उदंती.com

Jul 1, 2025

संस्मरणः एक भिखारी की कथा

  - श्यामल बिहारी महतो

   उस भिखारी से यह मेरी पहली मुलाकात नहीं थी, इसके पहले भी हम दो बार मिल चुके थे। अपने ही हाथों से उसे दो बार भीख भी दे चुके थे। एक बार एक कटोरा चावल और दूसरी बार पाँच रुपये दिये थे। कारण घर में ताला लगा हुआ था और मेरे पास दूसरी चाभी नहीं थी। घर से उसका निराश खाली हाथ लौटना मुझे अच्छा नहीं लगा था‌। हाँ तब उसके बारे कुछ पता भी नहीं था। 

आज फिर वही अचानक चार बजे भोर घर के बाहर मिल गया। गाय बैलों को खूँटे से बाँध, उनके सामने पुआल डाल दिया और मैं खुद आग जलाकर हाथ- पैर सेंकने लगा था। तभी वह आग के आगे भूत की तरह आकर खड़ा हो गया, खुद को सेंकने के लिए वह अपना हाथ- पैर सरियाते हुए। 

“अगहन महीना से ठंडा काफी बढ़ जाता है..!”  कहते- कहते अलाव से थोड़ी दूर वह बैठ गया था। 

“हाँ, यही अगहन पुस माह का महीना तो है, जो ठंड का असली रूप दिखाता है। अमीरी गरीबी का फर्क बताता है- पहचान कराता है। एक ठंड ही है, जो किसी के साथ भेदभाव नहीं करता है और सबको समान रूप से ठंड बाँटता है।”।

मैंने उसकी तरफ देखा। देह पर मात्र एक फटा पुराना कुर्ता, पैरों में पुरानी फटी चप्पल और अपनी कांपती  देह पर एक फटी चादर उसने ऊपर से ओढ़ रखी थी। तथा कंधे पर एक मटमैला- सा झोला टाँग रखा था। 

“आप आग तापिये, मै अभी आया..!”  कह मैं अंदर गया और एक पुराना स्वेटर लाकर उसे देकर कहा- ‘‘इसे पहन लीजिए, ठंड से बचने में मदद मिलेगी, ऊन की है।" 

"बहुत मेहरबानी बाबू जी..!" 

"वैसे आज इतनी भोर कुकुआते ठंड में कहाँ चल दिया..?" मैं पूछ बैठा था। 

"गुंजरडीह के झूलन मोदी के घर में रात था। घर की औरतें आधी रात को ही कोयला लाने- जाने के लिए कदकदाने लगी थी। मुझे भी उठकर जाने को कह दिया। रात का पता न चला, निकलकर सीधे इधर आ गया..!"

"पर इतनी भोर जाओगे कहा?” इतनी सवेरे कोई भीख भी नहीं देगा!”

"पहले के श्रबनिया पंडा लोग चार बजे भोर हमारे घरों से भीख माँग ले जाते थे, आपने भी देखा होगा शायद, हम तो गाँव घर के हैं।"

"फिर भी इतनी सवेरे, जाओगे कहाँ?"

 "पहले मझलीटांड जाऊँगा, वहाँ से परतापुर और फिर बिरनी होते हुए घर..!" 

"घर में कौन कौन है?"

"बेटा है, पतोहू है और एक पोता और एक पोती भी..! दो बेटियाँ थी, दोनों की शादी कर दी.!"

"घर में पूरा परिवार है फिर भी भीख माँगते फिरते हो..!"

"हमारा परिवार मेरी पत्नी थी, पिछले साल उसकी मृत्यु हो गई। घर में जो परिवार है, वह  मेरे बेटे का परिवार है और उन लोगों ने हमें घर से निकाल दिया है..!"

"ऐसा क्यों..? "

"अब कमा जो नहीं पाता..!"

"आपका नाम क्या है..?"

"राम प्रसाद..!"

"पूरा नाम..!"

"राम प्रसाद मोहली..! "

"घर..!"

"चडरी..!"

"आप तो टोकरी, खँचिया, सूप-दाऊरी बनाकर भी इज्जत की जिंदगी जी सकते थे, पहले बनाते ही होगे, शरीर से भी ठीक ठाक हो, यह कामचोरी कहाँ से आई? "

उसने अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा दिए‌। दोनों हाथों की दसों के दसों अँगुलियाँ सिकुड़ कर मुड़ गयी थीं ‌। 

"ओह! तो यह बात है‌। दो बार मैंने आपको भीख दी है, पर कभी हाथ की अँगुलियों पर ध्यान नहीं गया! सचमुच दुख हुआ..!"

" राशनकार्ड से आपको गेहूँ चावल तो मिलते होंगे?" आग में लकड़ी डालते हुए फिर मैने पूछा- "उससे आपका अकेले का तो गुजारा हो जाता..!"

"पतोहू ने राशन कार्ड छीन लिया है..!"

‘‘बेटे से बोलता..!"

‘‘आज की बहुओं के आगे बेटों की कहाँ चलती है बाबू!"

‘‘खेती बारी तो कर सकते थे..?"

"छह बूढों की बाईस एकड़ जमीन है, लेकिन सब बेकार- परती पड़ी है, जब से सरकार ने राशनकार्ड से अनाज देना शुरू किया है, गाँव में लोग खेती बारी करना ही छोड़ दिया है!"

"और बेटा क्या करता है..?"

"बैंक से लोन में पैसा लिया और मोटरसाइकिल खरीद ली, अब उसका कर्जा भरने के लिए गाँव में इसके उसके घर में पचोडा सचोडा करते फिरता है..!"

" पुस्तैनी धंधा, टोकरी खँचिया बनाकर भी वह पैसे कमा सकता था। बाजार में हाथ के बना सामान आज भी बहुत महँगे दामों में बिकता हैं..!"

"आज के लड़के खेती बारी और पुस्तैनी धंधे को बड़ी गिरी हुई नजरों से देखते हैं, बेटे को हमने कई बार कहा; लेकिन उसका एक ही जवाब होता है..!"

" इस धंधे में अब कुछ नहीं रखा है।"

 क्या कहूँ बाबू, एक समय था, जब तेलो हटिया में रामप्रसाद मोहली के हाथों बनी सूप दोरी और टोकरी खँचिया को लोग खोज-खोजकर लेते थे  । कुछ तो घर आकर खरीद ले जाते थे। आज हर आदमी अपने- अपने पुश्तैनी धंधों से दूर होते जा रहा है। किसान, खेत से दूर हो रहा है। कुम्हार चाक चलाना छोड़ रहा है। लुहार  ने लोहा गलाना छोड़ दिया। हर आदमी अपनी वृत्ति से मुँह मोड़ रहा है। हाथ ने मुझे भी लाचार कर दिया है, क्या करूँ, भीख माँगता फिरता हूँ..!’’  कहते- कहते उसकी आँखें भर आई थीं। 

इसी के साथ वह उठ गया था- "चलता हूँ बाबू, जाने में घंटा भर लग जाएगा..!" और वह चला गया था ।

 मैं देर तक यही सोचता रहा कि इस मुफ्त के राशन ने कितनों को निकम्मा बना दिया है..? 

सम्पर्कः बोकारो, झारखंड, मो.  6204131994


1 comment:

  1. एक अच्छे विषय का संस्मरण आपने लिखा-बधाई। सभी जगह और सभी वर्ग में ये समस्या व्याप्त है।

    ReplyDelete