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Aug 1, 2023

अनकहीः देशभक्ति का सबूत?

- डॉ.  रत्ना वर्मा

 देशभक्ति क्या है? आमतौर पर इंसान यही सोचता है कि देश की सेवा करना उसकी रक्षा करना तो सेना का काम है। तो क्या हम 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन सुबह- सुबह झंडा फहराकर और देश भक्ति गीत गाकर (आजकल तो गाते भी नहीं लोग। ) अपने अपने मोहल्ले और कॉलोनियों में लाउडस्पीकर लगाकर अपनी देशभक्ति का सबूत देते हैं और अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेते हैं। जरा सोचिए, जब सेना का जवान अपनी देशभक्ति के लिए दिन रात 24 घंटे सीमा पर पहरा देते हुए हमारी रक्षा में तैनात खड़ा रहकर और खतरा होने पर अपनी जान देकर भी देश की रक्षा करता है, तो देश के नागरिक होने के नाते हमारा कोई कर्तव्य नहीं बनता? मेरा मानना है कि देश का प्रत्येक व्यक्ति भी हर दिन कुछ न कुछ अच्छा करके देशभक्त बन सकता है- अपने काम के प्रति ईमानदार रहकर, अपना काम समय पर पूरा करके, किसी से लड़ाई- झगड़ा न करके, पर्यावरण को बचाने के लिए पेड़ लगाकर, स्वच्छता के प्रति सचेत रहकर, किसी भूखे को खाना खिलाकर, किसी रोते चेहरे पर मुस्कान बिखेरकर...आदि- आदि। ऐसे बहुत अच्छे- अच्छे काम हैं, जिन्हें करते हुए आप अपनी देशभक्ति का सबूत दे सकते हैं। 

यह सब पढ़ कर कुछ के मन में यह विचार आ सकता है कि यह तो बच्चों को सीख देने वाली बातें हैं या उनके लिए निबंध का विषय है। जी हाँ, बात बिल्कुल यही है। पर सोचिए, हमें यह सब फिर से दोहराने की आवश्यकता क्यों पड़ रही है ? सच तो यह है कि आजकल ये सब बातें सिर्फ़ किताबी या कोर्स में पढ़ाने वाली बातें बनकर रह गई हैं। इन छोटी- छोटी बातों को जीवन में ढालने की बात कहने पर सब व्यंग्य से मुस्कुरा देते हैं और आगे बढ़ जाते हैं;  लेकिन इन सबको नकार देने का अंजाम आप और हम देख ही रहे हैं समाज को कितने खतरनाक परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं।  

अच्छा छोड़िए इन किताबी बातों को, आप ये बताइए कि आप सुबह 10 बजे काम पर निकलते हैं और समय पर ऑफिस पहुँचने के लिए तेजी से गाड़ी भगाते हैं; पर आपको बीच में ही ट्रेफिक जाम मिलता है, आप बौखला जाते हैं और हॉर्न पर हॉर्न बजाए जाते हैं। पर क्या आपके हॉर्न बजाने से आपके लिए सब रास्ते से हट जाएँगे? नहीं न! तो सोचने वाली बात ये है कि आखिर जाम लगा क्यों? दरअसल हममें से ही कुछ लोग होते हैं, जो इस जाम का कारण बनते हैं- सड़क किनारे कहीं भी गाड़ी खड़ी करके किसी दुकान में सामान लेने चले जाते हैं, तो कभी ऑटो वाला सड़क के बीच में ही खड़ा हो जाता है और सवारी उतारने लगता है, सिटी बस अपने स्टॉप की जगह बस खड़ी न करके, जहाँ सवारी मिलती है, वहीं बस रोक देता है। सबको अपने स्थान पर पहुँचने की जल्दी रहती है, तो सारे नियम ताक पर रख कर सब आगे निकल जाना चाहते हैं भले ही जाम में घंटों फँसे रहते हैं। लेकिन जाम न लगे, इसके लिए प्रयास कोई भी नहीं करता। 

अब एक दूसरा दृश्य देखिए -आप सुबह- सुबह टहलने निकले है- पास के बगीचे में आप हरे- भरे पेड़ों के बीच स्वच्छ वातावरण में साँस लेते हुए व्यायाम करते हैं और दिन की अच्छी शुरूआत करना चाहते हैं; पर क्या सचमुच ऐसा हो पाता है?  पेड़ तो लगाए गए थे; पर उनकी सही देखभाल नहीं होने से या तो सूख गए हैं या मर चुके हैं, और तो और  चिप्स खाकर पॉलीथीन के रैपर फेंककर चारों ओर गंदगी फैलाने वालों की कमी नहीं है।  मानो ये गार्डन न होकर कबाड़खाना हो। इतना ही नहीं कुछ भक्त बगीचे में खिले रंग- बिरंगे फूलों को भी नोचकर ले जाते हैं।  जाहिर है सुबह- सुबह यह सब देखकर मन खिन्न हो ही जाएगा। 

अब आप कहेंगे इन बातों का देशभक्ति से क्या लेना देना। दरअसल समस्या तो यहीं है।  ऐसी ही छोटी- छोटी बातों से ही आपकी देशभक्ति झलकती है । जैसे हर व्यक्ति भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, जमाखोरी, सबको देश का दुश्मन मानते हैं;  लेकिन जब बात खुद पर आती है, तो  कहते हैं कि आजकल बिना रिश्वत दिए किसी भी ऑफिस में कोई काम नहीं होता। चपरासी से लेकर बाबू तक, सबको रिश्वत देते हुए अपना काम करवाना पड़ता है;  लेकिन जब इसके विरुद्ध आवाज उठाने की बारी आती है तो सब पीछे हट जाते हैं ,यह कहते हुए कि मेरे एक के विरोध करने से कौन देश का भला हो जाएगा। जाहिर है, जब कर्तव्य निभाने की बात आती है तो ट्रैफिक के सारे नियम तोड़ते हुए आगे बढ़ जाते हैं। 

