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Jun 1, 2025

जीवन दर्शनःटॉम स्मिथ संस्कार से सफलता

  - विजय जोशी  - पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)

जीवन में हर एक का धरती पर आगमन होता है , ईश्वर प्रदत्त गुणों और मूल्यों सहित। आदमी से अपेक्षा रहती है कि वह अपने आगमन को सार्थक कर योगदान देते हुए विदा हो। किन्तु सोचिए भौतिक सुख के मायाजाल की खोज में उलझे हममें से कितने विवेक का सही उपयोग कर पाते हैं। सत्यनिष्ठा और ईमानदारी का मार्ग कठिन है पर अंततः जीवन में वही सफलता का सोपान बनता है।
- मृत्यु के समय व्यक्ति टॉम स्मिथ ने अपने बच्चों को बुलाया और अपने पद- चिह्नों पर चलने की सलाह दी , ताकि उनको अपने कार्य में मानसिक शांति मिले।
- उसकी बेटी सारा ने कहा : डैडी, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आप एक पैसा भी छोड़े बिना मर रहे हैं। जिनको आप भ्रष्ट बताते हैं वे अपने बच्चों के लिए सम्पत्ति छोड़कर जाते हैं। हमारा तो घर भी किराये का है। आप जाइए। हमें अपना मार्ग स्वयं बनाने दीजिए।
- कुछ क्षण बाद उनके पिता ने अपने प्राण त्याग दिए।
- तीन साल बाद सारा एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में इंटरव्यू देने गई। कमेटी  चेयरमैन ने पूछा : तुम कौन सी स्मिथ हो?
- सारा ने उत्तर दिया : मैं सारा स्मिथ हूँ। मेरे पिता टॉम स्मिथ अब नहीं रहे।
- चेयरमैन ने उसकी बात काट दी : हे भगवान, तुम टॉम स्मिथ की पुत्री हो।
- टॉम स्मिथ के बारे पूछने पर वे कमेटी सदस्यों से बोले : वे स्मिथ थे, जिन्होंने मेरे सदस्यता फ़ार्म पर हस्ताक्षर किए और उनकी अनुशंसा से ही मैं वह स्थान पा सका , जहाँ आज हूँ। उन्होंने यह स्वार्थरहित होकर किया था। हम दोनों एक दूसरे को नहीं जानते थे। फिर भी यह किया था।
- फिर वे सारा की ओर मुड़े :  तुम स्वयं को इस पद पर चुना हुआ मान लो। तुम्हारा नियुक्ति पत्र तैयार है।
- सारा स्मिथ कम्पनी में कॉरपोरेट मामलों की प्रबंधक बन गई। दो साल बाद कम्पनी चेयरमेन की इच्छा किसी योग्य को अपना पद देने की हुई। उन्हें ऐसा व्यक्ति चाहिए , जो सत्यनिष्ठ और ईमानदार हो। सलाहकार ने उस पद के लिए सारा स्मिथ को नामित किया। 
- एक इंटरव्यू में जब सारा से उसकी सफलता का राज पूछा गया , तो उसने मार्मिक उत्तर दिया : मेरे पिता ने मेरे लिए मार्ग खोला था। उनकी मृत्यु के बाद ही मुझे पता चला कि वे भले ही निर्धन थे, लेकिन सत्यनिष्ठा में वे बहुत धनी थे।
- फिर उससे पूछा गया कि वह रो क्यों रही है। उसने उत्तर दिया : मृत्यु के समय मैंने ईमानदार होने के कारण पिता का अपमान किया। मुझे आशा है वे जहाँ भी हैं , मुझे क्षमा कर देंगे। मैंने कुछ नहीं किया। उन्होंने ही मेरे लिए यह सब किया था।
- अन्त में उससे पूछा गया : क्या तुम अपने पिता के पद- चिह्नों पर चलोगी। 
- उसका उत्तर था : मैं अब अपने पिता की पूजा करती हूँ। मेरे लिए भगवान के बाद उनका ही स्थान है।
- निष्कर्ष : मित्रों आप भी चिंतन करें कि क्या आप टॉम स्मिथ की तरह हैं। ईमानदारी, आत्मनियंत्रण और पापों से डरना ही किसी व्यक्ति को धनी बनाते हैं, मोटा बैंक खाता नहीं। सो अपने बच्चों के लिए संस्कार रूपी एक अच्छी  विरासत छोड़कर जाइए

