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Oct 1, 2024

कहानीः दहेज की रकम

  - प्रियंका गुप्ता

जाने कब किस मुहूर्त से शन्नो ज़िद पकड़े बैठी थी कि वह शादी करेगी, तो सिर्फ़ एहसान से, वरना ज़िंदगी भर कुँवारी बैठी रहेगी। घरवालों ने कितना समझाया, साम, दाम, दंड, भेद, हर फंडा अपनाकर देख लिया; पर लड़की को न मानना था, वह न मानी। गाहे- बगाहे माँ ने घूँसे थप्पड़ लगाए, भाइयों ने गालियाँ दीं...बाप चप्पल उतारकर मरने-मारने पर उतारू हो गया, पर मज़ाल है, करमजली टस से मस हुई हो। बात घर परिवार के बीच तक रहती, तो भी ग़नीमत थी, पर बेशर्म ने तो पूरे समाज में ढिंढोरा पीटकर रख दिया था। 

कितना अच्छा लड़का मिला था, उसके लिए...। दान-दहेज भले थोड़ा हैसियत से बढ़कर देना पड़ता, पर घरवाले अपनी इकलौती लाडली के लिए, ये भी करने को तैयार थे। थोड़ा कर्ज़ा चढ़ भी जाता, तो क्या, सिर से बोझ तो उतर जाता...और फिर किस बेटी के ब्याह पर थोड़ा बहुत जोड़-तोड़ नहीं बिठाना पड़ता? वह कोई अनोखी तो थी नहीं। न ही कहीं की राजकुमारी... न कोई हूर की परी, जिसे देखते ही कहीं का राजकुमार अपना दिल हार बैठे और मुफ़्त में ही उसे अपनी रानी बना ले...। 

पर शन्नो को तो मानो बहाना मिल गया उस लड़के को भगाने का...। पूरे परिवार को वो पसंद आ गई थी, पर जहाँ लेनदेन की बात शुरू हुई, एकदम बेहया की तरह लड़की बीच मे कूद पड़ी- सुनिए आप लोग, माँ-पिताजी चाहते थे कि मैं एक बार आपका लड़का देख लूँ, सो देख लिया...। आप लोगों ने मुझे पसंद कर लिया, इसका मतलब ये थोड़े न कि आपका ये छछून्दर जैसी पैदाइश मुझे भी पसंद है। ऊपर से आप लोग जितने दहेज की डिमांड कर रहे न, उतने में तो कोई अपनी दो बेटियों की शादी अच्छे तरीके से निपटा दे...। बेहतर होगा, अपनी तशरीफ़ का टोकरा अपने सिर पर रखिए और चुपचाप चलते-फिरते नज़र आइए।

शन्नो के माँ-बाबा ‘हें-हें, अरे-अरे’ करते हुए उसे रोकने की कोशिश करते रहे, पर उसे न रुकना था, न वह रुकी...। बंदी ने अपनी बात पूरी करके ही दम लिया। उसके बाद वे लोग लड़के वालों से हाथ जोड़-जोड़कर माफ़ी माँगते रहे, पर अपने औलाद के लिए ‘छछुन्दर’ और खुद के लिए ‘महा लालची’ जैसे सम्बोधन सुनने के बाद भला कौन माफ़ी देता है या रुकता है?

लड़के वाले तो जवाबी गालियाँ देते और उसकी सात पुश्तों को चिर कुँवारा मरने का शाप देते चले गए, पर उसके बाद शन्नो ने एहसान नाम रूपी जो एटम बम फेंका, उसका प्रहार झेल पाने में घरवालों को बहुत समय लगा जैसे...।

इकलौती लड़की ने नाक के नीचे से छुपकर नैन-मटक्का कर डाला, इतना बड़ा चैलेंज माँ को गश देकर गिराने के लिए काफी था। पिता शेर की तरह दहाड़ना चाहते थे, पर एक तो उनकी शेरनी बेहोश थी...दूसरे अभी-अभी रुख़सत हुए लड़के वालों के ज़ोर-ज़ोर से गरियाने की आवाज़ अभी भी फ़िज़ाओं में इस क़दर घुली थी कि आस-पड़ोस वालों ने सर्द मौसम की ज़रा भी परवाह किए बिना, न केवल अपने घरों की खिड़कियाँ खोल रखी थी; बल्कि कुछ अति-उत्साही लोगों ने 'हेल्थ इज़ वेल्थ' का अक्षरशः पालन करने के विचार से रात्रिकालीन भोजन के पश्चात् बाहर टहलकर उसे पचाने का भी अटल इरादा कर लिया था। शन्नो के दोनों बड़े भाइयों का खून तो शायद दो सौ डिग्री सेंटीग्रेड तक खौल गया था। पहली बात तो यह कि जो काम इतने दिनों से वे दोनों न कर सके, वह उनकी बहन ने जाने कब कर लिया...दूसरे, उससे भी बड़ी बात यह कि, इश्क़ किया सो किया...मुसलमान से काहे किया? उन दोनों का वश चलता, तो अभी ही शन्नो और उसके प्रेमी दोनों के हाथ पैर तोड़ डालते, पर एक तो अम्मा लुढ़की पड़ी थी, दूसरे बाऊजी का रवैया थोड़ा कंफ्यूजिंग था। किसी भी झमेले में सबसे पहले तो उनकी चिंघाड़ सुनाई पड़ जाती थी, लेकिन इतने बड़े मसले पर चुप्पी साधे वे सिर झुकाए अम्मा के सिरहाने बैठे थे।

