इस अंक में
अनकहीः योजनाओं के मकड़जाल में देश - डॉ. रत्ना वर्मा
हिन्दी दिवसः जब भाषाएँ मरने लगती हैं - डॉ.
आशीष अग्रवाल
हिन्दी दिवसः संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनी
हिन्दी - प्रमोद भार्गव
आधुनिक बोध कथा-9ः पैसा
पैसे को खींचता है - सूरज प्रकाश
आलेखः हम अपनी गलतियों से ही सीखते हैं -
सीताराम गुप्ता
जीव-जगत्: कबूतर 4 साल तक रास्ता नहीं भूलते - स्रोत फीचर्स
यात्रा-संस्मरणः गढ़ मुक्तेश्वर- गंगा मैया की
आरती का अद्भुत नजारा - अंजू खरबंदा
स्वास्थ्यः टाइप-2
डायबिटीज़ - महामारी से लड़ाई - डॉ. डी. बालसुब्रमण्यम
नवगीतः सारे बन्धन भूल गए - रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
कविताः हमें बेखौफ उड़ने दो - डॉ. शिप्रा मिश्रा
चिंतनः जीवन के कुछ पल - साधना मदान
व्यंग्यः आप कौन से अतिथि हैं - राजेंद्र वर्मा
कविताः धरोहर के रूप में - डॉ. लता अग्रवाल
ग़ज़लः रोज बहाने - विज्ञान व्रत
लघुकथाः शबरी के बेर - ज्योति जैन
लघुकथाएँ: मनीऑर्डर, वह लड़की है, जहरीली घास - खेमकरण सोमन
किताबेंः स्त्री संघर्ष का जीवंत दस्तावेज़ - भावना सक्सैना
कविताः भूल न पाओगे - डॉ. महिमा श्रीवास्तव
जीवन-शैलीः खुश रहना हो तो प्रकृति के पास जाएँ - समीर उपाध्याय ‘ललित’
जीवन दर्शनः मानव जीवन: एक अनसुलझी पहेली - विजय जोशी
रचनाकारों से ...
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एक अच्छे अंक की बधाई।
ReplyDeleteसभी स्तंभ अपने स्थान पर अपनी गुरुता लिए हुए हैं।
साहित्य की सुन्दर विधाओं से सम्पृक्त पठनीय एवं संग्रहणीय अंक।
ReplyDeleteउदंंती हर बार उत्कृष्ट सामग्री के साथ बहुत ही मनमोहक आवरण ओढ़कर आती है।
हार्दिक बधाई एवं अशेष शुभकामनाएँ आदरणीया रत्ना दीदी को।
सादर
आकर्षक आवरण के साथ बहुत सुंदर अंक। सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteपत्रिका देखने का सुअवसर मिला. मैं इस पत्रिका के लिए नवागंतुक हूँ. लेकिन इसके सुन्दर, सुसज्जित कलेवर को देख मन तृप्त हो गया. मुझे अत्यंत प्रसन्नता हुई.इस पत्रिका से जुड़कर बहुत गौरवान्वित महसूस कर रही हूँ. इस पत्रिका के स्वर्णिम भविष्य के लिए अनेकानेक बधाइयाँ एवं असीम शुभकामनाएँ 🌹🌹🙏🙏
ReplyDeleteएक और सुंदर अंक हेतु बधाई।
ReplyDeleteबहुत सार्थक व सटीक चिन्तन।
ReplyDeleteसुंदर नये अंक की हार्दिक बधाई
ReplyDeleteसुंदर अंक हेतु हार्दिक बधाई।
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ReplyDeleteआकर्षक आवरण के साथ बहुत सुंदर अंक। सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।सुदर्शन रत्नाकर
आप सभी का हार्दिक आभार। आपके प्रोत्साहन भरे शब्दों से हमारा उत्साह बना रहता है और हमारा प्रयास रहता है कि पत्रिका को और बेहतर बनाया जा सके।
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