करीब 500 साल पुराना यह मकबरा एक सुनसान जगह पर है, वहां आस-पास आबादी नहीं है। वह चारो तरफ से ऊंची नक्काशीदार दीवारों से घिरा है लेकिन ऊपर छत नहीं है।

मकबरे में बनी कब्र पर जूते मारने की इस परंपरा के पीछे एक कहानी भी प्रचलित है। यहां के निवासी 72 वर्षीय जगदेव शाक्य ने बताया कि इटावा रियासत के राजा सुमेर सिंह के यहां एक भोलू सईद नाम का कर्मचारी हुआ करता था। वह एक बार निकटवर्ती राज्य मध्य प्रदेश की भिण्ड रियासत घूमने गया उस समय भिण्ड और इटावा के मध्य अच्छे राजनैतिक सम्बन्ध थे। बकौल शाक्य- भोलू ने रातों-रात धनवान बनने की चाह में भिंड के राजा के मन में वैमनस्यता के ऐसे बीज बो दिए जिसके बाद दोनों राजाओं के बीच युद्ध छिड़ गया और बहुत बड़े पैमाने पर लोग मारे गए। बाद में राजा सुमेर ने युद्ध के कारणों की समीक्षा की तो चुगलखोर की करतूत सामने आई। उन्हें यह भी पता चला कि वह आस-पास की दूसरी रियासतों के राजाओं के कान भरके उन्हें सेना से जुड़ी गुप्त सूचनाएं भेज रहा है।
एक और सज्जन वकील सिंह ने बताया कि राजा ने अपने अधिकारियों से चुगलखोरी के लिए सजा के तौर पर भोलू को जूतों से पीट- पीट कर मारने का आदेश दिया। बाद में भोलू को रियासत के बाहरी इलाके में दफना दिया गया। राजा के निर्देश पर भोलू का मकबरा बनावाया गया। राजा ने फरमान जारी किया जो भी उस रास्ते से गुजरेगा मकबरे में बनी कब्र पर पांच जूते मारेगा। इसके बाद से सिलसिला चल पड़ा जो आज भी जारी है।
एक और सज्जन वकील सिंह ने बताया कि राजा ने अपने अधिकारियों से चुगलखोरी के लिए सजा के तौर पर भोलू को जूतों से पीट- पीट कर मारने का आदेश दिया। बाद में भोलू को रियासत के बाहरी इलाके में दफना दिया गया। राजा के निर्देश पर भोलू का मकबरा बनावाया गया। राजा ने फरमान जारी किया जो भी उस रास्ते से गुजरेगा मकबरे में बनी कब्र पर पांच जूते मारेगा। इसके बाद से सिलसिला चल पड़ा जो आज भी जारी है।
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