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Dec 2, 2022

ग़ज़लें- आई याद पुरानी उसकी

- डॉ. आरती स्मित

1.

आते-आते फिर आई है याद पुरानी उसकी

भूला-बिसरा इक तसव्वुर, इक कहानी उसकी।


इक  वो मंजर गुल-गुंचों का, इक है काँटों वाला

लेकिन हर मंजर में  है क़ायम इक रवानी उसकी ।


याद नहीं, फ़रियाद नहीं दीदार तलक को तरसूँ

भूल गया  कि है मीरा-सी इक दीवानी उसकी ।


एक समंदर उमड़ा पड़ता जैसे दिल के अंदर

आज बहा न दे आँखों से ,इक नादानी उसकी ।


फूलों पर शबनम फैली है या फिर रात के आँसू

ग़फ़लत में हूँ स्मित या आई याद पुरानी उसकी ।

2.

न तो मंज़िल की ख़बर और न हमसफ़र का पता

दश्त-ए-ज़ुल्मत में कहाँ पाएँ तेरे घर का पता ।


मैं तो मंदिर की तरफ़ जा रहा था ऐ साक़ी

न जाने किसने बताया है तेरे दर का पता ।     


मेरे अपने ही तग़ाफ़ुल से देखते हैं मुझे

न उनको ग़म की ख़बर न है दिल-जिगर का पता ।


वो हमने जिनकी परस्तिश की जिनको रब माना

वो हमको देते हैं रुसवाई के शहर का पता ।


ऐ मेरे नूर-ए-नज़र तुझपे दो जहां क़ुर्बां

क्यों तूने स्मित को दिया फिर से चश्म-ए-तर का पता ।


सम्पर्कः
डी 136
, गली न. 5, गणेशनगर पांडवनगर कॉम्प्लेक्स, दिल्ली, मो. 8376836119, dr.artismit@gmail.com, www.smitarti.wordpress.com

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