अक्षरलीला (हाइकु-संग्रह): रमेश कुमार सोनी, पृष्ठ: 112, मूल्य: 340 रुपये, ISBN: 978-93-6423-264-7, प्रथम संस्करण: 2025, प्रकाशक: अयन प्रकाशन, जे- 19/39, राजापुरी, उत्तम नगर, नई दिल्ली— 110059
रमेश कुमार सोनी की लेखनी ने छत्तीसगढ़ी व हिंदी में लेखन के क्षेत्र में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। रोली अक्षत (2004) तथा पेड़ बुलाते मेघ (2018) के बाद उनका तीसरा हाइकु- संग्रह अक्षरलीला मेरे हाथ में है।
रमेश कुमार सोनी हिंदी और छत्तीसगढ़ी भाषा में हाइकु, ताँका, सेदोका छंद को लोकप्रिय बनाने में अग्रणी रहे हैं। हिंदी हाइकु को पारंपरिक ढाँचे से बाहर निकालकर उसे छत्तीसगढ़ी भाषा और लोकसंस्कृति से जोड़ने वाले वे पहले रचनाकार हैं। गुरतुर मया उनका छत्तीसगढ़ी हाइकु संग्रह है। उनकी कविताएँ जीवन, प्रकृति, समाज, पर्यावरण जैसे मुद्दों पर संवेदना व्यक्त करती हैं।
रमेश कुमार सोनी की रचनाओं में लघु छंदों के माध्यम से प्रकृति और समाज के साथ ही पारंपरिक और लोकभाषा संगम की अनूठी भूमिका देखने को मिलती है। वे भाषा और शैली में नवाचार लाते हुए विविध भावनात्मक पक्षों को हाइकु की मर्यादा में समेटने में सक्षम रहे हैं।
14 उपशीर्षकों में विभाजित अक्षरलीला लघु छंद में विराट अनुभूति का संग्रह है। सोनी जी का अनुभव संसार कितना व्यापक है, प्रतिष्ठित साहित्यकार रामेश्वर काम्बोज हिमांशु की सूक्ष्म अंतर्दृष्टि से पता चलता है।
रमेश कुमार सोनी का हाइकु संग्रह ‘अक्षरलीला’ विषयवस्तु की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध और विविधता से भरा हुआ है। इस संग्रह में जीवन के अनेक रूपों की सूक्ष्म झलकियाँ है, जो तीन पंक्तियों में हाइकुकार के पूरे अनुभव संसार को समेटने की कला को दर्शाती हैं। लेखक ने गाँव की सादगी और शहर की चहल-पहल, दोनों को संवेदनशील दृष्टि से देखा है—कहीं खेत की हरियाली है, तो कहीं शहरी भीड़ में खोती संवेदना।
प्रकृति, ऋतुएँ, पेड़-पौधे, पक्षी, बारिश, धूप—इन सबको हाइकु के माध्यम से चित्रित करते हुए, सोनी जीवन के हर उस क्षण को पकड़ते हैं जो अक्सर हमारी व्यस्तता में अनदेखा रह जाता है। उनके हाइकु में मौसम की करवटें सिर्फ जलवायु परिवर्तन नहीं, बल्कि मन की अवस्था का रूप भी बन जाती हैं।
इन हाइकुओं में जीवन के छोटे-छोटे दृश्य हैं—चूल्हे की आँच, नदी के किनारे की चुप्पी, स्कूली बच्चों की आवाज़, पतझड़ में झरते पत्तों की साँसें—जो पाठक को सीधे अनुभव के केंद्र में ले जाते हैं। ‘अक्षरलीला’ के हाइकु सिर्फ पढ़े नहीं जाते, वे महसूस किए जाते हैं।
इनकी विशेषता यह है कि हर हाइकु एक चित्र है। वह चित्र जीवन की एक पूरी कथा को अपने भीतर समेटे होता है। गाँव से शहर, ऋतु से मनोदशा, और प्रकृति से आत्मा तक की यह यात्रा, ‘अक्षरलीला’ को केवल एक हाइकु संग्रह नहीं, बल्कि जीवन-दर्शन की लघु लेखनी बना देती है।
भोर का मौन/ पाखी ने मंत्र पढ़ा/ दुनिया जागी (1)