जब घर का मुखिया ही ऐसे सन्नाटे में बैठा था, तो वो दोनों काहे फ़िज़ूल में उछल-कूद मचाते? पहले ये भी तो देखना था कि तेल किधर है और तेल की धार किधर है? पता चला वो दोनों बवाल मचा दें और इधर बाऊजी एकदम चुप्पे बने हुए, सिर झुकाए हुए अपनी लाडली की बात मान लें। फालतू में वे लोग ही दोनो तरफ की गुड बुक्स से बाहर हो जाएँ। यही सब सोचकर दोनों भाइयों ने आँखों ही आँखों में एक दूसरे को चुप रहने का इशारा किया और जल्दी जल्दी अम्मा के हाथ पैर मलकर उन्हें होश में लाने की जुगत में लग गए।

असली बवाल तो अम्मा के होश में आने पर हुआ, जब उन्होंने आँख खोलते ही शन्नो को सामने देखा और चीते की फुर्ती से बिस्तर से उठते ही, उस पर लपक पड़ी। घर के तीनों पुरुष सदस्य भी उनकी ऐसी लपक-चमक देख के जैसे मुँह बाये रह गए। माँ ने आव देखा न ताव, जो हाथ में समाया, उसका निशाना ताक- ताककर लड़की पर मारा। क्या जूता-चप्पल, क्या कुशन तकिए या फिर क्या गिलास कटोरी...हरेक चीज़ उस पर अस्त्र बनाकर फेंकी...। 

कुछ पल तो सब हतप्रभ थे, पर इससे पहले कि पड़ोसियों का पूरा जत्था यह फैमिली म्यूजिकल देखने उनके घर घुस आए, उन तीनों ने मिलकर उन्हें सम्हाल लिया। शन्नो इतने हमलों से जाने थोड़ा सदमे में थी, या ज़िद में...पर वो बिना हिले-डुले वहीं बैठी रही। पिता से ‘सुबह उससे बात करता हूँ, तुम चिंता न करो...’ का आश्वासन पाकर ही माँ सोई। न भी सोई हो, तो किसे पता, पर अभी दुनिया के सामने घर का तमाशा न बने, पिता की इतनी बात और मानकर वह चुपचाप आँख बंद करके लेट गईं। भाई लोग भी अपने कमरे में चले गए और शन्नो वहीं मूर्ति बनी हुई चुपचाप आँसू बहाती बैठी रही।

दूसरे दिन पिता अपनी आदत के विपरीत सचमुच शांत रहे। शन्नो को प्यार से समझाया, फिर थोड़ा कड़ाई से डाँटा... और उसके बाद भी जब वह न मानी, तो समाज की ऊँच-नीच समझाते हुए एहसान को लड़की बरगलाने के आरोप में जेल भिजवा देने की भी धमकी दे डाली; लेकिन शन्नो पर किसी बात का कोई असर नहीं हो रहा था। वो अपनी जिद पर अड़ी थी। वो और अहसान दोनों बालिग़ थे, सो कानून कुछ नहीं कर पाएगा। समाज में बदनामी की उसे कोई चिंता नहीं थी। घर परिवार छोड़ने को भी वो पूरी तरह तैयार थी... और अगर एहसान पर हल्की- सी आँच भी आई, तो वो सबको खुद जेल भिजवा देगी, पिता के डराने पर उसने बेधड़क यह धमकी भी दे डाली। 

"आप लोग हमें नहीं रोक सकते। ज़्यादा ज़ोर-जबरदस्ती कीजिएगा, तो पहला मौका मिलते ही भाग जाएँगे हम दोनों...कहीं दूर अनजान जगह जाकर शादी कर लेंगे। मेरी शक़्ल देखने तक को तरस जाइएगा... बता दे रहे बस...।" शन्नो अब तक इकलौती होने के कारण पिता के दिए लाड़ का नाजायज़ फायदा उठाने पर तुल आई थी।