38 comments:

  1. आदरणीय सर, बेहद भावुक और दिल की छू लेने वाली कहानी है घटना है। पढ़ते हुए आँखें नम हो गईं। आज की भागदौड़ में और एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में हमने जीवन का सही रास्ता सच में कहीं खो दिया है। ऐसी प्रेरक घटनाएं पढ़ कर जीवन का असली मजा और असली राष्ट्पत चलता है। बहुत बहुत धन्यवाद सर ।

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  2. सत्य और ईमानदारी की राह पर चलना आसान भले ही ना हो लेकिन लोग ऐसे लोगों का बहुत आदर आज भी करते हैl प्रेरणादायक उद्धरणl

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  3. सत्य और ईमानदारी की राह पर चलना अवश्य ही मुश्किल है, लेकिन ऐसे लोगों का सम्मान आज भी लोग बहुत करते हैंl बहुत ही उत्तम उद्धरण!

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    1. आदरणीय
      बात तो सही है पर अब ऐसे व्यक्तित्व विरले होते जा रहे हैं। यही त्रासदी है। हार्दिक आभार सहित सादर

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  4. प्रेरणास्पद लेख, धन्यवाद

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    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय मित्र मनीष

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  5. राजेश शुक्ला03 June

    सर जी जीवन की इस यात्रा मे सच्चाई मे बहुत बड़ी ताकत है सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं हो सकता
    बहुत ही ज्ञान बर्धक संस्मरण है 🙏🏻

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    1. प्रिय बंधु राजेश
      सत्य ही सार्थक है लंबे अरसे में। झूठ अधिक समय नहीं चल पाता। हार्दिक धन्यवाद सहित सस्नेह

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  6. आदरणीय सर, बेहद भावुक और दिल की छू लेने वाली कहानी है घटना है। पढ़ते हुए आँखें नम हो गईं। आज की भागदौड़ में और एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में हमने जीवन का सही रास्ता सच में कहीं खो दिया है। ऐसी प्रेरक घटनाएं पढ़ कर जीवन का असली मजा और असली रास्ते का पता चलता है। बहुत बहुत धन्यवाद सर ।

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    1. Thanks very much Dear Dr. Surinder. Regards

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  8. Sir....motivational writeup,
    ईमानदारी हो जीवन का गहना,
    सत्य की राह न छोड़े ये सपना।
    आत्मनियंत्रण हो जब मन का दीप,
    हर संकट में मिले हमें जीत।

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    1. प्रिय जयेश
      हार्दिक आभार। सस्नेह

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  9. पंडित अनिल ओझा03 June

    आपकी कलम के कमाल को सलाम।हमेशा इंतेज़ार रहता है आपके हृदय स्पर्शी लेख का सो सीधे दिल को छूते हैं।सत्य की राह पर चलना बहुत मुश्किल है पर खास बात ये है इस राह पे भीड़ बहुत कम रहती है तो मंज़िल तय करने में दिक्कत नहीं आती।क्या लेकर तू आया बंदे,क्या लेकर तू जाएगा।सोच समझ ले re मन मूर्ख।अंत काल पछताएगा।

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    1. प्रिय अनिल भाई
      कमाल तो आपका है इस वाट्सएपि दौर में भी पढ़ पाने का साहस रख पाने का। मनोबल।बढ़ाने का। हार्दिक आभार सहित सादर

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  10. पिताश्री अप्रतिम व सरल शब्दों में लिखा गया लेख। मेरे पिताश्री तो है ही प्रेरणास्रोत। पिताश्री को सादर प्रणाम व चरण स्पर्श

