- प्रमोद भार्गव
भारत में श्रावण मास ऐसा महीना है, जिसमें पूरे माह भगवान शिव की आराधना की जाती है। सनातन संस्कृति में इसे सबसे शुभ महीना माना जाता है। इस समय ब्रह्मांड में शिव तत्वों की व्याप्ति हो जाती है। ऐसे में शिव की पूजा यदि अनुष्ठानों के माध्यम से की जाती हैं तो शरीर, इंद्रिय और आत्मा शुद्ध बनी रहती है। काल गणना के सौर वर्ष के अनुसार यह पाँचवाँ महीना है। इस माह की विशेषता यह भी है कि इस माह के समाप्त होने के बाद निरंतर पर्वों का सिलसिला शुरू हो जाता है। रक्षाबंधन, कृष्ण जन्माष्टमी, श्री गणेश महोत्सव, शारदीय नवरात्रि, दशहरा और फिर दीपावली। इस समय लोग स्थानीय शिव मंदिरों में तो पूजा करते ही हैं, बारह ज्योतिर्लिंग पर भी पूजा करने जाते हैं।
शिव की महिमा इसलिए है; क्योंकि उन्हें ब्रह्म माना जाता है। उनका अस्तित्व प्रत्येक उस प्राणी में माना जाता है, जिसका अस्तित्व है। जब पृथ्वी पर कुछ भी नहीं था, तब भी शिव थे। अतएव उन्हें आदि देव कहा जाता है। आदिदेव से तात्पर्य है, सर्वोच्च ईश्वर; इसलिए श्रद्धालु सभी ज्योतिर्लिंग पर दर्शन करने जाते हैं। झारखंड में बाबा वैद्यनाथ धाम पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है। श्रावण के महीने में यहाँ एक मेला आयोजित होता है, जिसे श्रावण मेला कहते हैं। अनेक श्रद्धालु यहाँ नंगे पैर चलकर आते हैं और शिवलिंग पर गंगाजल अर्पित करते है। महाराष्ट्र का त्र्यंबकेश्वर मंदिर में शिवलिंग पर तीन चेहरे उत्कीर्ण हैं, जिनमें ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र विराजमान हैं। ऋग्वेद में रुद्र को शिव ही कहा गया है। गुजरात में सोमनाथ मंदिर भी ज्योर्तिलिंग हैं। श्रावण महीने में यह मंदिर सुबह 4 बजे खुलता है और रात 10 बजे कपाट बंद होते है। पूरे भारत से यहाँ भक्त आते हैं। उत्तराखंड में केदारनाथ मंदिर हिमालय में मंदाकिनी नदी के निकट है। इस मंदिर के निकट ही चार प्रमुख धार्मिक स्थल यमुनोत्री, गंगोत्री और बद्रीनाथ हैं। यहाँ स्थित गौरीकुंड से 14 किमी की चढ़ाई करने पर दुनिया के सबसे ऊँचे शिखर पर स्थित तुंगनाथ शिव मंदिर है। लोग 3810 मीटर की यह ऊंचाई बम-बम भोले का नाम लेते हुए चढ़ते हैं।
वाराणसी में प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर गंगा नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर ब्रह्मांड के शासक भगवान विश्वनाथ को समर्पित है। इस मंदिर से साढ़े तीन हजार साल पुराना इतिहास जुड़ा है। श्रावण महीने में इस मंदिर पर भव्य उत्सव मनाने के साथ भगवान को नए-नए आभूषणों से सजाया जाता है। ओड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर में लिंगराज मंदिर है। श्रावण महीने में यहाँ भी बड़ा समारोह आयोजित करके शिव की पूजा की जाती है। मध्य प्रदेश में ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग है। नर्मदा नदी के तट पर स्थित यहाँ जो पहाड़ है, वह ओम के आकार का है; इसलिए इसे ओंकारेश्वर शिव मंदिर कहा जाता है। शंकराचार्य ने इसी पर्वत पर आराधना करके ज्ञान की प्राप्ति की थी। आंध्र प्रदेश में मल्लिकार्जुन मंदिर श्रीशैलम जिले में स्थित है। इसकी गिनती भी ज्योतिर्लिंग में है। इस मंदिर परिसर की पहाड़ियों की दीवारों पर शिव के अनेक नयनाभिराम चित्र अंकित हैं। उज्जैन में भगवान महाकाल के नाम से प्रसिद्ध ज्योर्तिलिंग हैं। क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित इस मंदिर को पृथ्वी का केंद्र बिंदु माना जाता है; क्योंकि यहाँ से कर्क और भूमध्य रेखाएँ परस्पर काटते हुए निकलती हैं। इसलिए यह कालगणना का भी प्राचीन केंद्र है। मुनि सांदीपनि का यहाँ आश्रम है। भगवान कृष्ण और बलराम ने इसी आश्रम से शिक्षा प्राप्त की थी। कर्नाटक में मुरुदेश्वर मंदिर है। यह अरब सागर के उत्तरी किनारे पर स्थित है। यहाँ शिवलिंग मंदिर के अलावा भगवान शिव की 123 फीट ऊंची शिव की प्रतिमा है। असम में सुकरेश्वर शिव मंदिर है। इसे राजा प्रमत्त सिंघा ने बनवाया था। पश्चिम बंगाल में तारकनाथ शिव मंदिर है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। महाराष्ट्र के पुणे के निकट भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग है। महाराष्ट्र में ही घृश्णेश्वर ज्योतिर्लिंग है। यहाँ महाशिवरात्रि पर विशेष आयोजन होते है। यहाँ बारह स्थानों पर स्थित शिव ज्योति स्वरूप में स्थापित हैं। गुजरात में द्वारका के निकट नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर है। शिव-पुराण के अनुसार शिव का एक नाम नागेश है, इसलिए इसे नागेश्वर कहा जाता है। तमिलनाडु में रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग है। त्रेतायुग में भगवान राम ने रावण वध के बाद यही रुके थे और समुद्र तट पर बालू से शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा की थी। बाद में यह शिवलिंग वज्र के समान हो गया। इसे ही रामेश्वरम कहा जाने लगा। अतएव श्रावण का महीना ईश्वर की पूजा-अर्चना की दृष्टि से बारह महीनों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
अयोध्या में भागवान राम की प्राण-प्रतिष्ठा के साथ ही देश के मंदिरों में धार्मिक पर्यटन कई लाख करोड़ की अर्थव्यवस्था का आधार बन रहा है। भक्ति का यह व्यापार 10 से 15 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ रहा है। यहाँ तक की कई राज्यों में प्रमुख मंदिरों की आर्थिकी उस राज्य के कुल वार्षिक बजट से भी कहीं अधिक है। भारत में धनी मंदिरों की बात करें तो तिरुवनंतपुरम में स्थित पद्मनाभ स्वामी मंदिर के खजाने में हीरे, सोने और चाँदी के गहनों समेत इन्हीं धातुओं की अनेक मूर्तियाँ हैं। माना जाता है मंदिर के पास 20 अरब डॉलर की संपत्ति है। मंदिर के गर्भगृह में 500 करोड़ रुपये की भगवान विष्णु की मूर्ति है। इस मंदिर के बाद तिरुपति बालाजी मंदिर सबसे धनी मंदिर है। यहाँ 680 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष दान में मिलते हैं। इस विष्णु मंदिर के पास नौ टन सोना है और 14000 करोड़ रुपये बैंक में सवधि योजनाओं में जमा है। तीसरे नंबर पर शिरडी के साईं बाबा मंदिर है। यहाँ सालभर में 380 करोड़ रुपये दान में आते है, इसके अलावा मंदिर के पास 460 किलो सोना, 5428 किलो चाँदी और डॉलर-पाउण्ड जैसी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा को मिलाकर 18000 करोड़ रुपये बैंकों में जमा है। 52 शक्ति पीठों में एक माता वैष्णव देवी मंदिर में प्रतिवर्ष 500 करोड़ दान में आते हैं। उज्जैन के महाकाल मंदिर में लगभग 100 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष दान में आते हैं। मंदिर के पास 34 लाख का सोना और 88 लाख 68 हजार की चाँदी है। तमिलनाडु के मीनाक्षी मंदिर की प्रतिवर्ष सालाना कमाई छह करोड़ रुपया है। इनमें से ज्यादातर मंदिर भक्तों के लिए निशुल्क भोजन के अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य, जल प्रबंध और सड़क निर्माण के प्रकल्प चलाते हैं। आपदा आने पर सरकारी राहत कोश में योगदान भी करते हैं।
यदि ईश्वर दर्शन के इस धार्मिक पर्यटन में विवाह और दीपावली जैसे पर्व की आर्थिकी को भी जोड़ दिया जाए, तो यह आर्थिकी कई लाख करोड़ की होगी ? अतएव मर्यादा पुरुषोत्तम राम और कृष्ण की महिमा नैतिकता के प्रतिमान और मानवता के चरम आदर्श व उत्कर्ष से जुड़ी तो है ही, अब बड़ी आर्थिकी का भी आधार बन गई है। गोया यह धार्मिक पर्यटन का भक्तिकाल तो है ही, देश की अर्थव्यवस्था को नूतन व निरंतर बनाए रखने का भी बड़ा आयाम बनता दिखाई दे रहा है।
सम्पर्कः शब्दार्थ 49, श्रीराम कॉलोनी, शिवपुरी (म.प्र.), मो. 09425488224, 9981061100
No comments:
Post a Comment