- डॉ. रत्ना वर्मा
भारत
अपने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक पुरातन धरोहरों
के मामले में सबसे समृद्ध देश है। आजादी के इतने बरसों बाद भी हम अपनी धरोहर को सँजो पाने में सक्षम नहीं हो
पाए हैं, जबकि इन्ही धरोहरों के बल
पर हम दुनिया भर में जाने जाते हैं। हमें
बड़ी संख्या में पर्यटक इन्हीं पुरातन धरोहरों की बदौलत मिलते हैं, जो हमारी आय का एक बहुत बड़ा स्रोत है। हमारे देश के कुछ शहर
तो इस मामले में धनी हैं और कुछ स्थानों को विश्व धरोहर की श्रेणी में रखा जा चुका
है; परंतु इसके बाद भी हम अपनी
विरासत की साज- सँभाल कर पाने में पिछड़े
हुए हैं।
अपने
अतीत को जानना इसलिए जरूरी है कि इससे हमें गौरव-बोध होता है और भविष्य गढ़ने में मदद मिलती है।
गौरवशाली इतिहास हमें प्रेरणा देता है। संग्रहालयों के जरिये अपने इतिहास को सँजोकर रखने से हम अपना
इतिहास सिर्फ पढ़ते ही नहीं; बल्कि समाज को समझते और उसे बदलते भी है। ऐतिहासिक धरोहर हमें
राजनीति, समाज, अर्थव्यवस्था, कला-संस्कृति आदि सब की
जानकारी देती हैं।
इसी
संदर्भ में इस वर्ष के आरम्भ में भारत सरकार नें देश
के पुरातन शहरों को दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करने के उद्देश्य सें 'हृदय' नामक एक योजना की शुरूआत
की है, ताकि भारत की बहुमूल्य सांस्कृतिक
विरासत का संरक्षण हो सके। ऐसा नहीं है कि पूर्व की सरकारों ने अपनी विरासत को
बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया हो,
किया
तो बहुत कुछ है; परन्तु हमारी समृद्ध धरोहर की
विशालता को देखते हुए हम कितने भी प्रयास कर लें, कम ही हो जाते हैं। दरअसल हमारी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण संवर्धन के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास की
आवश्यकता है। इस मायने में हमें 'हृदय' का स्वागत करना चाहिए और उम्मीद की जानी चाहिए कि इस दिशा में
बेहतर काम होंगे। शुरू में इस योजना में अमृतसर,
अजमेर, वाराणसी, मथुरा, जगन्नाथपुरी जैसे बारह शहर शामिल किए गए हैं। बाद में इस सूची
काअन्य शहरों में विस्तार किया जाएगा।
योजना
का दूसरा पहलू है कि इन धरोहरों के आसपास
के आधारभूत ढाँचे को सुधारा जाए, जिससे देशी-विदेशी पर्यटक इन धरोहरों को देखने आ सकें। इस पूरे
प्रयास में सबसे बड़ी मुश्किल उन शहरों में आने वाली है, जहाँ बड़ी संख्या में लोग
पुरातन धरोहरों पर नाजायज कब्जा जमाए बैठे हैं। ये लोग दशाब्दियों से यहाँ काबिज हैं और बिना किसी
दस्तावेज़ के और बिना किसी अधिकार
के इन सम्पत्ति के ऊपर अवैध कब्जे
जमाए बैठे हैं, उन्हें निकालना एक टेढ़ी
खीर होगा। अगर
जिला प्रशासन, प्रदेश -शासन और केन्द्र सरकार मिलकर कमर कस लें, तो छोटी-सी जाँच में यह स्पष्ट हो जाएगा
कि ये लोग बिना किसी कानूनी अधिकार के अरबों की सम्पत्ति दबाए बैठे हैं और उसे बेच
रहे हैं। जरूरत शासन और प्रशासन के दृढ़ संकल्प की है फिर कोई काम मुश्किल नहीं होगा।
यह
तो जग जाहिर है कि जागरूकता के अभाव में भारत के ऐतिहासिक धरोहर बहुत तेजी से नष्ट
होती जा रही हैं। इसका एक बहुत बड़ा
कारण पिछले दो दशकों में, शहरी ज़मीन के दाम में चार गुना बढ़ोतरी है। भू-माफिया, जीर्ण- क्षीण हो चुकी
इमारतों को कौड़ियों के मोल खरीद लेते हैं और
उसे नष्ट कर आधुनिक साज- सज्जा से युक्त कई मंजिला भवन में बदल कर अरबों- खरबों
कमा लेते हैं। यही नहीं इन भवनों में सदियों पहले की बनी हुई कलाकृतियाँ,
भित्ति।-चित्र, पत्थर की नक्काशियाँ तथा लकड़ी पर कारीगरी का बहुमूल्य काम
होता है, वह भी कबाड़ियों के हाथों बेच दिया जाता है। कुछ धरोहर ऐसी हैं कि उन पर कोई काबिज़ नहीं, वे उपेक्षित हैं। बहुत
–से लोग जाने-अनजाने उनको विकृत करने में भी पीछे
नहीं। देखभाल के अभाव में वे निरन्तर नष्ट हो रही हैं।
इन
सब दु:खद पहलुओं को देखते हुए ‘हृदय’ नामक इस योजना के उस पहलू
की प्रशंसा की जानी चाहिए, जिसमें यह कहा गया
है कि अब इन शहरों की धरोहरों की रक्षा का
दायित्व सिर्फ पुरातत्त्व विभाग के पास नहीं होगा, बल्कि धरोहरों से प्रेम करने वाले लोग भी इन्हें बचाने में
सक्रिय भागीदारी निभा सकेंगे। इससे जीर्णोद्धार के काम में कलात्मकता और सजीवता
आने की सम्भावना बढ़ गई है। इसके
बावजूद यह भी सत्य है कि यह काम इतना आसान नहीं है, जितना योजना के प्रारूप में
दिखाई दे रहा है।
फिर
भी कोई काम ऐसा नहीं होता जिसे सफलता से किया ना जा सके इसके लिए यह जरूरी है कि
हर पुरातन शहर के नागरिकों, कलाप्रेमियों, कलाकारों, समाज सेवी संस्थाओं, शिक्षकों, वकीलों, डॉक्टरों, इंजीनियर और पत्रकारों को
साथ लेकर एक जनजाग्रति अभियान चलाया जाए। जनता
की भागीदारी ऐसी हो कि वे हर निर्माणाधीन प्रोजेक्ट की निगरानी रख सकें, तभी
कुछ सार्थक उपलब्धि हो पाएगी, वरना हृदय की बात बस हृदय
में ही रह जाएगी।
इस
संदर्भ में उदंती का यह पूरा अंक छत्तीसगढ़ की धरोहरों पर केन्द्रित
किया गया है। छत्तीसगढ़ अपनी पुरातत्त्वीय
धरोहर के मामले में बहुत धनी प्रदेश है। एक छोटे सेअंक में प्रदेश भर की धरोहरों
को सँजो पाना मुश्किल ही नहीं
असम्भव है। इसके लिए पूरा एक साल भी कम पड़ जाएगा, परन्तु आप सबके सहयोग से आगे भी
यह प्रयास जारी रहेगा।
2 comments:
डॉ०रत्ना जी प्रशंसनीय प्रयास।खूबसूरत विषय ।बढिया जानकारी।शुभकामनाएं
आपकी पहल पर चेतना जागृत हो ,अपने सार्थक प्रयास में सफलता की गुंजाइश बनी रहे मेरी शुभकामनाएं हैं ।
सुशील यादव ,दुर्ग
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