कहने का तात्पर्य यही है कि अगर आप स्वयं को एक जिम्मेदार नागरिक कहते हैं, तो चाहे आप नौकरी कर रहे हों या व्यवसाय,  कुछ ऐसा काम कीजिए, जो आपके लिए और आपके देश की उन्नति में सहायक हो।  कम शब्दों में कहें तो सबसे पहले एक भारतीय होने पर गर्व महसूस कीजिए, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा का सम्मान करना सीखिए। छोटा और बड़ा हम अपने कर्मों से बनते हैं, तो ऐसे कर्म कीजिए कि देश को आप पर गर्व हो। बच्चों को ऐसी शिक्षा दीजिए कि वे देश की उन्नति में हाथ बँटा सकें। जीवन में ऐसी बहुत सी छोटी- बड़ी बातें हैं- जैसे- सब अपनी लेन पर चलेंगे, तो ट्रेफिक जाम नहीं होगा, कोई बगीचे से फूल नहीं तोड़ेगा तो फूलों की खुशबू से पूरा बगीचा महकेगा और यदि आपने कुछ पौधे रोपकर उनकी देखभाल की, तो हमारा पर्यावरण भी शुद्ध रहेगा, स्वच्छता बनाए रखेंगे, तो बीमारियों से बचेंगे। कामचोरी नहीं करेंगे, रिश्वत नहीं लेंगे, भ्रष्ट आचरण नहीं करेंगे, टैक्स चोरी नहीं करेंगे, तो हमारा देश उन्नत होगा और देश उन्नत होगा, तो यहाँ के रहने वाले खुशहाल होंगे। एक खुशहाल देश के लिए आप यदि ये छोटे - छोटे काम करते चले जाएँगे ,तो इससे बड़ी देश सेवा और देशभक्ति और कुछ हो ही नहीं सकती। 

7 comments:

विजय जोशी said...

आदरणीया,
बिल्कुल सही सोच। देशभक्ति एवं ईमानदारी का अभाव हमारे देश को घुन की तरह खा रहा है और अब फ्री के आधार पर सरकार के चयन ने बचे खुचे का समापन।
सेना के प्रति आदर का अभाव दूसरी त्रासदी है।
शेष विषय जैसे पर्यावरण, प्रदूषण, प्रकृति संरक्षण तो आप छोड़ ही दीजिये।
खैर लोग अपनी जगह ही ईमानदारी से काम कर लें तो देश तर जाएगा। कम से कम उसी के प्रति निष्ठा रखें। तब ही तो कह सकेंगे :
- आज मेरा देश सारा लाम पर है
- जो जहां भी है वतन के काम पर है
हर बार की तरह इस बार भी सामयिक विषय को बकलम करने के लिए साधुवाद एवं हार्दिक बधाई। सादर

रमेशराज तेवरीकार said...

देश के वही आदमी करीब है
जो या तो मूर्ख है या ग़रीब है।
*सुदामा पांडेय धूमिल

रमेशराज तेवरीकार said...

राष्ट्रवाद की सच्ची तश्वीर प्रस्तुत की है आपने। सम्पादकीय बहुत कुछ सोचने को मजबूर करता है। बधाई

Anonymous said...

सामयिक एवं महत्वपूर्ण विषय का सही आकलन करता सम्पादकीय। आपको हार्दिक बधाई सुदर्शन रत्नाकर

देवेन्द्र जोशी said...

डॉ रत्नाजी आपने बहुत ही सरल शब्दों में हर भारतीय राष्ट्र के लिए अपना अपना छोटा छोटा योगदान किस प्रकार दें सकती है सुन्दर तरीके से बताया हैl आशा है कम से कम जिन लोगों तक यह पहुंच पायेगा वे इसका पालन अवश्य करेंगेंl आपका अभिनन्दनl

डॉ. दीपेन्द्र कमथान, बरेली said...

आपने राष्ट्रवाद का सच्चा आईना आपने दिखाया है !
देशभक्ति का अभाव हमारे देश में कदापि नहीं है परंतु इसका बाजा बजाने वाले बहुत हैं !
सेना के प्रति आदर का सम्मान तो दूर लोग सेना पर उँगली भी उठाते हैं !

अन्य देशों की तरह यदि भारत में भी एक परिवार से एक व्यक्ति की सेना में अनिवार्यता कर दी जाये तब जाकर कहीं रोज़ देश भक्ति के गीत दिल से गुनगुनाये जाएँगे !
हर बार की तरह इस बार भी उदंती ने अपनी छाप छोड़ी है जिसके लिये आपको बहुत बधाई !

सादर !

dr. ratna verma said...

आप सभी आदरणीय प्रबुद्धजनों का तहे दिल से शुक्रिया। दरअसल हमारी पीढ़ी को जिस प्रकार की शिक्षा और संस्कार मिले हैं उसकी कमी आज के दौर में दिखाई देती है। सब बस खानापूर्ति करते नजर आते हैं। तो हम सबको मिलकर इस जज्बे को जिंदा रखना होगा। आप सबने मेरे विचारों को सराहा और सहमति जाहिर की इसके लिए आप सबका हार्दिक आभार।