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चित्रः वंदना परगनिहा |
नवम्बर- दिसम्बर- 2014
जिस साहित्य से हमारी सुरुचि न जागे, आध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति न मिले, हममें गति और शक्ति न पैदा हो, हमारा सौंदर्य प्रेम न जागृत हो, जो हममें संकल्प और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की सच्ची दृढ़ता न उत्पन्न करे, वह हमारे लिए बेकार है, वह साहित्य कहलाने का अधिकारी नहीं है। -मुंशी प्रेमचंद्र
कालजयी कहानी विशेष
सभी कहानियाँ बहुत अनूठी और ऐतिहासिक महत्त्व की है।इस तरह का अयोजन भविष्य में भी होता रहेगा, ऐसी आशा है।
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