मनुष्यों से इतर जो जीव जंतु वन में रहते हैं, वे वन्य प्राणियों की श्रेणी में आते हैं । जन सुरक्षा की बात तो समझ में
आती है, लेकिन वन्य प्राणियों की सुरक्षा कुछ लोगों को अटपटी
सी लगती है और ऐसे समय में खासकर जब हम मनुष्य के लिए रोटी कपड़ा और मकान की
व्यवस्था नहीं कर पा रहे हैं लेकिन मनुष्य अपने ही स्वार्थ में केंद्रित हो गया है
इस लिए वह उदारतापूर्वक अन्यों पर विचार नहीं कर सकता।
जिस तरह मनुष्यों को जीने का अधिकार है। उसी तरह
वन्य प्राणियों को भी है। भारतीय दर्शन का
मूल सूत्र यही है कि मनुष्य को चाहिए वह अन्य प्राणियों को किसी प्रकार की हानि न
पहुँचा;
क्योंकि सभी में एक ही आत्मा का निवास है । गांधी और गौतम के
उपदेशों का सार यही है सत्य अहिंसा परमोधर्म । तुलसी ने सच कहा है- "परपीड़ा सम नहिं अधमाई।" दूसरों
को पीड़ा पहुँचाने से बड़ा अधम या निकृष्ट कार्य कोई नहीं है।
आज सरकार व समाज का परम कर्तव्य हैं कि वह वन्य
प्राणियों की रक्षा करे । हमारे यहाँ वन्य प्राणियों के संरक्षण वैदिक काल से शुरू
हो गया था । हमारे देवी देवताओं के द्वारा किसी न किसी रूप में पशु-पक्षियों को
सरंक्षण दिया गया है। भगवान के कच्छप, मत्स्य,
वराह, नरसिंह आदि अवतार, जलचर थलचर की महत्ता को प्रतिपादित करते हैं। हमारे मनीषियों ने पशु
पक्षियों को भगवानों के वाहनों के रूप में जोड़ा, ताकि हम
पशु पक्षियों के प्रति दयालु, सहिष्णु और सेवाभावी हो सके।
अगर पशु-पक्षियों को भगवान के साथ नहीं जोड़ा जाता तो शायद हम इनके प्रति और ज्यादा हिंसक होते। इस तरह हमारे मनीषियों ने प्रकृति और उसमें
रहने वाले जीवों की रक्षा के लिए मनुष्य को एक संदेश दिया है। उनका मानना है कि हर पशु किसी न किसी
भगवान का प्रतिनिधि है, उनका वाहन है, इसलिए
पशु पक्षियों के प्रति हमारा व्यवहार सदैव
उदार होना चाहिए ।
उदाहरण देखिए :
विष्णु का वाहन गरुड़ है। आज गरुड़ पक्षी लुप्त हो
रहे है । पक्षी गरुड़ बुद्धिमान होता है। पहले जमाने में उसका काम संदेश को इधर से
उधर ले जाना होता था, वैसे कबूतर भी यह कार्य बड़ी कुशलता से करते थे ।
राम काल के सम्पाती और जटायु को भला कौन नहीं
जानता। ये दोनों भी छत्तीसगढ़ क्षेत्र में रहते थे। इनके प्रजाति के पक्षी खासकर
छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में बहुतायत में थी। छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य में गिद्धराज
जटायु का मंदिर आज भी प्रसिद्ध है ।
माँ लक्ष्मी का वाहन उल्लू भी विलुप्ति के कगार में है। सामान्यतः उल्लू शब्द को मूर्ख बनाने के पर्याय में देखा-समझा
जाता रहा है=लेकिन यह धारणा बिलकुल गलत है, सच माने तो
उल्लू सबसे बुद्धिमान, भूत और भविष्यदृष्टा निशाचारी प्राणी
है । वह धन संपत्ति और शुभता का प्रतीक माना जाता है।
हंस पक्षी पवित्र, जिज्ञासु और काफी समझदार होता है। यह माँ सरस्वती का वाहक है। शिव का वाहन नंदी बैल है। गाँवों में बैलों का बड़ा महत्त्व होता है । भारत में आज भी बैलों से खेतों की जुताई व बैलगाड़ी चलाने के लिए काम में लिया जाता है।
माता पार्वती का वाहन बाघ है। तो दूसरी ओर माँ
दुर्गा का वाहन शेर । गणेशजी जी सबसे निराले है उन्होंने अपना वाहन मूषक को बनाया।
जिसने सबसे पहले और अति शीघ्र चारों धाम की सैर करवा कर गणेश जी को माता पिता के
प्रिय बुद्धिमान बालक जो बना दिया था। कार्तिकेय का वाहन मयूर है मोर भारत का
राष्ट्रीय पक्षी है । इंद्र का वाहन ऐरावत (सफेद हाथी ) है। जो थाइलैंड में पाया जाता है। हाथी शांत, समझदार प्राणी है। इस विशालकाय जानवर की हत्या उसकी चर्बी और दाँतों के
लिए की जाती है, जो ऊँचें दामों में बिकती हैं, जिसके कारण इंसान इनकी निर्दयतापूर्वक हत्या करता आ रहा है ।
भगवान भैरव कुत्ते को हमेशा अपने साथ रखते
हैं। कुत्ता एक कुशाग्र बुद्धि और रहस्यों
को जानने वाला प्राणी है। कुत्ता कई किलोमीटर तक की गंध सूँघ सकता है। कुत्ता
वफादार प्राणी होता है, जो हर तरह के खतरे को पहले ही भाँप
लेता है । प्राचीन और मध्य काल में पहले लोग कुत्ता अपने साथ इसलिए रखते थे,
ताकि वे जंगली जानवरों, लुटेरों आदि से बच
सकें। यह लोमड़ी प्रजाति का जीव है।
हनुमानजी तो स्वयं वानर रूप में विराजमान हैं; इसलिए वानरों की आज भी पूजा की जाती है, फिर इनका वध कैसे ? इस तरह हम पाते है कि हमारे
पूर्वजों ने बहुत पहले से ही पशु पक्षियों के संरक्षण के लिए रास्ता ढूँढ निकाला
था; लेकिन हम है कि अपनी हिंसक प्रवृत्तियों से बाज नहीं
आते। हमें प्रकृति और पर्यावरण में संतुलन बनाए रखने के लिए पशु-पक्षियों की
सुरक्षा और संवर्धन को लेकर गंभीरता और
तेजी से काम करने की जरूरत है।
कल्पना कीजिए ये नीले आकाश में बंदनवार जैसे
लरजते कलगान करते राजहंस चहचहाते हुए पक्षी हरी- हरी दूब पर टूँगते खरगोश छलांग
मारते हुए हिरन, क्या बध्य हैं । यदि शेर, चीते, भालू, हिरन, खरगोश, हाथी, सांभर आदि से
जंगलों को वंचित कर दिया जाए, तो उसमें रखा ही क्या है?
