- विजय जोशी
( पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)
पौराणिक प्रसंग किसी भी धर्म ग्रंथ में समाहित हों, उनकी प्रासंगिकता स्वयं सिद्ध हैं। इनमें एक ओर जहाँ सरल भाषा में अपनी बात आम जन तक पहुँचाने का भाव होता है, वहीं दूसरी ओर मंतव्य भी। इस दौर में कहें , तो शाब्दिक प्रसंग हार्डवेयर तथा संदेश सॉफ्टवेयर। सो एक मित्र से प्राप्त अद्भुत विचार।
महाभारत ग्रंथ से सभी परिचित हैं। यह मात्र दो परिवार या दो विरोधी संस्कृतियों के टकराव में सत्य की विजय का मंत्र ही नहीं, अपितु अंतस के युद्ध का सफ़रनामा भी है। आइए इसे पात्रों के माध्यम से समझा जाए :
1- धृतराष्ट्र: यह है हमारा मस्तिष्क जो सारी सूचनाओं को संगृहीत कर सोच को कार्यरूप में परिवर्तित करता है। निर्भर हम पर करता है कि अपने विवेक से सही निर्णय लेते हैं या स्वार्थनिहित फैसला।
2- संजय: हमारे वे मित्र या शुभचिंतक जो ठकुर सुहाती से ऊपर उठकर न केवल हमें सच्चाई से अवगत कराते हैं, बल्कि सही मार्गदर्शन भी प्रदान करते हैं।
3- कौरव: ये हैं अंतस् में उभरने वाली मोह माया रूपी वे भावनाँ जो हमें पथभ्रष्ट करने का पूरा प्रयास करती हैं। तुच्छ स्वार्थ या बाहरी आकर्षण की परत हमारी बुद्धि के कुमार्ग से कदमताल का प्रयोजन बनती हैं।
4- शकुनि: वे अवसरवादी मित्र जो हमें कुमार्ग की ओर ढकेलने में कोई कसर नहीं छोड़ते। सावधानी हटी, दुर्घटना घटी।
5- पांडव: ये हैं हमारी पाँच इंद्रियाँ नेत्र, नाक, जीभ, कान और त्वचा यानी दृश्य, सुगंध, स्वाद, श्रवण और स्पर्श, जो हमारी सहायता करती हैं नीर क्षीर उर्फ़ दूध और पानी को अलग कर निर्णय पर पहुँचने में। ईश्वर का अद्भुत उपहार बशर्ते हम इनका सदुपयोग कर सकें।
6- द्रौपदी: हमारी नैसर्गिक प्रतिभा, इच्छा, चाह या जुनून, जो हमारी 5 इंद्रियों वाली क्षमता को एक सूत्र में बाँधकर उद्देश्य प्राप्ति के साथ ही जीवन में आनंद का प्रयोजन भी बनती है। एक बात और कि यह कौरवी माया जाल से लड़ने हेतु हमारे संकल्प का सूत्र भी बनती है।
7- कृष्ण: तो फिर कृष्ण क्या हैं। यह है हमारी आंतरिक चेतना जो आजीवन हमारी सारथी बनकर साथ निभाती है। इसकी आवाज सुन कार्य करना हमारा नैतिक दायित्व और सफलता की कुंजी है।
8- कर्ण: परिवार के अग्रज होने के बावजूद राज्याश्रय के लोभ में कुमार्ग पथिक बन काल कवलित हो गए। यही है हमारा अहंकार जो पद, प्रतिष्ठा, पैसे की चमक मिलते ही सिर चढ़कर बोलने लगता है। कुपथ की ओर धकेल देता है।
अहंकार हमारे सारे गुण निगल जाता है। ईश्वर से विमुख कर देता है। कहा ही गया है EGO यानी Edging God Out। हृदय में कोई एक ही रह सकता है। अहंकार आते ही ईश्वर बाहर। यदि आपने इसे समाप्त नहीं किया , तो यह आपको समाप्त कर देगा।
कुल मिलाकर भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर में महाभारत के माध्यम से उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने का एक अद्भुत संदेश दिया है। यह केवल एक युद्ध नहीं, बल्कि अनाचार, अत्याचार के विरुद्ध एक जंग है, जो हमारे चेतन और अवचेतन मन दोनों के सार्थक जीवन जीने का प्रयोजन है। अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम कौन सा मार्ग अंगीकार करें।
अहंकार में तीनों गए धन, वैभव और वंश
ना मानो , तो देख लो रावण, कौरव, कंस
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बजे सहज और तरल ढंग से अतॉस के युद्धनामा पर प्रकाश डाला है। सुंदर। सुदर्शन रत्नाकर
ReplyDeleteहार्दिक आभार. आपकी प्रतिक्रिया बहुत मायने रखती है। सादर
Deleteअप्रतिम। पिताश्री आपने बड़े ही सरल भाषा में आपने महाभारत के प्रसंग को समझाया है। पिताश्री को सादर प्रणाम व चरण स्पर्श 🙏🙏पिताश्री 🙏🌹🙏
ReplyDeleteप्रिय हेमंत, सदा की तरह अग्रगामी। हार्दिक आभार। सस्नेह
Deleteबहुत अच्छा बिश्लेषन. लेख अच्छा लगा!