बात सच भी थी। पूरे खानदान में दो पीढ़ियों बाद कोई लड़की हुई थी, तो वो थी शन्नो...। पर अगर वो बहुत दुलारी थी, तो खानदान की इज्ज़त उससे भी ज़्यादा अजीज़ थी उनको...। कोई तो हल निकालना ही पड़ेगा, जिससे साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। 

दूसरा दिन बीता, फिर तीसरा भी बीत गया। घर में मनहूसियत छाई हुई थी। इस बीच भाई लोगों ने एहसान का भी पता लगा लिया था। कहाँ रहता है, क्या करता है, घर में कौन-कौन है...सारी कुंडली एकदम डिटेल में...। अब रात को माँ -बेटी जब चुप्पी की चादर ओढ़े सो जातीं, बाप और दोनों भाई सिर से सिर जोड़कर बैठ जाते। कई सुझाव रखे जाते और तीनों में से कोई न कोई उसमें कोई ख़ामी निकालकर खारिज़ कर देता। जैसे जैसे दिन ख़त्म होते जा रहे थे, शन्नो की ज़िद बढ़ती जा रही थी। खानदान की इज्ज़त पर सरेआम बट्टा लगने का भी ख़तरा दुधारी तलवार की तरह पिता के सिर पर लटक रहा था। जिस तरफ भी झुके, घायल तो होना ही था।

आखिरकार क़िस्मत ने ही एक दिन इसका हल निकाल दिया। सुबह- सवेरे जब मोहल्ले वालों को उनके घर से माँ के रोने-पीटने की आवाज़ सुनाई दी, तो दरयाफ़्त करने पर पता चला, रात में जाने कब बिटिया रसोई में पानी पीने के लिए अपने कमरे से नीचे आ रही थी कि पैर फिसला और वो हमेशा के लिए सबको छोड़कर बहुत दूर चली गई। सुबह माँ जब सोकर उठी, तब  बेटी की जगह उसकी ठंडी लाश देखकर अपने होशो-हवास खो बैठी।

सुनने वालों के दिल से आह निकल गई। जवान-जहान बेटी की डोली की जगह घर से अर्थी निकलने की नौबत आए, तो भला कौन ऐसा पत्थर दिल होगा जिसका कलेजा चाक न हो जाए...?

दस्तूर और कायदे के हिसाब से दुनियावाले भी आए और पुलिस भी...। सब काम नियमानुसार निपटने के बाद पुलिस ने भी इसे महज एक एक्सीडेंट मानते हुए केस बंद कर दिया। कुछ दिन बीतते-बीतते सब कुछ सामान्य हो गया। 

शन्नो की मौत के बारे में पता चलने पर एहसान उसे आखिरी विदा देने आया या नहीं, इस पर मोहल्ले वालों की दबी जुबान में अलग-अलग राय थी...।

एहसान वाली बात तो चाहे कुछ भी रही हो, पर उससे भी ज़्यादा विश्वास के साथ कुछ भरोसेमंद लोगों की एक राय तो बिल्कुल पक्की थी...भले ही आपस में फुसफुसाहट के रूप में वह राय बाहर आती हो कि सीढ़ियों पर पुलिस को तेल के निशान मिले तो थे, पर आखिरकार दहेज की जोड़ी हुई रकम उसी के काम निपटाने में ही काम आई...।

सम्पर्कः ‘प्रेमांगन’, एम.आई.जी-292, कैलाश विहार, आवास विकास योजना संख्या-एक, कल्याणपुर, कानपुर- 208017 (उ.प्र) ,  मो. 09919025046

8 comments:

  1. Anonymous03 October

    मन छू लेने वाली कहानी दोनों पक्ष विवश एक डीके हाथों दूसरा सामाजिक मर्यादाओं की वजह से ।मार्मिक अंत

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  2. Anonymous03 October

    समाज के दो मतों के बीच का खाई ने एक जिंदगी ले ली। कहानी बहुत अच्छी लगी।

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  3. Anonymous04 October

    सुन्दर आजकी युवा पीढ़ी की अनर्गल जिद.. कौन इज्जतदार परिवार.. कितना सहन करेगा, वैसे भी आज नहीँ तो कल यही होना ही था पर वाह भी सारी इज्जत.. मर्यादा नष्ट होने के बाद..
    वैसे अन्त संभावित कल्पनानुसार ही रहा.. कारण कुछ भी हो सकते थे.. 💥🙏🏻💥

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  4. Anonymous12 October

    कहानी कई प्रश्न उठाती है। मार्मिक अंत । सुंदर । बधाई प्रियंका जी। सुदर्शन रत्नाकर

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया

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