्यक्तिगत खर्च के लिए धन भी मुहैया करा रहे हैं। विश्व में शायद ही किसी अन्य देश में ऐसी विरोधाभासी तस्वीर देखने को मिले ? बावजूद भारत सरकार ऐसे बर्ताब को देशद्रोही नहीं मानती है, तो तय है, इन अलगाववादियों का सरंक्षण कालांतर में देश के लिए आत्मघाती ही साबित होगा ?

ये अलगाववादी कितने चतुर हैं और अपने परिवार के सदस्यों के सुरक्षित भविष्य के लिए कितने चिंतित हैं, यह इनकी कश्मीरियों के प्रति अपनाई जा रही दोगली नीति से पता चलता है। इनका यह आचरण ‘तुम साँप के बिल में हाथ डालो, मैं मंत्र पढ़ता हूँ‘ जैसे मुहाबरे को चरितार्थ करता है। 2010 में पुलिस व सेना पर बच्चों, किशोरों और युवाओं से पत्थर फेंकने का तारीका मसरत आलम नाम के अलगाववादी ने इजाद किया था। किंतु इस भारत विरोधी गतिविधि में मसरत की कभी कोई संतान शामिल नहीं रही। इनके सभी बच्चे घाटी से बाहर दिल्ली के महँगे शिक्षा संस्थानों में पढ़कर भविष्य संवारकर देश-विदेश में नौकरी कर रहे हैं। खुद खाएँ गुलगुले और गुड़ से करें परहेज वाली कहावत सैयद अली गिलानी पर भी लागू होती है। आतंकी बुरहान बानी की कब्र पर जमा लोगों को अपने ऑडियो संदेश के जरिए जिहाद और इस्लाम का पाठ पढ़ाने वाले इस चरमपंथी के तीन बेटे और तीन बेटियों में से एक भी अलगाववादी जमात का हिस्सा नहीं है। ये घाटी से बाहर दिल्ली और अमेरिका में पढ़-लिखकर वैभवशाली जीवन जी रहे हैं। यही नहीं इनकी मौज-मस्ती और कश्मीर में अलगाववादी गतिविधियाँ चलाने के लिए इन्हें विदेशों से भी अकूत धन मिल रहा है।
इन सब हकीकतों के बावजूद पुलवामा में हुए सेना पर हमले के बाद जो सर्वदलीय बैठक संपत्र हुई, उसमें नेताओं ने आतंकवाद को नेस्तनाबूद करने की बहुमत से प्रतिबद्धता तो जताई। सीमापार से निर्यात किए जा रहे आतंक की कड़ी निंदा भी की, लेकिन पाकिस्तान का नाम लेने से बचते दिखाई दिए। जबकि इन नेताओं को पाकिस्तान का नाम लेने के साथ धारा-370 के खत्म करने की बात भी पुरजोरी से करनी थी ? इस धारा के चलते ही कश्मीरी जनता में अलगाववाद पला-पोषा है ? इसकी छाया में अवाम यह मानने लगा है कि यही वह धारा है, जिसके चलते कश्मीरियों को विशिष्ट अधिकार मिले हैं। नतीजतन वे भारत से अलग हैं। गोया वह कश्मीरियत की बात तो करते हैं, लेकिन उसे भारतीयता से भिन्न मानते हैं। इस मानसिकता को उकसाने का काम अलगाववादी बीते 30 साल से कर रहे हैं। लिहाजा अलगाववादियों पर अंकुश के साथ इस मानसिकता को भी बदलने के लिए एक वैचारिक मुहिम कश्मीर में चलाने की जरूरत है।
सम्पर्कः शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी, शिवपुरी म.प्र., मो. 09425488224,9981061100
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