हमें हार नहीं माननी चाहिए
और समस्या को हमें हराने की
अनुमति नहीं देनी चाहिए।
– ए. पी. जे. अब्दुल कलाम
इस अंक में
अनकहीः भारत की आत्मा पर हमला - डॉ. रत्ना वर्मा
आलेखः कठघरे में इंसाफ - डॉ. महेश परिमल
चिंतनः नैतिक मूल्यों का ह्रास और वर्तमान समाज - शिवजी श्रीवास्तव
यात्रा संस्मरणः फ़िनलैंड: जादुई पल और अनकही बातें - जैस्मिन जोविअल
आलेखः दुनिया की आधी आबादी को स्वच्छ पेयजल मयस्सर नहीं
प्रेरकः रेगिस्तान में दो मित्र - निशांत
प्रकृतिः म्यांमार भूकंप- शहरी विकास के लिए चेतावनी - प्रमोद भार्गव
स्वास्थ्यः कटहल के लाभ - डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन
कविताः पिता, तुम सच में चले गए? - डॉ. पूनम चौधरी
निबंधः मेरी पहली रचना - प्रेमचंद
प्रसंगः एक भावुक दृश्य - लिली मित्रा
लघुकथाः 1. संवेदनाओं का डिजिटल संस्करण, 2. ज़िंदा का बोझ - डॉ. सुषमा गुप्ता
हाइबनः प्रवासी पक्षियों का आश्रय चिल्का झील - अंजू निगम
कहानीः ग़ैर-ज़रूरी सामान - नमिता सिंह 'आराधना'
व्यंग्यः दास्तान-ए-सांड - डॉ. मुकेश असीमित
लघुकथाः बड़कऊ - रचना श्रीवास्तव
कविताः अम्मा का गुटका - भावना सक्सैना
ग़ज़लः तुम्हें राधा बुलाती है - अशोक शर्मा
किताबेंः विचित्रता से घिरे मन और बुद्धि - रश्मि विभा त्रिपाठी
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