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Aug 1, 2025

तीन बाल कविताएँः

  - प्रभुदयाल श्रीवास्तव

1.बोझ करो कम

बहुत बड़ा है बस्ता उसमें,
भरीं किताबें बीस।
और साथ में रखीं कापियाँ,
गिनकर पूरी तीस।
हम लादे अपने कंधे पर,
निकला जाता दम।
बोझ करो कम।

उसी बेग में ठूँस रखी है,
पानी की बोतल।
माँ ने रखे उसी बस्ते में,
मीठे-मीठे फल।
इतना सारा बोझ कंधे पर,
कितना! हाय सितम।
बोझ करो कम।

इतना वज़न, कंधे पर, इससे,
हुए चकत्ते लाल।
रोज भुगतना पड़ता है सब,
हमको पूरे साल।
कोई नहीं समझता है क्यों,
हम नन्हो का ग़म।
बोझ करो कम।

2. सबसे छोटा होना

सभी समझते मुझको भोंदू
कहते नन्हा छौना।
पता नहीं क्यों लोग मानते,
मुझको महज़ खिलौना
कभी हुआ सोफा गीला तो,
डाँट मुझे पड़ती है।
बिना किसी की पूछताछ माँ,
मुझ पर शक करती है।
मैं ही क्यों रहता घेरे में,
गीला अगर बिछौना।
चाय गिरे या ढुलके पानी,
मैं घोषित अपराधी।
फिर तो मेरी डर के मारे,
जान सूखती आधी।
पापा के गुस्से के तेवर,
मुझको पड़ते ढोना।
दिन भर पंखे चलते रहते,
बिजली रहती चालू।
दोष मुझे देकर सब कहते,
यह सब करता लालू।
बहुत कठिन है भगवन घर में,
सबसे छोटा होना।

3. आज नहीं 

तो कल पहुँचूँगी
पंख मिलें तो उड़ूँ गगन में,
पहुँचूँ अंतरिक्ष के द्वार।
आज नहीं तो कल पहुँचूँगी,
मैं ग्रह नक्षत्रों के पार।
खोज करूँगी कहाँ एलियन,
उड़न तश्तरी का घर है।
जगह, जहाँ से झरता रहता,
ओम-ओम पावन स्वर है।
अपने ध्रुव भैया को दूँगी,
बाल पुस्तकें मैं उपहार।
मंगल के घर कौन-कौन है,
बुध का महल बड़ा कितना।
शनि की भू पर कितने पर्वत,
शुक्र भूमि पर जल कितना।
कहाँ दौड़ते टू व्हीलर हैं,
कहाँ दौड़ती मोटर कार।
कहाँ कहाँ पर गेहूँ चावल,
की फसलें हैं लहरातीं।
कहाँ-कहाँ पर सुर बालाएँ,
मंगल लोक गीत गातीं।
कहाँ-कहाँ पर बजती टिमकी,
होती नूपुर की झंकार।
कहाँ-कहाँ पर तितली भौंरे,
फूलों पर मँडराते हैं।
कहाँ-कहाँ पर गीत पपीहा,
कोयल मीठे गाते हैं।
कहाँ-कहाँ के आसमान से,
रुई-सी झरती रोज़ फुहार।
बोझ करो कम बस्ते का जी,
बोझ करो कम।

1 comment:

  1. सहज एवं रोचक बाल कविताएँ, प्रभुदयाल श्रीवास्तव जी को हार्दिक बधाई

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