पहला हाइकु ही प्रकृति के माध्यम से प्रात:कालीन जागरण की एक सूक्ष्म, भावपूर्ण छवि रचता है। पहली पंक्ति एक शांत क्षण की स्थापना करती है। भोर का मौन चेतना के जागरण से ठीक पहले का ठहराव है—जहाँ सारा जगत अभी नींद और जागरण के संधि-काल में है। यह मौन बहुत कुछ कहता है।
यहाँ ‘पाखी’ प्रकृति का पहला पुजारी बन जाता है। उसकी चहचहाहट को कवि ने “मंत्र” कहा है, जिससे पक्षी का स्वर एक पवित्र, जाग्रत करने वाला अनुष्ठान बन जाता है।
अंतिम पंक्ति में क्रिया और परिणाम आता है। पक्षी के मंत्र की गूँज से दुनिया जागती है। यह संवेदना और चेतना के स्तर पर भी एक जागरण है।
यह हाइकु प्रकृति और मानव जीवन के अंतर्संबंध को अत्यंत सूक्ष्म, सौंदर्यपूर्ण और प्रतीकात्मक ढंग से प्रस्तुत करता है। तीन पंक्तियों में एक पूरा दृश्य, एक चेतना और एक संदेश समाहित है। यह कविता पाठक को न केवल सुबह का दृश्य दिखाती है, बल्कि उसे भीतर से जागृत भी करती है।
खेत गा उठे/ बैलों की घंटी संग/ किसान— राग। (5) खेत गा उठे यह मानवीकरण है, जिससे खेत मानो किसान के श्रम के साथ स्वयं संगीत रचने लगते हैं। यहाँ ध्वनि का बिंब अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। बैलों के गले में बँधी घंटियाँ केवल संगीत का स्रोत नहीं, बल्कि श्रम के आरंभ की पुकार हैं। यह ध्वनि परिश्रम की पहचान है, एक लोक-ध्वनि, जो केवल कानों में नहीं, मन में गूँजती है। यह खेत, बैल और किसान के बीच की त्रयी को जोड़ती है।
तीसरी पंक्ति इस हाइकु को एक संगीतात्मक और सांस्कृतिक ऊँचाई पर ले जाती है। ‘किसान-राग’ कोई स्थापित शास्त्रीय राग नहीं, बल्कि किसान के श्रम, पसीने, संघर्ष और आशा का राग है। यह राग प्रकृति से उपजता है—जिसमें मिट्टी की सोंधी गंध, बैलों की चाल, और मानवीय श्रम की तपिश शामिल है।
रमेश कुमार सोनी ने अपने संग्रह में नवीन प्रयोग भी किए हैं-
शेखी बघारे/ काँटों बीच गुलाब/ जेड प्लस में। (53)
काँटों के बीच गुलाब ऐसा है, जैसे उसे जेड प्लस सुरक्षा मिली है।
तितली उड़ी/ ग्लोबल सिटीजन/ प्रकृति जाने। (81)
तितली को कवि ने ग्लोबल सिटीजन कहा है।
कवि ने मृगी को ट्रेनर माना है—
छौने उछले/ मृगी चौकस खड़ी/ ट्रेनर अच्छी। (7)
कवि ने बाज को पैराग्लाइड करते देखा है—
नभ में बाज/ पैराग्लाइड करे/ योग में मग्न। (18)
दर्पण के सामने गौरैया का बच्चों सा ठुमकने का दृश्य मनभावन है—
दर्पण देख/ गौरैया ठुमकती/ बच्चों के जैसी। (46)
आज के युग की भयावह तस्वीर दिखाता यह हाइकु है— फ्रिज सहमा/ चालीस टुकड़ों का/ गवाह बना। (70)
सोनी के इस हाइकु संग्रह के सभी हाइकु भाव भाषा से समृद्ध हाइकु हैं। जीवन, समाज, प्रकृति का कोई भी रंग उनकी लेखनी से छूटा नहीं है। आशा है पाठक को यह संग्रह पसंद आएगा।
मेरे इस हाइकु संग्रह की सुंदर समीक्षा लेखन हेतु रश्मि विभा जी बहुत आभार।
ReplyDeleteप्रकाशन हेतु डॉ. रत्ना जी एवं पूरी उदंती टीम को धन्यवाद।