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  11. प्रिय राजीव भाई
    यह आपका भावुक मन ही है जो पिघल गया इतने छोटे से उद्धरण पर। इस दौर में आप जिसे दोस्त विरले से मिलते हैं। मेरा सौभाग्य। हार्दिक बधाई। सादर

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    1. आदरणीय सर, आपकी लेखनी में और आपके लिखने में ऐसा कमाल है कि पढ़कर हृदय द्रवित हो जाता है। आपसे संपर्क में आना तो मेरा सौभाग्य है। आशा है आपका आशीर्वाद हमेशा मिलता रहेगा। सादर आभार।

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  12. प्रिय हेमंत
    हमेशा की तरह त्वरित प्रतिक्रिया प्रदान कर लेखन को सार्थक कर पाने का। हार्दिक आभार सहित सस्नेह

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  13. आदरणीय सर,

    बहुत ही प्रेरणादायक एवं अनुकरणीय लेख । कबीरदास जी द्वारा कहा भी गया है कि

    साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
    जिस हिरदे में साँच है, ता हिरदै हरि आप।।

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  14. प्रिय बंधु शरद
    बहुत गुणी हो इसीलिये सदा साझा करता हूं और प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा भी। झूठ का सफ़र कदम दो कदम। सच का सफ़र उम्र भर। हार्दिक आभार सहित सस्नेह

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  15. Anonymous03 June

    आदरणीय प्रेरणादायक लेखन है आपका। आपको बारंबार साधुवाद 🙏

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    1. हार्दिक आभार मित्र

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  16. आदरणीय सर,
    अत्यंत मार्मिक तथा प्रेरणादायक लेख।

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    1. हार्दिक आभार प्रिय बंधु महेश. सस्नेह

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  17. उक्ति हे एक । काम कठिन है इसीलिए करने योग्य है सरल काम तो सब करते है ।

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    1. आदरणीय
      हार्दिक आभार। सादर

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    2. आदरणीय जोशीजी की रचनाएं सदैव अत्यंत प्रेरणादायक होती है। इस रचना में टीम स्मिथ की सत्य एवं ईमानदारी का सुंदर चित्रण किया गया है। आदरणीय जोशीजी को बहुत बहुत साधुवाद।

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    3. प्रिय कृष्णकांत भाई
      आपके स्नेह के प्रति हार्दिक आभार सहित। सादर

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  18. कहानी अच्छी है।पर मैं सोचता हूं कि अगर सारा अगर कोई दूसरे कंपनी मे जाती जहां उसके पिता को जानने वाले नहीं होते,तो शायद ये असर नही होता।

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    1. आदरणीय
      बात तो सही है। पर संदेश स्पष्ट है। हार्दिक आभार सादर

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  19. Anonymous05 June

    बिरले ही होते हैं जिन्हें परोपकार ही दिखता है वरना स्वार्थ व धनार्जन के आगे सब नतमस्तक हैं, मर्म को छूती लेखनी को नमन,🌹🙏रवीन्द्र निगम

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  20. प्रिय बंधु रवींद्र
    परोपकार का सुख उम्र भर की कमाई कहलाती है। हार्दिक आभार सहित

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    1. Anonymous09 June

      सादर अभिवादन🙏

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  21. Daisy C Bhalla09 June

    Today many of my friends were in tears on remembering our fathers on sending them a quote .... just as this article by you- a pillar who stood by ignoring the whole world. Taught us about truth , discipline and upright behaviour.

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  22. Dear Daisy
    So nice of you for feeling the depth of this submission. I appreciate and respect your sentiments. Regards

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  23. Anonymous12 June

    बहुत सुंदर, Dr. Abdul Kalam Azad की याद आ गई । सब एसी ही खूबियों धनी थे ||

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  24. Anonymous12 June

    प्रिय मित्र
    हार्दिक आभार सादर

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