पशु-पक्षी प्रकृति सहचरी के
पुंज ही नहीं ; बल्कि विश्व सौंदर्य के अनुपम उपहार हैं।
क्या इस सौंदर्य को विनष्ट करके हम कभी भी सुंदर बन सकते हैं।
वन्य
प्राणियों के अवैध शिकार के कारण उनकी संख्या निरंतर कम होती जा रही है । सृष्टि
के कई विरले प्राणियों की प्रजातियाँ तो विलुप्त होती जा रही हैं। भोले- भाले
जीवों की निर्दयतापूर्वक हिंसा सभ्य समाज के लिए कभी वांछनीय नहीं हो सकती ।
इसीलिए सरकार ने जंगली जानवरों के शिकार को अवैध करार दिया है और अपराधियों के लिए
सजा का प्रावधान रखा है; परंतु लाख सावधानियों के बाद भी
अवैध शिकार जारी है।
वन्य
प्राणियों की रक्षा या संरक्षण का अर्थ न केवल उनके प्राणों की रक्षा है; बल्कि क्षीण होती जा रही दुर्लभ प्राणियों की संख्या में वृद्धि , नस्ल में सुधार, उनके रहने के लिए पर्याप्त सुरक्षित
वन, नदी नाले आदि का रक्षण है ।
इतना ही
नहीं चिड़ियाघर व अजायबघरों में जैसे उनके आहार और उपचार की व्यवस्था की जाती है, उसी प्रकार की व्यवस्था रक्षित जंगलों के प्राणियों के लिए भी होना चाहिए।
इसी प्रकार घने जंगलों के सफाया होने से भी उनका
समुचित विकास नहीं हो पाया । घने जंगलों में ही वन्य प्राणियों की वृद्धि हो सकती है अब शासन ने इस राष्ट्रीय समस्या से
जूझने के लिए घने जंगलों की रक्षा के साथ ही कृत्रिम वन लगाने शुरु किए हैं और
वन्य प्राणियों के संवर्धन की बात भी सोची जा रही है।
वन्य प्राणियों के संरक्षण हेतु शासन अनेक
योजनाएँ तैयार कर रहा है और उसके क्रियान्वयन के लिए प्रभावशाली कदम उठाए जा रहे
हैं । वर्तमान भारत में 106 राष्ट्रीय उद्यान एवं 500 से भी अधिक वन्य जीव
अभयारण्य हैं। भारत का पहला राष्ट्रीय उद्यान उत्तराखंड के नैनीताल में 1935 में
‘हैली नेशनल पार्क’ के नाम से स्थापित
किया गया था। जिसका वर्तमान नाम ‘जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान’ है। मध्यप्रदेश
में सर्वाधिक राष्ट्रीय उद्यान है जिसमें बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान एवं कान्हा
किसली राष्ट्रीय उद्यान प्रमुख हैं। भारत का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान जम्मू
कश्मीर के लेह में ‘हिमिस राष्ट्रीय
उद्यान’ है, जिसका कुल क्षेत्रफल ही 4400 वर्ग किलोमीटर
है । देश का सबसे बड़ा बाघ अभयारण्य
‘नागार्जुन सागर बाघ अभयारण्य’,
जो आंध्र प्रदेश में स्थापित है। कलकत्ता में भारत प्राणिविज्ञान सर्वेक्षण का
मुख्यालय है।
अब तो अफ्रीकी चीतों को श्योपुर जिले के ‘कूनो
नेशनल पार्क’ में रखा गया है। यह वन्यजीव प्रेमियों के लिए हर्ष का विषय है। इनके पीछे सरकार का एक मात्र उद्देश्य 'पशु, पक्षी या वन संपदा को संरक्षित करना, उसका विकास करना व शिक्षा तथा अनुसंधान के क्षेत्र में उसकी मदद लेना होता
है।’
वन्य प्राणी हमारी प्रकृति में संतुलन रखते हैं
। जो वन्य प्राणी हमारे लिए सहायक है और जो मरकर भी हमारे काम आते हैं उनकी रक्षा
करना शासन का ही नहीं हर व्यक्ति का परम कर्तव्य है ।
सम्पर्कः पंचवटी नगर, मकान नं. 30, कृषि फार्म रोड,
बोईरदादर, रायगढ़, छत्तीसगढ़,
basantsao52@gmail.com, मो. 8319939396
1 comment:
महत्वपूर्ण एवं ज्ञानवर्धक आलेख। बहुत बहुत बधाई
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