ReplyDeleteहार्दिक आभार मित्र
Deleteव्यक्ति यदि आपने मस्तिष्क पर नियंत्रण एवं विवेक से निर्णय ले तो कभी भी परेशानी में नहीं पड़ेगा यह आपने बहुत सरल शब्दों में समझा दियाl बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteआपका स्नेह बहुत शक्ति देता है मुझे। हार्दिक आभार सहित सादर
Deleteमहाभारत एवम प्रमुख पात्रों का वर्तमान परिदृश्य में सुंदर ,सटीक एवम सरगर्विभत सूक्ष्म विश्लेषण। अगर हम अपनी इन्द्रियों और वाणी को संयम में नही रखतें हैं तो वह विनाश का कारण मात्र बन जाता है। पर जीत हमेशा सत्य की होती है,दम्भ,अत्यचार,अनाचार का नाश होता है। यही संदेश है जो कृष्ण के द्वारा अर्जुन और आमजन को दिया गया,इन्ही ससन्देशों से हैम अपना धतं,कल्चर और हेरिटेज जान सकतें है।
ReplyDeleteहैम~हम , धतं ~🙅🙅धर्म
Deleteअशोक भाई, बहुत सही विवेचना की है आपने। पाप का एक दिन अंत होता ही है। बुराई बस कदम दो कदम। पुण्य पथ अनंत है।
Deleteहार्दिक आभार सहित सादर
Excellent sir ji
ReplyDeleteC.Ananda
अतिसुन्दर व्याख्या महोदय।
ReplyDeleteRes. Ananda Ji,
DeleteMe and my entire team has a great respect for You in Bhopal. Thanks very very much. With kindest regards
Very good comparison and well explained Sir🙏🎊
ReplyDeleteप्रिय रजनीकांत, हार्दिक आभार।सस्नेह
Deleteसर,
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरणादायक लेख।
"अहंकार में तीनों गए धन, वैभव और वंश
ना मानो , तो देख लो रावण, कौरव, कंस"
प्रिय महेश, हार्दिक आभार। सस्नेह
Deleteजिस घटना की पृष्ठभूमि से गीता जैसा ग्रंथ निकला , जिसका कालजयी संदेश युग युग तक प्रासंगिक रहेगा, गागर मे सागर जैसा hardware है, software बहुत कालों तक बनते रहेंगे , आज उसका मर्म समझने की नयी generation को बहुत जितनी जरूरत है उतनी ही हमे
ReplyDeleteजोशी जी को साधुवाद
जय श्रीकृष्ण
प्रिय मित्र श्रीकृष्ण, बिल्कुल सत्य वचन। गीता तो जीवन संहिता सदृश्य है। हार्दिक आभार सहित सादर
Deleteमोह अधिक हो जाय तो बुराई नही दिखती और घृणा अधिक हो तो अच्छाई ननजर नही आती । महाभारत मे इसी बात को आपने सहजता से अपने आलेख मे निरूपित किया है।साधुवाद स्वीकारे
ReplyDeleteराजेश भाई, यह ग्रंथ अनेक संदेश का वाहक जिसे आपने बयान किया है। हार्दिक आभार सहित सादर
Deleteमहाभारत एवम प्रमुख पात्रों का वर्तमान परिदृश्य में सुंदर ,सटीक एवम सारगर्भित सूक्ष्म विश्लेषण। अगर हम अपनी इन्द्रियों और वाणी को संयम में नही रखतें हैं तो वह विनाश का कारण मात्र बन जाता है। पर जीत हमेशा सत्य की होती है,दम्भ,अत्यचार,अनाचार का नाश होता है। यही संदेश है जो कृष्ण के द्वारा अर्जुन और आमजन को दिया गया,इन्ही सन्देशों से हम अपना धर्म ,कल्चर और हेरिटेज जान सकतें है।
ReplyDeleteअशोक भाई, इन्द्रिय संयम हमारे शास्त्रों की पहली सीख है। खासकर वाणी संयम।
Deleteहार्दिक आभार सहित सादर
'महाभारत' ग्रंथ एक कामधेनु की तरह है। सदीयो से अनेको मनीषीयोने इस पर चिंतन कर दुनिया को नयी सीख दी है। आपका लेख उसी श्रृंखला में एक कड़ी है। सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआ. कासलीवाल जी, हार्दिक आभार सहित सादर
Deleteजब जब हिम्मत की जरूरत होती है तब तब आप के लेख हिम्मत देने के लिए खुद ही आ जाते हैं।
ReplyDeleteये मेरे लिए प्रेरणा स्त्रोत की तरह काम करते हैं।
विजेंद्र सिंह भदौरिया
प्रिय विजेंद्र, ये तुम्हारा स्नेह है जो हर वस्तु में अच्छाई ढूंढ लेता है। हार्दिक आभार। सस्नेह
Deleteमहाभारत के हर पात्र को जीवन मे उतारती अद्भुत रचना,धन्य है लेखनी और लेखक🌷🌹🙏
ReplyDeleteहार्दिक आभार मित्र
Deleteमहाभारत के हर पात्र को जीवन मे उतारती अद्भुत रचना, धन्य है लेखक व लेखनी🌷🌹💐🙏
ReplyDeleteप्रिय भाई रवींद्र, हार्दिक आभार। सादर
DeleteVery nice article. Interesting comparison of characters of Mahabharta...to human characteristics.
ReplyDeleteDear Vandana, Thanks very much. Regards
ReplyDeleteW’fully written helping to internalising - ego issues ,control of 5 senses, purifying our thoughts, killing negativity n providential messages known to none other but Self🙏🏼
ReplyDeleteDear Daisy,
ReplyDeleteRightly summarised by you. We have inherent wisdom for a right decision on any issue provided don't get carried away by temptations.
Thanks very much. Regards
अद्भुत रचना, हर पात्र जीवध के हर क्षण को झकझोर रहा है, लेखनी व लेखन भी बिरले हैं,🌹🌷💐🙏 रवीन्द्र निगम
ReplyDeleteउत्कृष्ट सादृश्य. बहुत बढ़िया सीख
ReplyDeleteहार्दिक आभार किशोर भाई सादर
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