आज आपको एक कहानी सुनाने का दिल कर रहा। बहुत पहले की बात है, जब किसी जंगल में एक बेहद ज़हरीले साँप का सामना एक बहुत सिद्ध महात्मा से हुआ। साँप अपनी फितरत का मारा...महात्मा को भी उसने कोई साधारण इंसान समझकर डँसना चाहा। अब सिर्फ हमसे-आपसे ही थोड़ी न भूल होती है इंसान पहचानने में...कभी-कभी जानवर भी ऐसे ही गलतियाँ कर जाते हैं। अब जब उसने अपनी शक्ति के दंभ में बाबाजी से पंगा लेने की कोशिश की, तो उन्होंने भी अपनी ताक़त दिखा दी, और उसे मन्त्र के बल पर अवश कर दिया। अब साँप बहुत रोया-तड़पा, हाथ- पैर जोड़े तो महात्मा ने उसे इस वायदे के साथ बंधनमुक्त किया कि अब आइन्दा वो किसी निर्दोष को नहीं सताएगा।
काफी वक्त बीत गया। साँप ने अपना वायदा निभाया और किसी को भी नहीं डँसा। धीरे-धीरे आसपास के इलाकों में यह बात फैल गई और फिर तो सब एकदम ढीठ हो गए। अब तो छोटे-छोटे बच्चे भी मज़े के लिए उसके पास जाते, उसे कोंचते...वह जान बचाकर भागना चाहता तो ईंट-पत्थर मार-मारकर उसे लहूलुहान कर देते...। हालात इतने बिगड़े कि साँप बिलकुल मरणासन्न हो गया। उसमे इतनी ताक़त भी नहीं बची थी कि वह अपने बिल के अन्दर भी जा सकता। आखिरकार उसे मरा जानकर बच्चों ने उधर आना छोड़ दिया।
साँप अपनी आख़िरी साँसे गिन रहा था कि उन्हीं महात्मा का फिर उसी रास्ते से गुज़रना हुआ। साँप की ऐसी दुर्दशा देखकर वे चकित रह गए। पहले तो उसका इलाज किया, फिर सब हाल सुनकर उन्होंने माथा पीट लिया। जब साँप के होशो-हवास दुरुस्त हुए तब उन्होंने समझाया- ‘‘मैंने तुम्हें किसी निर्दोष को बेवजह सताने को मना किया था। अपनी शक्ति का अहसास दुनिया को कराने से थोड़े न रोका था। इस दुनिया की नब्ज़ पकड़ना सीखो, यहाँ तुम जितना झुकोगे, दुनिया तुमको उससे ज़्यादा झुकाएगी, इतना कि एक दिन तुम खुद भूल जाओगे कि तुम असल में थे क्या।’’
साँप को बाबाजी की बात समझ आ गई। उसके बाद से उसने दोनों काम किए। पहला तो यह कि उसने किसी को बेवजह सताया या डँसा नहीं, और दूसरा किसी को बिना बात खुद पर हावी होते देख उसने फन काढ़ने के साथ ही फुफकारना शुरू कर दिया। उस दिन से जैसे सबके दिन बहुर गए। न तो साँप के काटने से कोई अकारण मरा, और न साँप का जीवन किसी खतरे में पड़ा...।
अब आप यह सोच रहे होंगे कि आज मैं यह कहानी आपको क्यों सुना रही हूँ? इसकी एक वजह है। अक्सर हम-आप भी इसी साँप की तरह हो जाते हैं। सामने वाले के आगे विनम्र होते-होते हम अपनी शक्ति पहचानना और दर्शाना भी भूल जाते हैं, जबकि सामने वाला हमें कमज़ोर समझकर हम पर हावी ही होता चला जाता है, कुछ इतना कि हमारा दम घुटने लगे।
तो बस याद रखिए- जब और जहाँ ज़रुरत हो, अपना फन भी काढ़िए और एक ज़ोरदार फुफकार भी मारिए, ताकि सामने वाले को भी आपकी शक्ति का अहसास हो सके।
कभी-कभी नाग होने में कोई बुराई नहीं।
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