- रचना गौड़ 'भारती’
हरिद्वार में हरकी पेड़ी पर संध्या समय गंगा आरती के लिए काफी भीड़ जमा होती है। असंख्य श्रद्धालुओं और पण्डों से दृश्य काफी मनोरम था। गंगा तट पर थडिय़ों का बाज़ार, गंगाजल ले जाने के लिए हर साइज़ की प्लास्टिक के डब्बे वहाँ उपलब्ध थीं। बहती गंगा में लोग अपने पाप धोने आए थे। गंगा जी की आरती के वक्त चारों ओर आध्यात्मिक माहौल और उसपर असंख्यों जलते हुए दीपों की छवि गंगा में इस दिव्य वातावरण की शोभा बढ़ा रही थी। भीड़ अधिक होने के कारण सबने एक दूसरे का हाथ पकड़ा था कि खो नहीं जाएँ। मगर वहाँ पलक झपकते ही कब जेब कट गई पता ही नहीं चला। यह तभी हुआ होगा जब हाथ ऊँचे कर ताली बजा रहे थे। अब जेब में एक भी पैसा नहीं था। अम्माँ ने गंगाजल मंगवाया था। बिना पैसे, बिना प्लास्टिक के डब्बे किसमें गंगाजल भरते। अपने मन को जैसे-तैसे समझा लिया कि शायद गंगा का असर अब कम हो गया है। गंगा मैली हो गई है। लोग पाप धोने के बदले जब अपने पाप बढ़ा रहे हैं तो गंगा बोतल में बंद हो दूसरे शहर पहुँच क्या कर पाएगी। गेट से निकलते वक्त तख्ती पर निगाह पड़ी, जिसपर लिखा था-'जेब कतरों से सावधान।’
2. एक नया सफर
घर में रोज़ का कोहराम शुरू हो चुका था। बाबूजी की पेंशन, अम्माँ की बीमारी, लेनदारों की लम्बी लाइन एक कमरे में चूहों की तरह इधर से उधर भागते छ: भाई बहन। गिरधर रेल की पटरी के पीछे बनी बस्ती में रात दिन यही चिल्ल-पों देख रहा था। मगर उसकी आँखें कुछ और ही सपना सँजोए थीं। चमकती गाड़ी, अच्छी नौकरी, एक अदद बीवी और दो प्यारे बच्चे। हर तरह की परिक्षाएँ दे डालीं मगर पढ़ाई होगी तभी तो सफलता मिलेगी। घर में लगी इंसानी मण्डी में रह पाना ही मुश्किल था, पढ़ाई तो दूर की चीज़ है। घर की खस्ताहाल गाड़ी चरमराने लगी तो आखिरकार गिरधर को कुछ करने का फैसला करना ही पड़ा। क्या करे, कहाँ जाए? एक भी तो कपड़ा साबुत नहीं बचा, हर जगह छेद पैबन्द या झाँकती लाचारी बची थी। रोज़ पटरी देख-देख कर जीने वाले ने सोचा भी नहीं था कि यही पटरी एक दिन उसके लिए जीवन दायिनी बन जाएगी। किसी के मार्गदर्शन से रेल्वे की नियुक्तियों में उसे पेन्ट्रीकार में जगह मिल गई। आज चलती टे्रनों में लाल नीली चैक की शर्ट पहनें, हाथ में चाय का कंटेनर ले चाय-चाय करता वो एक बोगी से दूसरी में आ-जा रहा था। यहीं से शुरू हो गया था एक नया सफर।
3. पाप का घड़ा

सम्पर्क: 304, रिद्धि सिद्धि नगर प्रथम कोटा, (राजस्थान) Email- racchu68@yahoo.com
No comments:
Post a Comment