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Oct 1, 2025

कविताः जगमग जगमग

  - सोहनलाल द्विवेदी






हर घर, हर दर, बाहर, भीतर,

नीचे ऊपर, हर जगह सुघर,

कैसी उजियाली है पग-पग?

जगमग जगमग जगमग जगमग!


छज्जों में, छत में, आले में,

तुलसी के नन्हें थाले में,

यह कौन रहा है दृग को ठग?

जगमग जगमग जगमग जगमग!


पर्वत में, नदियों, नहरों में,

प्यारी प्यारी सी लहरों में,

तैरते दीप कैसे भग-भग!

जगमग जगमग जगमग जगमग!


राजा के घर, कंगले के घर,

हैं वही दीप सुंदर सुंदर!

दीवाली की श्री है पग-पग,

जगमग जगमग जगमग जगमग!

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