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Mar 14, 2014

पावर ऑफ कामन मेन...

पावर ऑफ कामन मेन...
सुशील यादव

 
उस दिन आम आदमी को बगीचे में टहलते हुए देखा। आश्चर्य हुआ। मैंने पूछा -आप इधर? वो बोला- हाँ, तफरी का मूड हुआ चला आया। आप और तफरी? दाल में जरूर कुछ काला है? उसने कहा हम लोग ज़रा सा मन बहलाने क्या निकलते हैं आप लोगों को मिर्ची लग जाती है? अब तफरी पर भी टैक्स लगाने का इरादा है, तो हद ही हो जागी।
मै सहज पीछा छोडऩे वाला जीव नहीं हूँ। सो उससे भिड़ गया। उसे छेड़ते हुए, जैसे कि आम पत्रकार भीतर की बात निकलवाने के लिए, करते है, उसे पहले चने की कमजोर  सी डाल पर चढ़ाया, पूछा- भाई आम आदमी,  इश्क-मुश्क का मामला है क्या?
आदमी का बगीचे में पाया जाना, करीब-करीब इधर का इशारा करता है। वो बोला नइ भाई, इस उमर में इश्क! चालीस पार किये बैठे हैं, आप तो लगता है पिटवाओगे? मैंने कहा, लो इसमें पिटने-पिटाने की क्या बात हुई? लोग तो सरे आम सत्तर-अस्सी वाले, संत से लेकर मंत्री सभी रसियाये हुए, कर रहे हैं। और तो और वे इश्क से ऊपर की चीज कर रहे हैं, और आप इसके नाम से तौबा पाल रहे हैं?
क्या कमी है आप में जा इश्क की छोटी-मोटी ख्वाहिश नहीं पाल सकते?
वो गालिबाना अंदाज में कहने लगा और भी गम हैं, दुनिया में मुहब्बत के सिवा...।
मुझे उसकी शायरी को विराम देने के लिए चुप हो जाना पड़ा।
बहस जारी रखने में हम दोनों की दिलचस्पी थी। हम दोनों फुर्स में थे। संवाद आगे बढ़ाने की गरज से मैं मौसम में उतर आया, अब हवा में थोड़ी- सी नमी आ गई है न?
अरे नमी-वमी कहाँ? आगे देखो गरमी ही गरमी है।
अपने स्टेट में हर पाँचवे साल यूँ गरमाता है माहौल। अलगू चौधरी को टिकट दो तो जुम्मन शेख नाराज, जुम्मन मिया को दो तो मुखालफत, बहिस्कार?
टिकट देने वाले हलाकान हैं। शहरोंको भिंड-मुरैना का बीहड़ बना दिया है बागियों ने। जिसे टिकट न दो वही बागी बनाने की धमकी दिए जा रहा है।
मैंने बीच में काटते हुए कहा, आपकी बात भी तो चल रही थी, क्या हुआ?
उसने मेरी तरफ खुफिया निगाह से फेंकी, उसे लगा मैं इधर की उधर लगाने वालों में से हूँ।
मैंने आश्वश्त किया, कहा- मेरे, मन में ये ख्याल आया, कहीं पढ़ा था, आपका नाम उछल रहा है, सो जिज्ञासावश पूछ रहा हूँ,  अगर नहीं बताना है तो कोई बात नहीं।
उसे कुछ भरोसा हुआ। वैसे आदमी भरोसे में सब उगल देते है। बड़े से बड़ा अपराधी भी पुलिसिया धमकी के बीच, एक-आध पुचकार पर भरोसा करके, कि उसे आगे कुछ नहीं होगा, सब बता देता है। दुनिया भरोसे पर टिकी है। वो मायूस सा गहरी साँस लेकर रह गया। अनुलोम-विलोम के दो-तीन अभ्यास के बाद कहा, हम आम आदमी को भला पूछता कौन है? किसी ने मजाक में हमारा नाम उछाल दिया था। पालिटिक्स में बड़े खेल होते है, किसी ने हमारे नाम के साथ खेल लिया। दर-असल दो दिग्गजों के बीच टसल चल रहीथी, कोई पीछे हटने का नाम नहीं ले रहा था, टिकट बाँटने वाले अपना सिक्का चलाना चाह रहे थे। उन्होंने हमारे नाम का बाईपास निकाला, दोनों धराशायी हुए।
हमारे नाम का गुणगान यूँ किया कि हम आम-आदमी हैं, राशन की लाइन में लगते हैं, भाजी के साथ भात खा लेते हैं, सच्चे हैं ईमानदार हैं, पार्टी को हम जैसे लोग ही आगे ले जा सकते हैं। हमारी जय-जयकार हुई, हमारे नाम के चर्चे हुए। मीडिया ने घेरा। दोनों दिग्गजों को आश्वान-ए-लालबत्ती मिला, वे दुबक गए।
पत्रकार जी, हम भले, आम आदमी हैं, मगर थोड़ा दिमाग भी खर्चते हैं। हमने मन में गणित बिठाया कि जिस टिकट के लिए चिल्लपों मची है, वो हमारा नाम खैरात में डालने की जो जुगत कर रहा है वो बहुत चालू चीज हैं। जो दिख रहा है, वैसा तो कदापि नहीं है। जरूर कुछ लोचा हैं। हमने अपने सर के हरेक जूँ को रेगने से मना कर दिया, जो जहाँ है वहीं रहे कोई हरकत की जरूरत नहीं। रात को पार्टी मुखिया लोग आ, कहने लगे, आपके पास राशन कार्ड है, मतदान परिचय पत्र गुमाए तो नहीं बैठे, दिखाओ, अब तक आधार कार्ड बनवाया कि नहीं? सरकार से कर्जा-वर्जा लिया है क्या? चुनाव में खूब खर्चा होगा कर सकोगे? आजकल करोड़ों में निकल पाती है एक सीट। कुछ तो पार्टी लगा देती है, मगर नहीं-नहीं में बाँटते-बाँटते चुनाव हारने  वाला सड़क प आ जाता है, सोच लो।
हमे लगा ये पालिटिक्स वाले हमें सपना दिखा-दिखा के कर मार देंगे। हमने उसने पीछा छुड़ा लिया या यूँ कहें उनके मन के मुताबिक उन लोगों ने अपनी चला ली।
आम आदमी को पूछ भी लिया और मक्खी की तरह निकाल बाहर फेंक दिया। वैसे हमें भी मानते हैं, चुनाव लडऩा आम आदमी के बस की बात नहीं। पैसे का बोल-बाला रहता है। पार्टी आपको हरवाकर भी कहीं-कहीं जीत जाती है, वो किसके हाथ आपको बेच दे कह नहीं सकते।
आम आदमी, एक दार्शनिक मुद्रा में मेरी तरफ देखक फिर आसमान ताकने लगा, मुझे लगा कि वो मानो कह रहा है, देखा पावर-लेस मेन का पावर?
सम्पर्क: न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छत्तीसगढ़), मो. 9426764552 Email : sushil.yadav151@gmail.com

1 comment:

  1. नेट सर्फिंग के दौरान अपनी रचना को उदंती में प्रकाशित पाया |धन्यवाद
    सुशील यादव
    २५.७.१४

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